राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट. ये कहावत शायद हिंदी जानने वाले हर आदमी ने सुनी होगी. भारत में राम को लेकर समय-समय पर विमर्श बदलते रहे. देश का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली प्रभु श्रीराम के घर वापस आने का त्योहार है. देश की आज की राजनीति का बड़ा मुद्दा भी राम से जुड़ा है. राम-राम उत्तर भारत का बड़ा प्रचलित संबोधन है. जय श्री राम समय के साथ राजनीतिक संघर्ष का नाम बन गया है. हर बालक में राम हैं से 'बच्चा-बच्चा राम का' तक कई राम हैं.
हिंदी में कबीर के राम अलग हैं. तुलसी के राम अलग हैं. इसके बाद निराला के राम और अलग हैं. रामानंद सागर ने अपने सीरियल में कई अलग रामकथाओं का मिश्रण कर एक नए राम को सामने रखा. उसी के आसपास राम लहर ने रामलला को एक और आयाम दे दिया. जो राम कबीर और तुलसी के लिए निवृत्ति का साधन थे, समय के साथ राजनीतिक प्रवृत्ति बन गए.
रामायण और राम को लेकर बहुतों ने लिखा है. बहुत से विद्वानों ने बात कही है. चलिए एक तरफ डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की मानें तो रामकथा की छोटी मोटी बारीकियों को छोड़कर मूल भाव को समझना चाहिए. ये शायद रामकथा के बारे में कही गई सबसे सटीक बातों में से एक है. इसको समझने के लिए रामकथा के सीक्वेंस को दूसरी तरह से देखते हैं.
तुलसी के पहले के राम
लोग तुलसीदास के पहले के राम को वाल्मीकि का राम कह देते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. तुलसीदास के पहले की रामकथा में वाल्मीकि रामायण की मूलकथा तो है ही लेकिन इसमें सहस्त्राब्दियों के थपेड़े, अलग-अलग लोक संस्कृतियों की झलक दिखती है. आसानी से समझें तो आज के समाज में नारीवाद, जाति व्यवस्था, समानता के अधिकार, वैवाहिक संस्था वैसी नहीं हैं जैसी 2000 साल पहले थीं. भारत का शादी का कल्चर वैसा नहीं जैसा तुर्की, बाली, इंडोनेशिया में है. इन सबका असर रामकथा पर है.
उदाहरण के लिए जैन धर्म का अवतार ब्रह्मचारी और अहिंसक ही होगा. ऐसे में राम न तो रावण को मार सकते हैं, न सीता के पति हो सकते हैं. ऐसे में पउमंचरिय(जैन रामायण) में राम और सीता भाई बहन हैं. राम रावण की हत्या भी नहीं करते. रावण और लक्ष्मण एक दूसरे में समाहित हो जाते हैं. इसी तरह पॉलीगैमी वाले तुर्की में खोतानी (तुर्की रामायण) राम और लक्ष्मण दोनों की शादी सीता से करा देती है. ऐसे अनंत उदाहरण हैं. आज की रामलीला में रावण के दरबार में कजरारे और चिटियां कलाईयां बजता सुनाई दे जाता है. स्वतंत्रता संग्राम के समय की रामलीला में ‘फिरंगी राक्षस’ के आने की भी बातें लिखी गई हैं. भक्तिकाल में कबीर के राम भी इसी परंपरा का हिस्सा हैं. मंदिरों के अंदर कैद चेतना टूटी तो राम कैसे एक मानव रूप में बंध सकते थे? कबीर के राम लोक के राम हैं. इसीलिए वो दुलहनी गावहुं मंगलचार भी कहते हैं. साथ ही ये भी कहते हैं कि दसरथ सुत तिहुं लोक बखाना, मर्म न कोहू जाना.
तुलसी के बाद के राम
लोहिया तुलसी को रक्षित कवि कहते हैं. मतलब जब डूबते हुए समाज को एक नायक की जरूरत थी तो तुलसी ने चेतना में बसे आराध्य राम को दशरथ सुत राम के साथ मिला दिया. कई बातों को महानायक बनाने के लिए बदल दिया गया. उदाहरण के लिए, वाल्मीकि की रामायण में अहिल्या को पता होता है कि वो इंद्र के साथ संभोग कर रही हैं. तुलसी की रामायण में वो छल का शिकार होती हैं. मानस लिखे जाने का समय देखें तो ये बदलाव बहुत चौंकाता नहीं है. इसी तरह से वाल्मीकि रामायण में हनुमान सागर को तैर(संतरण) कर पार करते हैं. तुलसी के हनुमान ‘तुरत पवनसुत बत्तिस भयहु’ होकर महामानव होने का विश्वास भरते हैं. ये विश्वास इतना पक्का है कि आज भी डरते समय मुंह से ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवे’ निकल ही पड़ता है.
तुलसी की रामायण ने राम की अवधारणा को बहुत बदला. युद्ध के समय बहुत सी ऐसी बातें करनी पड़ती हैं जो हम सामान्य समय में नहीं करते. तुलसी अपने समय में एक तरह का युद्ध कर रहे थे. ऐसे में गुणहीन विप्र को पूजने, नारी और शूद्र को ताड़ना देने (इसका अर्थ पीटना ही होता है) जैसी बातें हो जाती हैं. तुलसी के राम शबरी के जूठे नहीं चुने हुए बेर खाते हैं. लेकिन तुलसीदास ने रामकथा में चली आ रही कई गलत बातों को हटा दिया.
तुलसी शंबूक वध को जस्टिफाई नहीं करते. वो राम की राजगद्दी पर रामायण खत्म कर आगे बढ़ जाते हैं, ताकि गर्भवती सीता को जंगल भेजने के फैसले पर बात न करनी पड़े. ऐसे में सोचा जा सकता है कि राम कथा में एक बार फिर बदलाव हों. एक नए नजरिए से राम को देखा जाए. लेकिन ऐसा करेगा कौन?
रामायण सीरियल के राम
रामायण सीरियल ने देश में एक पूरी पीढ़ी को राम कथा का ज्ञान दिया. लेकिन संस्कृति टीवी सीरियल के आधार पर नहीं बननी चाहिए. रामायण सीरियल पर राम को समझना खतरनाक है. नीम हकीम के खतरा-ए-जान से कहीं ज्यादा. न वाल्मीकि, न तुलसी ने ये कहा कि सीता को लक्ष्मण रेखा पार की इसलिए उसका हरण हुआ. तुलसी की मानस में मंदोदरी इसका हल्का सा जिक्र करती हैं. लेकिन सीता को दोषी नहीं ठहराया गया है. मगर आज के समाज में बंगाल के काले जादू वाले काल में लिखी गई कृतिवास रामायण की ये कथा प्रमुख कथा बन गई. इसी तरह भारी बोझ के लिए पहाड़ उठा लाने की कहावत, हनुमान बने दारा सिंह के सीधे-सीधे पहाड़ उठा लेने की कहानी बन गई. इसका आफ्टर अफेक्ट देखिए. आज हनुमान चालीसा के तुम रक्षक काहू को डरना वाले राम की जगह गाड़ियों के पीछे गुस्से में घूरते हनुमान ज्यादा दिखाई देते हैं.
रामकथा इस देश की चेतना और संस्कृति का हिस्सा है. इसीलिए इसका इस्तेमाल धर्म की राजनीति के प्रतीक के तौर पर सबसे ज्यादा हुआ है. इन सबके बावजूद जावेद अख्तर के लिखे एक गीत की पंक्ति राम होने के मर्म को बेहतरीन ढंग से समझाती है.
राम ही तो करुणा में हैं, शान्ति में राम हैं राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं राम बस भक्तों नहीं, शत्रु की भी चिंतन में हैं देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं
जय श्री राम
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