' आंख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो '
जिंदगी की हकीकत और रूमानियत को लफ्जों में पिरोकर खूबसूरत अहसास दिलाने वाले शायर का नाम है राहत इंदौरी.
उर्दू के मशहूर शायर और फिल्म गीतकार राहत इंदौरी की नई किताब दस्तक दे चुकी है. राहत इंदौरी की नई किताब ‘मेरे बाद’ का लोकार्पण दिल्ली के कनॉट प्लेस में मौजूद ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में किया गया.
राहत इंदौरी की गजलों का संकलन है ‘मेरे बाद.’ राजकमल प्रकाशन ने इस संकलन को प्रकाशित किया है. लांचिंग के मौके पर श्रोताओं को दिल को छू जाने वाली गजलें सुनने को मिली.
राहत इंदौरी ने कहा, 'इस बार हिंदी में जो किताब आई है, उम्मीद है उससे मेरी आवाज, मेरी शायरी और लोगों तक पुहंचेगी.’
किताब की भूमिका में जाने-माने कवि और लेखक अशोक चक्रधर लिखते हैं, ‘मुशायरे या कवि-सम्मेलन में वे कमल के पत्ते पर बूंद की तरह रहते हैं. जिस शायर के लिए खूब देर तक खूब सारी तालियां बजती रहती हैं, उनका नाम है राहत इंदौरी. उनका होना एक होना होता है. वे अपनी निज की अनोखी शैली हैं, दुनियाभर के सैकड़ों शायर उनका अनुकरण करते हैं.‘
राहत का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता रफतउल्लाह कुरैशी कपड़ा मिल में कर्मचारी थे. इंदौर के नूतन स्कूल से शुरुआती तालीम के बाद उन्होंने इस्लामिया कॉलेज इंदौर और बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से उर्दू साहित्य में पढ़ाई की.
साल 1975 में उन्होंने मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
राहत इंदौरी ने इंदौर के इंद्रकुमार कॉलेज में उर्दू साहित्य पढ़ाना शुरू कर दिया. इसी दरम्यान वो मुशायरों में भी शामिल होने लगे. जल्द ही उनकी शायरी के लोग मुरीद होते चले गए.
शायरी में उनकी लफ्जों की बाजीगरी और खास शैली लोगों के दिले जेहन में अपनी जगह बनाती चली गई. महज 4 साल के भीतर ही राहत की गजलें और शायरियां उर्दू साहित्य की दुनिया में मशहूर होती चली गईं. सीधे आसान शब्दों के भीतर छिपी गहराई पढ़ने-सुनने वालों को अपनी तरफ खींचने लगी.
मात्र19 साल की उम्र से शायरी का सिलसिला शुरू करने वाले राहत मशहूर शायरों की महफिल में किसी कलाम से सुनाई देने लगे. राहत की शायरी में रुमानियत है तो शिकायत भी. अफसोस है तो बगावत भी. रिश्तों की गहराई है तो टूटते रिश्तों की तड़प भी.
उनकी गजले पुरजोर सुकून देती हैं. ऐसा लगता है कि मानों एक खामोशी सादगी से अपनी मासूमियत बयां कर रही हो जैसे.
उर्दू की नफासत के रहनुमा हैं राहत. उर्दू साहित्य की विरासत हैं राहत. उनकी तहरीरों के लफ्ज दिलों में उतरने के लिये ही बेताब रहते है.
' मेरी ख़्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे,
मेरे भाई, मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले '
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