भारत में ‘एक्स-मुस्लिम्स’ यानी इस्लाम को छोड़ने का एक आंदोलन उभर रहा है. इससे वे लोग जुड़े हैं जो इराक, सीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में आत्मघाती हमलों में मुसलमानों के शामिल होने से परेशान हैं. इंटरनेट पर मौजूद इस्लाम की अन्य व्याख्याएं इनकी मदद करती हैं.
इनके दिमाग में बराबर सवाल उठते रहते हैं. भारत में ऐसे युवा मुसलमान इस्लाम को छोड़ रहे हैं. इनमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं और वो अच्छे पढ़े-लिखे हैं. इनकी उम्र 20 से 40 साल के बीच है और ये लोग खुद को एक्स-मुस्लिम्स, नास्तिक या फिर सांस्कृतिक मुसलमान बताते हैं. ये एक दूसरे से सोशल मीडिया, फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिये जुड़े हैं और देश के अलग-अलग शहरों में रहते हैं.
अल्लाह ऐसा कैसे कर सकता है ?
सुल्तान शाहीन एक सुधारवादी यानी रिफॉर्मिस्ट वेबसाइट http://newageislam.com/ के एडिटर हैं. वे कहते हैं कि भारत में ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों की तरह एक्स-मुस्लिम्स का कोई संगठित आंदोलन नहीं है लेकिन कुछ युवा उन्हें फोन करते हैं और सच्चे इस्लाम के बारे में पूछते हैं. शाहीन बताते हैं, 'मैंने तीन-चार मुसलमानों से बात की, जो पांच वक्त की नमाज छोड़ चुके हैं. दिल्ली में तो एक वकील ने अपने पिता को भी इस्लाम छोड़ने के लिए मना लिया.' उन्होंने बताया कि ऐसे युवा इंटरनेट पर इस्लाम विरोधी वेबसाइट देखते हैं. एक्स-मुस्लिम्स के बारे में नादिया नोंगजाई कहती हैं, 'मैं (सोशल मीडिया पर) ऐसे लोगों को खोजती हूं और फिर हम एक दूसरे को जानते हैं. मैं कह सकती हूं कि मैं भी उन्हीं में से एक हूं.'
नादिया शिलांग में रहती हैं. उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक और अर्थशास्त्र में एमए किया है. वह एक मुस्लिम परिवार से हैं. वह बताती हैं,'स्कूल में मुझे इस बात पर बिल्कुल यकीन नहीं होता था कि अल्लाह जो बहुत महान है, वह ऐसी नाइंसाफी कैसे कर सकता है कि वह मेरे स्कूल के गैर-मुसलमान बच्चों को नरक में भेज देगा.'
नादिया इस्लाम की इस शिक्षा पर सवाल उठाती है कि गैर-मुसलमानों को जन्नत यानी स्वर्ग में दाखिल नहीं होने दिया जाएगा. वह अपने आपको एक्स-मुस्लिम कहने पर बिल्कुल नहीं हिचकिचाती हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या इससे उनकी सुरक्षा को खतरा नहीं है. इस पर वो कहती हैं कि वह अपनी पहचान को छिपाती नहीं है. वह कहती हैं,' मैंने मार्शल आर्ट सीखी है.'
इस्लाम से धक्का लगा
साजी सुबर (बदला हुआ नाम) का जन्म सऊदी अरब में हुआ और 10 साल की उम्र तक माता-पिता ने वहीं उनकी परवरिश की. उनकी मां ने ईसाई धर्म छोड़ कर इस्लाम अपनाया था, लेकिन फिर ईसाई बन गईं. वह बेटे के साथ मैंगलोर आ गई और साजी को मदरसे में भेजा गया.
अब साजी के पास कंप्यूटर साइंस में इजीनियरिंग की डिग्री है और वो कॉमिक बुक के एप पर काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, 'जब मैं भारत आया तो मुझे कुत्ते बहुत प्यारे लगने लगे. मेरी मां ने बताया कि कुत्ते से खेलना तो इस्लाम में हराम है.' वे कहते हैं कि इस्लाम के बारे में उनकी विचारधारा से यह पहला टकराव था. इस्लाम में कुत्ते को अपवित्र माना जाता है और मुसलमानों को उन्हें पालतू जानवर के तौर पर रखने की मनाही है. भारत आने के दो साल बाद साजी मैंगलोर में ही एक सभा में मौजूद थे, जहां एक मौलवी लाउडस्पीकर पर मुसलमानों से कह रहे थे कि वे गैर-मुसलमानों के घर से पानी या खाने की कोई चीज न लें.
ये बात साजी के लिए किसी धक्के से कम नहीं थी वह इसे पचा नहीं पाए. मौलवी की अनाउंसमेंट के बारे में वह कहते हैं, 'यह वैसा ही था जैसे कोई मुझे अपनी मां से नफरत करने को कहे क्योंकि वह एक ईसाई थी. कोई बच्चा इसे स्वीकार नहीं करेगा.' इस बात ने उनके भीतर इस्लाम को लेकर सवाल पैदा किए.
अब साजी 27 साल के हैं और एक नास्तिक हैं. वे बताते हैं, 'फिर मैंने साइंस पढ़नी शुरू की. इस्लाम से मुझे धक्का लगा. मैं इस तार्किक नतीजे पर पहुंचा कि यह ठीक नहीं था. वे बताते हैं कि यह सवाल भी उनके दिमाग में उठने लगा कि आत्मघाती हमलों में मुसलमान ही क्यों शामिल होते हैं.
शैतान की औलाद
आशिक (घर का नाम) एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हैं और तिरुवनंतपुरम में रहते हैं. वे कहते हैं,'मैं मदरसे में जाया करता था. मैं लाइब्रेरी में साइंस की किताबें पढ़ता था. मैं अपने टीचर से पूछता था, 'अल्लाह को किसने बनाया है? लेकिन टीचर मेरे सवालों के जवाब नहीं देते थे.'
आशिक बताते हैं कि टीचर जवाब देने के बदले कहते थे, 'तुम शैतान के कहे में चल रहे हो. वह मुझे शैतान की परछाईं कहा करते थे.' अपने मदरसे के टीचर से आशिक का सबसे चुभने वाला सवाल था- चूंकि उत्तरी ध्रुव के करीब बसे देशों में एक दिन छह महीने का भी हो सकता है, तब वहां मुसलमानों को अपना रोजा कब खोलना चाहिए? मदरसे के टीचरों को भूगोल की जानकारी नहीं थी. आशिक बताते हैं, 'ये सवाल पूछने के लिए मौलवियों ने मेरी पिटाई की थी.' आशिक बताते हैं, 'मेरे दोस्त मुझे शैतान की औलाद कहते थे. वह मेरे साथ क्रिकेट नहीं खेलते थे. मैं अलग-थलग पड़ गया. मैं सिर्फ अपनी मां से ही बात कर सकता था.'
आशिक से भी कहा गया कि गैर-मुसलमानों से खाना न लें. वे बताते हैं, 'जब मैंने मौलवी से पूछा कि आप हिंदुओं से खाना लेने से क्यों रोकते हो तो उन्होंने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया.'
बाद में आशिक की मां ने उनसे कहा कि जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई पूरी कर लो और ऐसे सवाल मत पूछो, वरना मौलवी तुम्हें काफिर घोषित कर देंगे. वह कहते हैं,'अगले साल मैंने सवाल ही नहीं पूछा.'
अब आशिक की उम्र 29 साल है. उन्होंने मुसलमान युवाओं में विज्ञान को लेकर दिलचस्पी पैदा करने वाले फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप जॉइन किए हैं. वह बताते हैं,'हम बुनियादी सवाल पूछते हैं- हम कहां से आए हैं? पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ?'
तीन तलाक ने किया बर्बाद
अली मुतंजर 27 साल के हैं और कोलकाता में रहते हैं. उनका संबंध मौलवियों के परिवार से है. उनके दादा और पिता इस्लामी विद्वान थे. वह इस्लाम धर्म के मुताबिक नहीं चलते और खुद को 'क्रांतिकारी' या फिर बगावती कहना पसंद करते हैं.वे ईद या किसी अन्य दिन नमाज नहीं पढ़ते और रमजान के दौरान खुलेआम खाते हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या इसकी वजह से परेशानी नहीं होती, तब वे कहते हैं,'मेरे पिटने की नौबत आ गई थी. लेकिन भारत में लोकतंत्र है, इसीलिए मैं बच गया.'
वे कहते हैं कि बचपन से ही उनके दिमाग में सवाल उठते रहे हैं. उनके पिता के सभी दोस्त मौलवी थे और वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते थे. अली मुंतजर इस बात से भी बहुत परेशान हुए कि उनकी खाला (मौसी) की जिंदगी तीन तलाक की वजह से बर्बाद हो गई. वे कहते हैं,'इस्लाम के आतंक से सबसे पहले खुद मुसलमान पीड़ित हैं.'
बोहरा मुसलमान शिया इस्लाम का एक संप्रदाय है. बहुत से बोहरा मुसलमान युवा इस्लाम को छोड़ रहे हैं. हालांकि यह आसान नहीं होता. बंगलुरु में रहने वाले एक बोहरा मुसलमान युवा ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया,'बोहरा समुदाय में लोगों का हुक्का पानी बंद करने का बहुत चलन है. जिसका नकारात्मक असर आपकी जिंदगी और काम पर पड़ता है. लेकिन समुदाय के भीतर सैयदना (नेता) की भूमिका को लेकर बहुत बैचेनी है.' वे कहते हैं,'सांस्कृतिक रूप से मैं एक मुसलमान से ज्यादा एक बोहरा हूं. लेकिन मैं खुद को एक्स-मुस्लिम नहीं कहूंगा. मुझे अपनी चिंता नहीं है, लेकिन माता-पिता, अपने बिजनेस और बिजनेस पार्टनर की फ्रिक है.'
20 तरह के नमाज
डॉ. जफर मुरादाबाद में रहते हैं. उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में धार्मिक कट्टरपंथ पर पीएचडी की है. वह हज कर चुके हैं. उन्होंने ज्ञान की अपनी भूख को शांत करने के लिए कुरान के तीन अनुवाद पढ़े और अब इस्लाम को छोड़ चुके हैं. स्थानीय मौलवी उनके सवालों के जवाब नहीं दे पाए, बल्कि उल्टे उन्हें धमकियां देने लगे कि जनता के बीच हमारा एक बयान आपको धर्मभ्रष्ट घोषित कर देगा और आपको यह शहर छोड़ कर जाना होगा. एक स्थानीय मस्जिद के इमाम उन्हें धर्मभ्रष्ट बताते हुए उनका फोटो छापने वाले थे, लेकिन फिर, राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए इस मामले को सुलझाया गया.
नफरत फैला रहे हैं मदरसे
मेजर राशिद खान सेना से रिटायर हुए हैं. उनका संबंध एक रुढ़िवादी परिवार से है, जहां पाचों वक्त की नमाज पढ़ी जाती है और रोजे रखे जाते हैं. वो कहते हैं, “जब मैं कॉलेज में गया तो मैंने इस्लाम और कुरान के बारे में सोचना शुरू कर दिया. मुझे अहसास हुआ कि हमें धर्म के बारे में सवाल पूछने की इजाजत नहीं है.” उनकी सोच इस्लाम से अलग होने लगी. इसकी वजह, एक तरफ पैगंबर मोहम्मद के इशारे पर चांद के दो हिस्से होने जैसी बात थी तो दूसरी तरफ पैगंबर के सामने आत्मसमर्पण करने वाले बनु कुरैजा कबीले के 700 यहूदियों का कत्ल. मेजर खान ने इस्लाम छोड़ दिया. उनके पिता ने उन्हें डांटा जबकि बड़े भाइयों ने बोलना बंद कर दिया. वो बताते हैं, “मेरे भाइयों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो सोचते हैं कि इस्लाम को खारिज करने वाले इंसान के साथ मुसलमानों का कोई संबंध नहीं हो सकता.”
मेजर खान ने अपने बच्चों की परवरिश आजाद माहौल में की. वो बताते हैं, “जब मेरे बच्चे 8-10 साल के थे, तो मैंने उन्हें ईश्वर को लेकर विभिन्न समुदायों की मान्यताओं के बारे में बताना शुरू कर दिया. मैंने अपने बच्चों से कहा: "तुम फैसला करने के लिए आजाद हो, मैं तुमसे कोई धर्म स्वीकार करने को नहीं कहूंगा. मैंने उन्हें कुरान पढ़ाने के लिए एक इस्लामी टीचर भी रखा.” वो कहते हैं कि तीन से चार साल के बच्चों को मदरसों में ले जाया जाता है जबकि मदरसों पर पाबंदी लगनी चाहिए क्योंकि वो काफिर जैसी अवधारणों के जरिए बच्चों को दूसरे धर्मों से नफरत करना सिखाते हैं. मेजर राशिद के बच्चों की अपनी खुद की सोच तैयार हुई जो इस्लाम से अलग थी.
नर्क में जाएंगी लड़कियां
आमना बेगम जयपुर में लॉ की पढ़ाई कर रही हैं. वो कहती हैं कि उनकी दिलचस्पी इतिहास, दर्शनशास्त्र और फ्रांस की क्रांति में थी. लेकिन उनके इंजीनियर पिता ने साइंस दिला दी. पहले उन्होंने कंप्यूटर्स पढ़ाया लेकिन फिर लॉ की पढ़ाई करने लगीं. वह बताती हैं, “10-11 साल की थी जब मुझे आजमगढ़ में एक मदरसे में पढ़ने भेजा गया. मदरसे में मौलवी ने बताया कि लड़कों से ज्यादा लड़कियां नर्क यानी जहन्नुम में जाएंगी. मुझे बताया गया कि जहन्नुम में 100 लोगों में से 99 औरतें होंगी.” उन्होंने अपने टीचरों से पूछा कि क्यों ज्यादातर लड़कियां ही जहन्नुम जाएंगी तो उन्हें जवाब मिला: “वो नाशुक्री (एहसान फरामोश) होती हैं.”
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.