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कौन सा है वो राग जिसे गाते वक्त मेहदी हसन को लगता था बेसुरे होने का डर!

इस राग पर ही आधारित है मशहूर कव्वाली- चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा

Updated On: Jul 15, 2018 10:37 AM IST

Shivendra Kumar Singh Shivendra Kumar Singh

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कौन सा है वो राग जिसे गाते वक्त मेहदी हसन को लगता था बेसुरे होने का डर!

मधुर भंडारकर रियलस्टिक फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं. चांदनी बार, पेज 3, कॉरपोरेट, फैशन जैसी फिल्मों ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक कामयाब डायरेक्टर की छवि दी है.

पिछले ही साल उन्होंने एक और फिल्म बनाई थी- इंदू सरकार. इस फिल्म की रिलीज को लेकर काफी बवाल हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि ये फिल्म भारत में लगी इमरजेंसी पर केंद्रित थी. कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि इस फिल्म के जरिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है.

फिल्म में देश में 19 महीनों तक लगी इमरजेंसी के बारे में दिखाया गया है. यही वजह थी कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी और बाद में कुछ ‘कट’ के साथ फिल्म को रिलीज करने की इजाजत मिली. फिल्म में कीर्ति कुलहरि, नील नितिन मुकेश और अनुपम खेर जैसे कलाकारों ने अभिनय किया था.

इस फिल्म को एक और वजह से याद किया जाता है. दरअसल इस फिल्म का संगीत अनु मलिक और बप्पी लाहिड़ी का था और उन्होंने इस फिल्म में गुजरे जमाने की एक बेहद पॉपुलर कव्वाली को शामिल किया था. जिसके संगीत को री-अरैंज किया गया था. पहले आपको वो कव्वाली सुनाते हैं और फिर करेंगे आज के राग की बात.

दरअसल ये कव्वाली असल में मशहूर फनकार अज़ीज़ नाज़ा की गाई हुई है. अज़ीज़ नाज़ा कव्वाली का बहुत बड़ा नाम थे. बचपन में पिता के गुजर जाने के बाद उन्होंने बहुत कम उम्र में ही कव्वाल पार्टी के साथ काम करना शुरू कर दिया था. सत्तर के दशक में ‘झूम बराबर झूम शराबी’ जैसी कव्वाली ने उन्हें कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया था. इसके बाद अज़ीज़ नाज़ा को कई हिंदी फिल्मों में गाने का मौका भी मिला.

80 के दशक में एचएमवी ने उनकी एक और कव्वाली रिलीज की. जिसके बोल थे- 'चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा.' इस कव्वाली ने नाज़ा साहब को मशहूर किया और ऊंचाई दिखाई. 1992 में वो दुनिया से रुखसत हुए. मधुर भंडारकर जब इंदु सरकार बना रहे थे तो उन्हें महसूस हुआ कि इस कव्वाली की फिल्म में बड़ी प्रासंगिकता है. फिल्म के संगीतकार अज़ीज़ नाज़ा के बेटे मुज्तबा से पहले ही मिल चुके थे. उन्होंने और मुज्तबा ने इस बारे में बातचीत की और तय हुआ कि इस कव्वाली को फिल्म में मुज्तबा की आवाज में रिकॉर्ड किया जाएगा. मुज्तबा की आवाज में रिकॉर्ड की गई कव्वाली तो हम आपको सुना ही चुके हैं. अब आइए आपको सुनाते हैं अज़ीज़ नाज़ा साहब की आवाज में गाई गई असली कव्वाली- 'चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा'

ये कव्वाली शास्त्रीय राग भूपेश्वरी की जमीन पर है. इस राग को भूपेश्वरी के अलावा भूपश्री और भूपकली के नाम से भी जाना जाता है. अगर आप ग़ज़लों के शौकीन हैं तो आपने मेहदी हसन साहब नाम जरूर सुना होगा. हसन साहब दरअसल दुनिया भर में ग़ज़ल का पर्याय हैं. उन्हें गज़ल के टाइटैनिक फिगर से लेकर बड़ी-बड़ी उपाधियों से नवाजा गया है. लता मंगेशकर ने एक बार कहा था कि मेहदी हसन साहब की आवाज सुनकर लगता है कि उनकी आवाज में ईश्वर बसे हुए हैं. कोई उन्हें ग़ज़ल सम्राट कहता है कोई ग़ज़ल शहंशाह.

आपको उनकी गाई एक बेहद लोकप्रिय ग़ज़ल सुनाते हैं जो राग भूपेश्वरी में ही कंपोज की गई है. बोल हैं- 'अबकी हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें.' इस ग़ज़ल को लाइव गाते समय मेहदी हसन बताते थे कि उन्हें इस ग़ज़ल के लिए मन्ना डे से कितनी तारीफ मिली थी. वो ये भी बताया करते थे कि इस राग के सुर इतने मुश्किल हैं कि उन्हें इसे गाते वक्त खुद में ये डर लगा रहता है कि कहीं वो बेसुरे ना हो जाएं. इसके अलावा एक और क्लिप देखिए जिसमें भारत रत्न से सम्मानित गायिका लता मंगेशकर अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर की कंपोजीशन में इसी राग में एक गैर फिल्मी गीत रिकॉर्ड किया है.

आइए अब आपको इस राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग भूपेश्वरी बहुत ही दुर्लभ किस्म का राग है. इस राग का रिवाज अब नहीं के बराबर हैं. अब लोग इसे ना के बराबर गाते हैं. ये राग भूपाली के बहुत ही करीब का राग है. राग भूपेश्वरी को गाने बजाने का समय सुबह का दूसरा प्रहर माना जाता है. इस राग का वादी स्वर ‘प’ और संवादी स्वर ‘स’ है. राग भूपाली और राग भूपेश्वरी के बीच का फर्क सिर्फ स्वर ‘ध’ का है. राग भूपेश्वरी में कोमल ध लगता है. जबकि राग भूपाली में शुद्ध ‘ध’ लगता है. आइए आपको राग भूपेश्वरी का आरोह अवरोह भी बताते हैं-

आरोह- सा रे ग प ध (कोमल) स अवरोह- स ध (कोमल) प ग रे सा

राग भूपेश्वरी के नोटेशन को जानने के लिए आप ये वीडियो देख सकते हैं.

आइए अब आपको राग भूपेश्वरी के शास्त्रीय पक्ष की अदायगी के लिए कुछ वीडियो क्लिप दिखाते हैं. पहली क्लिप में जयपुर अतरौली घराने की विश्वविख्यात गायिका अश्विनी भीड़े देशपांडे राग भूपेश्वरी गा रही हैं. उनकी गायकी में आपको मेवाती और पटियाला घराने की गायकी की झलक दिखती है. दूसरी क्लिप में बेगम परवीन सुल्ताना का गाया राग भूपेश्वरी सुनिए. जिसमें वो एक भजन सुना रही हैं. बेगम परवीन सुल्ताना ने तमाम हिंदी फिल्मों के लिए प्लेबैक सिंगिग भी की है. उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया है.

राग भूपेश्वरी के वादन पक्ष को समझने के लिए एक बेहद ही प्रतिष्ठित कलाकार पंडित रोनू मजूमदार का बजाया राग भूपेश्वरी आपको सुनाते हैं. अपने शास्त्रीय संगीत के अलावा रोनू दादा ने कई हिंदी फिल्मों के लिए भी बांसुरी बजाई है. पंडित रोनू मजूमदार को आरडी बर्मन बहुत प्यार करते थे और उनकी तमाम फिल्मी गानों की धुनों में आप रोनू मजूमदार दादा को बांसुरी बजाते सुन सकते हैं. फिलहाल सुनिए रोनू दादा का बजाया राग भूपेश्वरी

राग भूपेश्वरी की कहानी में इतना ही. अगले हफ्ते एक और नए राग के साथ आपसे होगी मुलाकात.

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