कभी सेंवइयां हाथ में लेकर देखी हैं, छूते ही टूट जाती हैं ये. शायद टूटकर दिखाना चाहती हैं, बताना चाहती हैं अपने अंदर के बसे मजबूत पैगाम को. बनारस की ये नाजुक सी सेंवइयां गंगा-जमुनी तहजीब का मजबूत रिश्ता गूंथती हैं.
ईद की सेंवइयां मुस्लिमों के लिए हिंदू भाई बनाते हैं. यही तो काशी की खास बात है, होली के रंग मुस्लिम भाई तैयार करते हैं तो सेंवइयों की जिम्मेदारी हिंदू परिवारों ने कई पीढ़ियों से अपने कंधों पर उठा रखी है.
बनारस के भदऊं इलाके में ऐसे करीब 50 हिंदू परिवार हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के इस कारोबार को जिंदा रखा है. इन घरों में यूं तो बारहों महीने सेंवई बनाने का काम होता है लेकिन ये रमजान के दो तीन महीने पहले काम में तेज़ी आ जाती है और आए भी क्यूं ना.
बनारस की ये खास सेंवई देश भर में जो मशहूर हैं. इस वक़्त भदऊं इलाके में आपको करीब हर घर की छत पर कपड़ों की जगह सेंवई के लच्छे के लच्छे सूखते नजर आ जाएंगे.
बनारसी पान और साड़ी की तरह बनारसी सेंवई भी मशहूर
बनारस का नाम आते ही जिस तरह बनारसी पान और बनारसी साड़ियां जेहन में आती हैं, ठीक वैसे ही यहां की बनारसी सेंवइयां भी मशहूर हैं. यहां बनी सेंवइयों की मिठास सिर्फ पूर्वांचल और उत्तर प्रदेश तक नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता जैसे शहरों तक है.
ईद के लिए खास तौर से लोग यहीं से सेंवई ले जाना पसंद करते हैं. लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों में तो कारोबारी यहां से सेंवई ले जाकर अपने ब्राण्ड से बेचते हैं. ये बनारसी सेंवई की खासियत ही है कि बनारस के लोग भी अपने दूर-दराज के रिश्तेदारों को खास तौर से यहां की किमामी सेंवई तोहफे के तौर पर देते हैं.
बाल बराबर महीन सेंवइयां यहां की खासियत
बनारसी सेवइयों के दीवाने पूरे देश भर में हैं. इन सेवइयों की सबसे बड़ी खासियत इनकी बारीकी और साफ-सफाई है. पीढ़ियों से सेंवई बनाने का काम कर रहे वाराणसी सेंवई एसोसिएशन के सेक्रेटेरी सच्चेलाल अग्रहरी बताते हैं कि यहां की सेवइयां बाल के बराबर जितनी बारीक होती हैं.
माना जाता है कि सेंवई जितनी ज्यादा बारीक होगी, उतनी अच्छी होती है. मार्केट में इस सेंवई की ही डिमांड सबसे ज्यादा है. हालांकि ये बारीक सेंवइयां कम ही उतर पाती हैं. सच्चेलाल का कहना है कि एक क्विंटल में करीब 20 से 25 किलो सेंवई ही उतर पाती हैं.
लाखों का होता है कारोबार
बनारस में सेंवई खास तौर से किमामी सेवईं का बहुत बड़ा कारोबार है. वैसे तो साल भर दुकानों पर चहल-पहल रहती है लेकिन रमजान शुरू होते ही दुकानों पर भीड़ बढ़ जाती है.
ईद के सप्ताह भर पहले से दुकानों पर पैर रखने की जगह नहीं मिलती. यहां एक माह में ही लाखों का कारोबार होता है. इस व्यापार से जुड़े लोग बताते हैं कि ईद के मौके पर कुछ ही दिनों में 50 हजार क्विंटल से अधिक सेंवइयां बिक जाती हैं. सेंवई बनाने का काम रमजान के तीन से चार महीने पहले शुरू हो जाता है.
50 से अधिक सेंवई कारखाने
बनारस में अब केवल राजघाट स्थित भदऊं में ही सेंवई बनाने का कारोबार जिंदा है. पहले रेवड़ी तालाब, मदनपुरा और दालमंडी में भी सेंवइयां बनती थीं लेकिन अब वहां के कारखाने बंद हो गए हैं. भदऊं इलाके में पांच दशक पहले हाथ से सेंवइयां पारी जाती थीं. स्वर्गीय बिहारीलाल 'सेंवई वाले' आज से क़रीब 55-60 साल पहले हाथ से सेंवई बनाने की कला ईजाद की थी.
करीब 30 साल पहले सेंवई बनाने के वाली मशीन आ गई. मशीन भले आ गई लेकिन इसमें मेहनत आज भी उतनी ही लगती है. यहां मौजूदा वक्त में सेंवई के करीब 50 प्लांट हैं. रोजाना एक प्लांट से करीब दो से तीन क्विंटल सेंवई तैयार होती है.
ऐसे बनती है ईद की सेंवईं
सेंवई के कारोबारी अनंत लाल केशरी बताते हैं कि इस इलाके में करीब 3 से 4 पीढ़ियों से ये काम हो रहा है. पहले हाथ से सेंवइयां पारी जाती थीं लेकिन अब पिछले कई साल से ये काम मशीन से होने लगा है.
मशीन में गूंथे हुए मैदे को डाला जाता है और अलग-अलग जाली में डालकर इसे उतारा जाता है. इसके बाद इसे छत पर धूप में सुखाया जाता है. नन्द लाल मौर्या बताते हैं कि लोगों ने हमारी नक़ल करनी चाही लेकिन कर नहीं पाए. कई मुसलमानों ने भी ये काम शुरू किया लेकिन सफल नहीं हो पाए.
भदऊं से ही पूरे शहर को सेवईं सप्लाई की जाती है और वहां से ये दूसरे शहरों को जाती हैं. ये सेंवइयां मार्केट में 50 रुपये से लेकर 150 रुपए किलो तक मिलती हैं.
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