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जन्मदिन विशेष: लमही के पन्नों पर लिखा उपन्यास है ‘मुंशी प्रेमचंद’

प्रेमचंद की कलम से निकली कालजयी रचनाओं ने इस गांव को दुनिया में एक खास पहचान जो दिलाई है

Updated On: Jul 31, 2017 11:38 AM IST

Tabassum Kausar

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जन्मदिन विशेष: लमही के पन्नों पर लिखा उपन्यास है ‘मुंशी प्रेमचंद’

इसी गांव की पगडंडियों पर ‘नमक का दरोगा’ रचा गया. यहां की आबोहवा में घुला है ‘मंत्र’ और इसी ‘कर्मभूमि’ पर ‘गोदान’ की परिकल्पना साकार हुई. यहां के खेत खलिहान, इमारत और लोग. सबकी एक ही पहचान है, सभी अमर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के रिश्ते से बुने बसे हैं.

अद्भुत गांव है लमही जिसके हर पन्ने पर अमर उपन्यास मुंशी प्रेमचंद की कहानी छपी है. 31 जुलाई को उपन्यास सम्राट की जयंती पर पूरा गांव इस उत्सव में शरीक होने को उत्साहित और उल्लासित है. हो भी क्यों ना, मुंशी प्रेमचंद की कलम से निकली कालजयी रचनाओं ने इस गांव को दुनिया में एक खास पहचान जो दिलाई है, तभी तो गाहे बगाहे देश के अलग अलग कोनों से ही नहीं विदेशों से भी लोग इस गांव का नजारा लेने जरूर आते हैं.

लमही का नया कलेवर 

शहर से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर लमही गांव बसा है जहां मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ. इस अमर कथाकार की याद में इस गांव को आज एक नया कलेवर दे दिया गया है. जैसे ही आप लमही गांव के द्वार पर पहुंचेंगे, गोदान के होरी धनिया, पूस की रात का हलकू, बूढ़ी काकी और ईदगाह का हामिद चिमटा लिए आपको अपनी दादी के साथ बैठा नजर आ जाएगा.

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गांव के प्रवेश द्वार को देखते ही इन किरदारों के जनक की छाप आपको साफ महसूस होने लगेगी. इस द्वार से प्रवेश करेंगे तो कहीं से भी आपको ये गांव गांव जैसा नजर नहीं आएगा. अगल बगल दुकानें बन गई हैं और कई पक्की इमारतें तन गई हैं. बिजली, पानी, सड़क सब चाक चौबंद. खेत को आपको यहां अब ढूंढे से नहीं मिलेंगे. करीब दस साल पहले जब मुलायम सिंह की सरकार ने इस गांव की सुध ली तब से लेकर अब तक तो मानो इस गांव की पूरी काया ही बदल गई.

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द्वार से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर चलने पर सामने आपको मुंशी जी का पैतृक आवास नजर आएगा, वहीं ठीक दूसरी ओर बीएचयू का मुुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसच सेंटर. पैतृक आवास जिनकी खिड़कियां, बारजे, छोटे छोटे कमरे आज उजली रंगत में चमक रहे हैं, पिछले साल तक उन्हीं दीवारों पर सीलन थी, दीमक ने दीवारों पर आड़ी तिरछी रेखाएं बना रखी थी.

प्रेमचंद का घर बनेगा म्यूजियम 

जिस घर में कभी प्रेमचंद ने अपनी कालजयी रचनाएं गढ़ीं, कभी न भूलने वाले किरदारों को जना, उसे न जाने कितने साल से म्यूजियम बनाने की तैयारी चल रही है. तकरीबन 12 साल पहले मुंशी जी की 125वीं जयंती पर उनके आवास को म्यूजियम बनाने का दावा किया गया था, लेकिन इन बारह साल में उधड़ चुकी दीवारों की मरम्मत कर उन पर पुताई ही हुई है.

मुंशी जी के घर के ठीक सामने आलीशान मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर का ठूंठ भवन खड़ा है. ठूंठ इसलिए क्योंकि ढाई साल पहले बनकर तैयार हुआ ये भवन अपनी सार्थकता सिद्ध नहीं कर पा रहा. केंद्र सरकार की पहल पर इस रिसर्च सेंटर की स्थापना इस उद्देश्य से की गई कि यहां मुंशी प्रेमचंद पर, उनके उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध हो सके.

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पहले तो बने बनाए इस भवन के उद्घाटन को दो साल का इंतजार करना पड़ा. पिछले साल जयंती पर इसका उद्घाटन भी हो गया लेकिन तब से लेकर आज एक साल बीतने को आए, इस भवन की दर-ओ-दीवार पर धूल के सिवा कुछ नहीं जमा, शोध क्या होता.

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साल 2005 से ही लमही को समृद्ध करने की सरकारी कोशिशें की जा रही हैं. गांव में मुंशी प्रेमचंद नाम से सरोवर भी है जिस पर पहले अवैध कब्जा हो गया था. जब गांव की सूरत बदलने की सुधी सरकारी तंत्र ने ली तब इस सरोवर को भी कब्जे से मुक्त कराया गया. पानी से भरे सरोवर के चारों तरफ पेड़-पौधों लगाए गए हैं. लाइट एंड साउंड से इस सरोवर की भी काया बदलने की कोशिश की जा रही है.

आज एक बार फिर से जब जयंती का मौका आ रहा है तो एक बार फिर से गांव को ई-विलेज बनाने की कवायदें तेज हो रही हैं. गांव के बुजुर्ग राम चंद्र कहते हैं कि हमारे लिए भगवान के बाद कोई है तो वो प्रेमचंद. अगर वो ना होते तो शायद आज हमारा गांव भी गुमनाम होता. आज यहां जो कुछ है, उन्हीं का है.

प्रेमचंद स्मारक न्यास लमही के अध्यक्ष सुरेश चंद्र दुबे कहते हैं यह बात हमेशा सालती है कि मुंशी जी के बाद इस गांव में फिर कोई कथाकार नहीं हुआ. जिस गांव की कलम से हिंदी उपन्यास जगत में नया इतिहास रचा गया, आज उस विरासत को संभालने वाला कोई नहीं हैं. गांव में अब भी कफन दुधिया, बूढ़ी काकी और निर्मला जैसे किरदार हैं लेकिन अब उनके दर्द को लिखने वाला कोई नहीं.

इस लाइब्रेरी में है मुंशी जी की कहानियों की दुनिया

पैतृक आवास से ही सटे मुंशी प्रेमचंद स्मारक स्थल पर प्रेमचंद स्मारक न्यास लमही की एक छोटी से लाइब्रेरी है, जहां उनकी कहानियों की तिलिस्मी दुनिया बसती है. मुंशी जी के उपन्यासों, कहानियों की किताबों से सजी ये लाइब्रेरी सिर्फ लाइब्रेरी नहीं, बल्कि उनकी कहानियों का मर्म यहां बसता है.

किताबों के अलावा यहां आपको ईदगाह का चिमटा भी मिलेगा जो हामिद ने अपनी दादी के लिए खरीदा था, मुंशी प्रेमचंद का पसंदीदा खेल गिल्ली डंडा भी. एक छोटे कमरे की लाइब्रेरी में उनकी होली की पिचकारी भी है और हुक्का भी.

कई ऐसी रचनाएं भी आपको यहां मिलेंगी जो कभी पूरी न हो सकीं और वो भी जिन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया. 1909 उनकी लिखी 'सोजे वतन' की वो प्रति भी है जिसे अंग्रेजों ने जला दिया था, 'समर यात्रा' जिसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था. 'मंगलसूत्र' जो अधूरी रह गई. प्रेमचंद की कहानियां, उपन्यास साहित्य के अनमोल धरोहर हैं, यही वजह है कि उनकी रचनाओं से साक्षात्कार करने दूर-दूर से लोग आते हैं.

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