2018 बॉलीवुड की बड़ी फिल्मों से ज्यादा बॉलीवुड की बड़ी शादियों के लिए चर्चित रहा. इन सारी शादियों को लेकर तमाम खबरें, गॉसिप, तस्वीरें इंटरनेट पर ट्रेंड करते रहे. प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस की शादी में एक बात की काफी आलोचना हुई. प्रियंका ने दीपावली पर पटाखे न चलाने की गुजारिश की थी. उन्होंने बताया था कि दमे से पीड़ित तमाम लोगों के लिए पटाखे परेशानी का सबब बनते हैं. इसके बावजूद उनकी शादी में जमकर पटाखे चले.
मगर पटाखे से इतर भी प्रियंका की शादी में कुछ था जो आज की तारीख में प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है. प्रियंका ने ईसाई परंपरा से भी शादी की थी. प्रियंका की सफेद वेडिंग ड्रेस का वेल (पीछे लटकने वाला घूंघट) दुनिया में सबसे लंबा था. आज की तारीख में दुनिया के सारे हवाई जहाज और पानी के जहाज मिलकर प्रदूषण फैलाते हैं, उससे ज्यादा ग्रीन हाउस गैस कपड़ों के चलते फैल रही है. फैशन इंडस्ट्री खतरनाक तरीके से दुनिया और खासकर के अफ्रीकी-एशियाई देशों की समस्या बनती जा रही है.
फैशन सबसे बड़ी समस्या है
अगर आपके घर वाले कहते हैं कि आप बहुत ज्यादा कपड़े खरीद रहे हैं तो वो सही हैं. आज दुनिया में लोग 1980 के मुकाबले 400 प्रतिशत ज्यादा कपड़े खरीदते हैं. किसी जमाने में फैशन के दो मौसम होते थे, गर्मियों में क्या चलेगा, इस सर्दियों में क्या पहना जाएगा. इसके बाद 4 सीजन विंटर, फॉल, स्प्रिंग और समर. अब फैशन हर दिन के हैशटैग के साथ बदल रहा है. विराट-अनुष्का की शादी, पद्मावत का रिलीज होना, इस दिवाली को बनाइए खास जैसे तमाम हैशटैग रोज फैशन को बदल रहे हैं. इसका पर्यावरण पर असर बहुत ज्यादा है. सिर्फ एक जींस को बनाने में 4,000 लीटर पानी लगता है. इसे धोने या ड्राइक्लीन करवाने में औसत 1,000 घंटे तक किसी बल्ब के जलते रहने जितनी ऊर्जा नष्ट होती है. अगर अमेरिका की बात करें तो वहां एक साल में 45 करोड़ जींस की बिक्री होती है. कैनेडा के सीबीसी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे पैदा हुआ प्रदूषण किसी गाड़ी के 260 बार पृथ्वी का चक्कर लगाने के बराबर है.
ये भी पढ़ें: रिसर्च में बड़ा खुलासा: मृत जानवरों की तरंगों से आता है भूकंप, नहीं कर सकते इग्नोर!
इस एक जींस के आंकड़े अगर आपको हैरान कर रहे हैं तो इसे 70 से गुणा कर दीजिए. एक साल में विकसित देश का नागरिक औसतन 70 कपड़े खरीदता है. अगर इस गिनती में आप पुरान कपड़े जोड़ दें तो कोई भी व्यक्ति एक कपड़ा औसत पांच-छह बार से ज्यादा नहीं पहनेगा. भारत, चीन और केन्या जैसे देश में इस तरह की स्थिति कुछ सालों या दशकों बाद आएगी. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां कोई समस्या नहीं है.
तीसरी दुनिया के देश इस कचरे को बनाने वाले मुल्क हैं. चीन में तो कहावत है कि आप नालियों का रंग देखकर अगली साल दुनिया के फैशन का रंग बता सकते हैं. बांग्लादेश, भारत, थाईलैंड जैसे तमाम देश सस्ते कपड़े बनाते हैं. इन्हें विकसित देशों और हमारे ही बड़े शहरों में बेचा जाता है. इसके बाद ये हमारी ही जमीन पर 'डंप' कर दिए जाते हैं.
अमेरिका जैसे देशों में कई संगठनों ने फास्ट फैशन और इससे होने वाले प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की. इसके बाद वहां के तमाम बड़े ब्रांड्स एक नई रणनीति लेकर आए. रिसायकल के लिए दान करिए और डिस्काउंट के साथ दुनिया को बचाइए. मगर यह सिर्फ और ज्यादा प्रदूषण फैलाने का एक तरीका है.
सबसे पहली बात तो कपड़ों को रिसायकल करने की कोई कारगर तकनीक नहीं है. हम आज जो भी कपड़े पहनते हैं वो कई अलग-अलग तरह के रेशों से मिलकर बने होते हैं. कॉटन के साथ पॉलिएस्टर, विस्कस, रेयॉन या ऐसा और कुछ मिला हुआ होगा. आपस में बुने हुए रेशे अलग नहीं किए जा सकते. जो शुद्ध सूती, ऊनी या रेशमी कपड़े होते हैं वे रिसायकल करने के बाद दोबारा इस्तेमाल करने लायक नहीं बचते. दुनिया में बनने वाले कपड़ों को सिर्फ एक प्रतिशत ही रिसायकल होता है. उसमें भी उनकी चिंदी बनाकर उन्हे चीजों में भरने के काम में लाया जाता है. रिसायकल के लिए सबसे बड़ा कैंपेन चलाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड 48 घंटे में जितने पुराने कपड़े जमा करता है, उन्हें रिसायकल करने में उसे 12 साल लगेंगे. बड़ा सवाल ये है कि फिर इन कपड़ों का होता क्या है?
ये भी पढ़ें: चिकन-मटन के जरिए आपके शरीर में पहुंच रहा है हानिकारक आर्सेनिक
सरोजनी के कपड़े!
दिल्ली में न रहने वाले लोगों ने भी सरोजनी नगर मार्केट का नाम सुना होगा. दुनिया भर के फैशनब्रांड सड़क किनारे और सड़क वाले दामों पर. इन कपड़ों को खरीदने और बेचने वालों को पता भी नहीं होगा कि वो ग्लोबल ट्रेड और ग्लोबल वॉर्मिंग के एक चक्र का हिस्सा हैं. दरअसल, अमेरिका जैसे देशों से कई तरह के कपड़े री-सेल के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों में जाते हैं. इनमें से कुछ प्रतिशत उम्दा क्वालिटी की नकल या थोड़ी बहुत कमी वाले नए कपड़े होते हैं, लेकिन बड़ा प्रतिशत दान के नाम पर जमा किए गए पुराने कपड़ों का होता है. कई कंपनियां इस दान के बदले डिस्काउंट भी देती हैं. जिसका असल मकसद आपको जल्दी-जल्दी नए कपड़े बेचना होता है. इन डोनेशन के साथ रिसायकल शब्द जोड़ दिया जाता है. कपड़े देने वालों को लगता है कि वो अच्छा काम कर रहे हैं. कुछ कपड़े रिसायकल करके नए बना दिए जाएंगे, कुछ गरीबों को बांट दिए जाएंगे. याद कर लीजिए किसी कॉर्पोरेट कंपनी को दिया गया कपड़ा कभी मुफ्त में नहीं दिया जाता.
कंपनियां दान में मिले कपड़ों को एक दूसरी कंपनी को बेच देती हैं. इस दूसरी कंपनी को मिडिलमैन कहते हैं. मिडिलमैन से जो पैसा मिलता है वो फैशन कंपनियां यूनिसेफ जैसी किसी संस्था को देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर देती हैं. मिडिलमैन कंपनी इन कपड़ों को अलग-अलग ग्रेड के हिसाब से छांटती है और दुनिया के विकासशील और अविकसित देशों को बेच देती हैं. यही कपड़े आपको सरोजनी नगर जैसे बाजारों में मिलते हैं.
ये भी पढ़ें: कृत्रिम मांस बदल सकता है हमारी दुनिया की बदरंग तस्वीर
इनमें से कई कपड़े बिलकुल नए या नए जैसे होते हैं तो उनके ठीक दाम मिल जाते हैं. एक बड़ा हिस्सा किसी के इस्तेमाल करने लायक नहीं होता. उसे या तो जला दिया जाता है या कूड़े में डाल दिया जाता है. महानगरों के पास जमा होते कूड़े के पहाड़ों में ऐसे कपड़े भरे पड़े हैं. अब एक बात समझिए. विदेश की एक कंपनी ने हमारे यहां बेहद सस्ती दरों पर कपड़े बनवाए, उन्हें अपने देश में महंगे दाम पर इस्तेमाल किया और फिर खराब होने पर वापस हमारी जमीन पर पटक दिया. इन सबके बीच स्थानीय बुनकरों और हथकरघे जैसी चीजों का काम ठप्प हुआ सो अलग. इस चक्र में सारा फायदा शक्तिशाली देशों का है और सारा शोषण विकासशील देशों के नागरिकों का.
फैशन और खासकर तेजी से बदलता सस्ता फैशन दुनिया की समस्या है. सबसे पहला नुकसान ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण है, दूसरा विकासशील देशों के आर्थिक शोषण का है. इस व्यवस्था का वर्तमान में कोई हल नहीं. ऐसे मौके पर गांधी जरूर याद आते हैं. जितना चाहिए उतना बनाओ और पहनो. हम सब जानते हैं कि ये हल आज संभव नहीं है.
इसके अलावा आत्मसंयम एक ऐसी चीज है जिसे अपनाने की अपील की जा सकती है. हर साल पटाखों से होने वाले प्रदूषण को लेकर कई लोग चिंतित होते हैं. इसके नुकसान को जानते हुए भी लोग पटाखे चलाते ही हैं. फास्ट फैशन इन पटाखों से ज्यादा प्रदूषण फैलाता है. क्या आप अपने कपड़े पहनने में संयम बरतेंगे? अगली बार जब प्रियंका या दीपावली के पटाखों पर उंगली उठाइएगा तो अपनी ओर उठती तीन उंगलियां भी देखिएगा.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.