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दुनिया के मूर्खों एक हो, ये दौर मूर्खता के भूमंडलीकरण का है!

दुनिया के मूर्खों एक हो का नारा कभी लगा नहीं. लेकिन मूर्ख इस तरह एक हुए कि पूरी दुनिया उन्हीं की हो गई

Updated On: Apr 01, 2018 11:38 AM IST

Rakesh Kayasth Rakesh Kayasth

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दुनिया के मूर्खों एक हो, ये दौर मूर्खता के भूमंडलीकरण का है!

आज 1 मई नहीं बल्कि 1 अप्रैल है, मजदूर दिवस नहीं, मूर्ख दिवस. न जाने ये नारा कब से चलता आया है- दुनिया के मजदूरों एक हो. मजदूर कभी एक नहीं हुए. दूसरी तरफ `दुनिया के मूर्खों एक हो' का नारा कभी लगा नहीं. लेकिन, मूर्ख इस तरह एक हुए कि देखते-देखते पूरी दुनिया उन्हीं की हो गई.

एक समय था जब विश्व के अलग-अलग कोनों में मूर्खता की कलकल करती छोटी-छोटी धाराएं बहती थीं. हर कुदरती चीज की तरह मूर्खता की ये धाराएं भी नायाब मानी जाती थीं. लोग इन मूर्ख धाराओं के आजू-बाजू खड़े होकर कहकहे लगाते थे और तरोजाजा होकर अपने काम पर लौट आते थे.

लेकिन कुदरत ने करवट ली और मूर्ख धाराएं अचानक नियाग्रा फॉल की तरह प्रचंड हो गई. इन उफनती धाराओं ने दुनिया के एक बड़े हिस्से को ढंक लिया. कहना गलत नहीं होगा कि मूर्ख धारा ही आज इस संसार की मुख्य धारा है. अगर आप इस धारा का हिस्सा बने तो ठीक, नहीं बने तब भी ये अापको अपने साथ बहा ले जाएंगी.

गर्व से कहो हम मूर्ख हैं

अपने आसपास मूर्खों की मौजूदगी का सबसे बड़ा फायदा ये है कि खुद के समझदार होने का भ्रम बना रहता है. एक अक्लमंद कभी दूसरे को खुद से बड़ा अक्लमंद नहीं मानता.

लेकिन, मूर्खों में ये दरियादिली होती है. वे हमेशा सामने वाले को खुद से बड़ा मूर्ख मानते हैं. मूर्खता के महासाम्राज्य की स्थापना का असली आधार यही उदारता है.

April Fools Day

एक समय था जब मूर्खता एक तरह की गाली हुआ करती थी

एक समय था, जब मूर्खता एक तरह की गाली हुआ करती थी. अब बुद्धिजीवी गाली है. गाली नहीं बल्कि महागाली है. अगर आपको अब भी शक है कि तख्तापलट हो चुका है तो आप सचमुच......खैर छोड़िये.

वैसे एक बात याद दिला दूं, राजनीति ही नहीं समाज में भी फायदा हमेशा बहुमत के साथ चलने वालों का होता है. इसलिए शर्म का लबादा उतार फेंकिये और नारा बुलंद कीजिये- गर्व से कहो हम मूर्ख हैं.

शुरू में थोड़ी दिक्कत होगी...लेकिन जब एक बाहर मूर्खधारा की मुख्यधारा में तैरना सीख जाएंगे तो आनंद बहुत आएगा. कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये एक आजमाया हुआ नुस्खा है...बाकि मानना न मानना आपकी मर्जी.

मूर्खता मानवता की सबसे बड़ी धरोहर

दुनिया की कोई भी विचारधारा हो उसके अनुयायियों की कथनी और करनी में बहुत फर्क पाया जाता है. लेकिन मूर्खता के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि यह महज एक विचारधारा नहीं संपूर्ण जीवन दर्शन है.

मूर्खता मानवता की सबसे बड़ी धरोहर है और हर हाल में इसकी रक्षा होनी चाहिए. दुनिया भर के मूर्खों में इस बात को लेकर एक तरह का अघोषित समझौता होता है. यही वजह है कि चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति का होता है और जीत के लिए यज्ञ भारत में किये जाते हैं.

ट्रंप राष्ट्रपति बने तो कई लोगो ने मनौती पूरी होने की खुशी में नारियल फोड़े. उधर जोश में आये ट्रंप समर्थकों ने कई भारतीयों के सिर फोड़े और कुछ को जान से मार डाला. लेकिन, भारतीय मूर्खों ने दिल पर पत्थर रख लिया और मुंह से एक शब्द भी नहीं कहा, क्योंकि उन्हे पता है कि कुछ लोगों की जिंदगी से बड़ी विचारधारा है.

लेट्स मेक अमेरिका फूल अगेन

अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नारा बुलंद किया- लेट्स मेक अमेरिका ग्रेट अगेन. दुनिया के कई इलाकों और अमेरिका में भी बहुत से लोगो ने ग्रेट की जगह फूल सुना.

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महानता का मूर्खता के साथ बहुत दिलचस्प रिश्ता है

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वैसे महानता का मूर्खता के साथ बहुत दिलचस्प रिश्ता है. महानता एक खूबसूरत एहसास है, जो आमतौर पर दुनिया के सबसे बड़े मूर्खों को होता है और मूर्खता वो एहसास है जो मूर्ख को कभी नहीं होता, लेकिन उसे झेलने वाले आदमी को हमेशा होता है.

अमेरिका की महानता की नींव खोदी जा रही है. मेक्सिको और अमेरिका के बीच जो दीवार खिंचेगी वो महानता की निशानी होगी या मूर्खता की ये अभी तय नहीं है और शायद कभी तय नहीं हो पाएगा. वैसे अपनी कौम को महान बनाने वाले ट्रंप अकेले नेता नहीं हैं.

इडियट एस्टेट 

मिडिल ईस्ट की मूर्खता अब विकराल रूप ले चुकी है. चेहरा पर नकाब चढ़ाये इंकलाबी मध्य-पूर्व ही नहीं पूरी दुनिया को फिर से वहीं ले जाने की तैयारी कर रहे हैं जहां आज से एक हजार या बारह सौ साल पहले थी. आइसिस इस्लामिक एस्टेट नहीं बल्कि इडियट स्टेट है.

इराक और सीरिया में मूर्खता की महागाथा इस तरह लिखी जा रही है कि बाकी दुनिया के तमाम मूर्ख चाहकर भी उस स्तर को छू नहीं सकते.

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मूर्खता कभी हदों और सरहदों में नहीं बंधती.

हाल ही में गलती से मेरी नजर एक वीडियो पर पड़ गई. एक जेहादी मोबाइल पर जोशीली तकरीर रिकॉर्ड कर रहा था. लेकिन इससे पहले कि सेल्फी खत्म हो, सेल्फ गोल हो गया. मोबाइल में जबरदस्त धमाका हुआ.

जेहादी को जन्नत में 72 हूरे मिलेंगी या नहीं इसका फैसला तो कयामत के दिन ही होगा, लेकिन 72 हूरों की आस लिये दुनिया के न जाने कितने नौजवान चोरी-छिपे मिडिल-ईस्ट पहुंच रहे हैं. आइएस का हिस्सा बनने. सचमुच मूर्खता कभी हदों और सरहदों में नहीं बंधती.

मूर्खता से धरती को कौन बचाएगा?

ये दौर दुनिया भर में मूर्खता के सशक्तिकरण का है. आपने सूडो सेक्यूलर, सूडो लेफ्टिस्ट, सूडो नेशलिस्ट ये सब तो खूब सुने होंगे पर क्या कभी `सूडो फूल' सुना है? मेरा दावा है,कभी नहीं सुना होगा क्योंकि मूर्खता हमेशा खालिस होती है.

चाहकर भी कोई इसमें मिलावट नहीं कर सकता, ज्ञान का प्रसार हुआ, सैकड़ों आविष्कार हुए. हजारों वैज्ञानिकों, लेखकों, चिंतकों और कवियों ने अलग-अलग समय इस धरती पर जन्म लिया.

लेकिन, ये सब मिलकर भी मूर्खता का कुछ नहीं बिगाड़ पाये. तरह-तरह की आपदाओं के बावजूद मूर्खता ने ना सिर्फ अपने आपको बचाये रखा बल्कि दुनिया की मुख्यधारा भी बन गई.

एक पौराणिक आख्यान है. इस धरती को रसातल से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था. वराह यानी सूअर का रूप धरकर भगवान सागर के तल में गये और अपने थूथन पर पृथ्वी को उठा लाये. लेकिन वो समय कुछ और था.  वो समुद्र भी प्राकृतिक था. मूर्खता का यह महासागर मानव-निर्मित है....कोई अवतार भला इसमें कहां तैर पाएगा?

(यह लेख पिछले साल 1 अप्रैल को प्रकाशित हुआ था. हम इसे फिर से प्रकाशित कर रहे हैं)

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