इडली, दोसा और सांबर भारतीय खाने के तीन जादुई शब्द कहे जा सकते हैं. जिनको लगता है कि भारतीय खाना या कोई भी खाना बिना तेल-घी के स्वादिष्ट नहीं बन सकता, उनके लिए इडली और दोसा एक माकूल जवाब है. इसी तरह बिना प्याज़-लहसुन की अनिवार्यता वाला ये भोजन, भारतीय शाकाहारी खाने का शायद सबसे लोकप्रिय हिस्सा है.
इन तीनों के स्वाद जितनी ही रोचक इनके नामकरण की कहानी और इनका इतिहास है, जिसमें चीन, इंडोनेशिया, भाप की शक्ति और मराठा साम्राज्य शामिल हैं. चूंकि दोसा के साथ उडुपि रेस्त्रां, इंडियन कॉफी हाउस और उत्तर भारत में उसे कांटे छुरी से खाने की अजीब रवायत जैसे तमाम आयाम जुड़े हैं, इसलिए इसका ज़िक्र अलग से और विस्तार से फिर कभी करेंगे. आज बात इडली और सांबर की.
क्या आपने कभी इडली पकाने के तरीके पर गौर किया है?
हिंदुस्तानी खाने में भाप पर बहुत कम ही चीज़ें पकाई जाती हैं. आज की बात करें तो ढोकला, इडली और मोदक ही वो लोकप्रिय पकवान हैं जो भाप पर पकाए जाते हैं. चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भारत आया तो उसने लिखा कि भारत में भाप पर पकाने के लिए एक भी बर्तन नहीं था. लेकिन उस दौर में इडली खाई जाती थी. इडली का प्राचीन रूप आज से बिलकुल अलग था. तमिल साहित्य के अनुसार 10वीं-12वीं शताब्दी तक इडली सिर्फ उर्द की दाल का बना हुआ गोल गेंदनुमा पकवान था. तमिल साहित्य में इसे भोज के 18 ज़रूरी पकवानों में रखा गया है. इडली की तुलना तमिल साहित्य में चांद से की गई है. फिर सवाल उठता है कि दाल की बनी को आज का स्वरूप कैसे मिला. जवाब है 'शादी'.
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ये तो आपने सुना ही होगा कि इंडोनेशिया में भारतीय संस्कृति, रामायण का प्रभाव बहुत प्राचीन है. उस जमाने में इंडोनेशिया में हिंदू राजा हुआ करते थे. उनके दक्षिण के राज्यों से मित्रतावत संबंध थे. इन संबंधों का मूल कारण था शादी. अब ऐसे ही किसी दौर (12वीं-14वीं शताब्दी) में इंडोनेशिया से दक्षिण में एक डिश आई. इसका नाम था 'केडली'. केडली भाप पर पकाया जाने वाला पकवान था. अगर भाषा विज्ञान की तह में जाएं तो शायद केडली का केतली से भी कुछ संबंध निकले, मगर इस केडली के चलते इडली में सबसे जरूरी बदलाव हुआ.
सिर्फ उर्द की दाल में खमीर उठाना बहुत मुश्किल है. इसलिए इसमें चावल मिलाया गया. इडली बनाने का नया अनुपात बना 2 हिस्से चावल और एक हिस्सा दाल. जिसके बाद इडली में इसका जाना-पहचाना हल्का खट्टा और नमकीन स्वाद आया और ये गेंद से सही में चांद के आकार की बनी. इंडोनेशिया में आज भी चावल और नारियल की भाप पर पकी डिश 'बूरा' बनती है जिसे इडली का रिश्तेदार माना जा सकता है.
हालांकि कुछ लोग इससे अलग भी एक कहानी सुनाते हैं. ढोकला इडली से काफी पहले से गुजरात में मौजूद है. गुजरात में भाप पर पकाई जाने वाली एक डिश है इदादा. इदादा में भी खमीर उठे चावल और उर्द दाल के साथ भाप पर पकाने की तकनीक इस्तेमाल होती है. ऐसे में लोग मानते हैं कि सौराष्ट्र और तंजौर के रेशम व्यापार के चलते गुजरात से ही इडली का रास्ता मिला. वैसे इन दोनों मतों में चाहे जो आज की तारीख में इडली आपको देश के हर शहर और कस्बे में मिल जाएगी.
सांबर का मराठा तमिल कनेक्शन
आज सांबर दक्षिण भारतीय खाने का सबसे महत्वपूर्ण अंश है. मगर इसके नामकरण की कहानी महाराष्ट्र और छत्रपति शिवाजी के परिवार से जुड़ती है. संभाजी शिवाजी के भतीजे थे. शिवाजी के बाद मराठों ने तंजौर पर कब्ज़ा किया. संभाजी के बारे में कहा जाता है कि वो काफी अच्छा खाना बनाते थे. एक बार उन्होंने आमटी (खट्टी, पतली दाल) बनाना शुरू किया. संभाजी को आमटी में खट्टेपन के लिए कोकम डालना अच्छा लगता था. मगर उस दिन रसोई में कोकम नहीं था. ऐसे में संभाजी ने किसी की सलाह पर उसमें इमली मिला दी. इसके बाद जो बना वो काफी स्वादिष्ट था. इस नए प्रयोग का नाम संभाजी के नाम पर सांबर पड़ा.
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सांबर का नाम भले ही शिवाजी के भतीजे के नाम पर पड़ा हो. आज जो सांबर हम खाते हैं. वो संभाजी के प्रयोग से बिलकुल अलग है. इसमें महाराष्ट्र के कच्चे माल और तंजौर की पाक कला की मिलावट है.
पुराने तमिल साहित्य में सांबर से मिलते जुलते चांपरम नाम के खाने का ज़िक्र मिलता है. दक्षिण भारत में पुराने समय में मूंग की दाल के सबसे ज्यादा इस्तेमाल का ज़िक्र मिलता है. जबकि तूर (तूर और अरहर एक ही पौधे की दो प्रजातियां हैं) पश्चिमी घाट यानी महाराष्ट्र और गोवा के आस-पास सबसे पहले हुई. इसी तरह से इसमें पड़ने वाली सब्ज़ियों में भी समय-समय पर बदलाव आए. टमाटर, लाल मिर्च, गाज़र और आलू भारत में पुर्तगालियों के साथ आए तो सांबर में इनको मिलने में एक लंबा दौर लगा. इसी के चलते दक्षिण के पूजा-पाठ और श्राद्ध से जुड़े खानों में इन सब्ज़ियों के इस्तेमाल से बचा जाता है.
सांबर सिर्फ अपने नाम की वजह से खास नहीं है. बिना प्याज़-लहसुन के बनने वाली ये डिश खाने में प्रोटीन का अच्छा खासा योगदान देती है. दक्षिण के सभी राज्य अपने आप में अलग हैं. इसलिए इन सभी राज्यों का सांबर और उसे खाने का तरीका भी अलग है. तमिलनाडु में पहले सांबर परोसा जाएगा और उसके बाद रसम. कर्नाटक में ठीक इसका उल्टा होगा. तमिलनाडु के सांबर में सूखे पिसे मसाले पड़ते हैं तो कर्नाटका में गीले. कर्नाटक के ही तुलु इलाकों का सांबर थोड़ा मीठा होता है. केरल के सांबर को कच्चा केला और नारियल एक अलग आयाम देता है. दक्षिण भारत में अलग-अलग तरह के सांबर के नाम भी अलग हैं. कर्नाटक में हुली, केरल में युली, तुलु में कोड्डेल.
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इडली और सांबर देश और दुनिया भर में लोकप्रिय हैं. इनको लेकर तमाम प्रयोग हुए हैं. छोटी-छोटी बटन इडली, 1.5 किलो की बड़ी सी इडली, मसाला इडली, चॉकलेट इडली, रवा इडली और न जाने कौन-कौन सी इडली. इसी तरह चिकन सांबर, टिफिन सांबर, जैसे तमाम सांबर भी बने. इनमें से कईयों के स्वाद भी अच्छे हैं, लेकिन जो मज़ा गर्मागरम सांबर में डूबी सफेद नर्म इडली को खाने में है, वो कहीं और नहीं.
(लेखक स्वतंत्र तौर पर लेखन का कार्य करते हैं)
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