साल 1964 की बात है. ऋषिकेश मुखर्जी एक फिल्म बना रहे थे- सांझ और सवेरा. सेवंतीलाल शाह फिल्म के प्रोड्यूसर थे. फिल्म में मुख्य भूमिका में गुरूदत्त, मीना कुमारी और महमूद थे. फिल्म में संगीत शंकरलाल जयकिशन का था. इस फिल्म में महमूद पर फिल्माया गया एक गाना बेहद लोकप्रिय हुआ. दरअसल, फिल्म की डिमांड के हिसाब से इस गाने का फिल्मांकन अच्छा खासा नाटकीय था. ये ऋषिकेश मुखर्जी और शंकर जयकिशन की ही हिम्मत थी कि ऐसे मौके पर भी उन्होंने कोई हल्की फुल्की कंपोजीशन की बजाए गंभीर काम किया. यही गंभीरता थी कि आज भी इस गाने की लोकप्रियता बरकरार है.
जरा सोचिए पचास साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी अक्सर ये गाना किसी रिएलिटी शो में कोई प्रतिभागी गा रहा होता है. इसके पीछे की वजह थी इस गाने की शास्त्रीयता, जिसे मोहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर ने बेहद संजीदगी से निभाया था. फिल्म की जरूरत के हिसाब से फिल्मांकन जितना ही नाटकीय था, गाना उतना ही संजीदा और खूबसूरत. आइए आपको वो गाना सुनाते हैं.
इस गाने के संगीत पक्ष की बात करें उससे पहले थोड़ी सी बात गुरूदत्त की. ये दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ये फिल्म अभिनेता गुरूदत्त की आखिरी फिल्म साबित हुई. 10 अक्टूबर 1964 को सिर्फ 39 साल की उम्र में जब गुरूदत्त का निधन हुआ तो ये आखिरी फिल्म थी जो पूरी हुई थी. उस दौरान वो अभिनेत्री साधना के साथ ‘पिकनिक’ और के आसिफ के साथ ‘लव एंड गॉड’ कर रहे थे. पिकनिक तो उनके निधन के बाद बन ही नहीं पाई और ‘लव एंड गॉड’ करीब बीस साल बाद संजीव कुमार को लेकर रिलीज हुई. ऐसा कहा जाता है कि गुरूदत्त का निधन जरूरत से ज्यादा शराब और नींद की गोलियां लेने की वजह से हुआ था लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि वक्त ने असमय एक बहुत बड़े कलाकार को सिनेमा फैंस से छीन लिया. आज के गीत और उसके संगीत की कहानी पर आगे बढ़ने से पहले आप गुरूदत्त पर बनाई गई ये रिपोर्ट देख सकते हैं.
चलिए अब लौटते हैं अपने आज के गाने पर. अजहूं ना आएं बालमा, ये सुमन कल्याणपुर के गाए बेहद लोकप्रिय गानों में से एक है. इस गाने को संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन ने शास्त्रीय राग मधुवंती की जमीन पर तैयार किया था. इस फिल्म में गायकी के लिए उन्होंने उस दौर की तीन महिला गायकों को लिया था. लता मंगेशकर, आशा भोंसले और सुमन कल्याणपुर. इन तीनों गायकों के नाम का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उस दौर में ये भी कहा जाता था कि लता मंगेशकर ने जान बूझकर सुमन कल्याणपुर को आगे नहीं बढ़ने दिया क्योंकि उनकी आवाज बहुत अच्छी थी और लता मंगेशकर उनसे खतरा महसूस करती थीं.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि हालात ऐसे थे कि सुमन कल्याणपुर को कम पैसे में गाने तैयार करने वाले संगीत निर्देशकों की लता मंगेशकर कहा जाने लगा था. बाद में एक इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने कहा था कि जब वो प्लेबैक सिंगिग में आईं तो नूरजहां समेत एक से बढ़कर एक गायिकाएं मौजूद थीं, उन्हें तब खतरा नहीं लगा तो बाद में तो खतरे का सवाल ही नहीं है. लता मंगेशकर ने ये भी कहा था कि सुमन कल्याणपुर की सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि अपने पूरे करियर मे वो कभी सुमन कल्याणपुर बनकर गाने नहीं गाती थीं.
खैर, ये तो हुई किस्से कहानियों की बात. अब आज के राग की बात करते हैं. राग मधुवंती पर फिल्मों में और भी गाने बनाए गए हैं. 1973 में रिलीज फिल्म दिल की राहें में भी इस राग की जमीन पर तैयार एक गाना सुनने वालों को बहुत पसंद आया था. मदन मोहन के संगीत में लता मंगेशकर का गाया वो गाना था- रश्मे-उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे, इसके अलावा लता मंगेशकर ने इसी राग में कुछ गैर फिल्मी गाने भी गाए हैं. आइए आपको भी एक गाना सुनाते हैं.
अब आपको राग मधुवंती के शास्त्रीय पक्ष के बारे में भी बताते हैं. इस राग की रचना तोड़ी थाट से हुई है. इस राग में कोमल ‘ग’, तीव्र ‘म’ लगता है. बाकि सभी सुर शुद्ध लगते हैं. आरोह में रे और ध नहीं लगता है. अवरोह में सभी सातों सुर लगते हैं. इसलिए इस राग की जाति औडव संपूर्ण होती है. राग मधुवंती का वादी सुर ‘प’ और संवादी सुर ‘रे’ है. इस राग को गाने बजाने का समय दिन का तीसरा प्रहर माना गया है. राग मधुवंती को शास्त्रीय रागों में एक नए राग की तरह माना जाता है. जिसकी रचना राग मुल्तानी के आस पास की है. राग मधुवंती को कुछ लोग राग अम्बिका के नाम से भी जानते हैं. हालांकि मधुवंती ज्यादा प्रचलित नाम है.
आरोह- नी सा ग म (तीव्र) प नी सां
अवरोह- सां नी ध प म (तीव्र) ग रे सा
राग मधुवंती के बारे में और विस्तार से जानने के लिए आप ये वीडियो भी देख सकते हैं.
बात राग मधुवंती के शास्त्रीय पक्ष की हो रही है. शास्त्रीय पक्ष की बारीकियों को सुनने समझने के लिए जरूरी है कि हम कुछ दिग्गज कलाकारों के वीडियो भी आपको दिखाएं. इस श्रृंखला में हम हमेशा ऐसा करते भी हैं. आपको दुनिया भर में अपनी गायकी की पहचान कायम करने वाली विश्वविख्यात गायिका अश्विनी देशपांडे का गाया राग मधुवंती सुनाते हैं. दूसरा वीडियो शास्त्रीय गायकों में युवा दिग्गज कलाकार संजीव अभयंकर का है. संजीव अभयंकर पंडित जसराज जी के शिष्य हैं और नई पीढ़ी के शास्त्रीय कलाकारों में उनकी तैयारी बहुत मजबूत मानी जाती है. उन्होंने फिल्मों के लिए भी गाया है. इस वीडियो में वो राग मधुवंती की द्रुत लय की प्रस्तुति दे रहे हैं.
इस राग के वादन पक्ष को समझने के लिए मधु जैसी मीठी बांसुरी बजाने वाले विश्वविख्यात कलाकार पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से बेहतर और क्या हो सकता है. आप इस वीडियो में राग मधुवंती सुनिए और अगले हफ्ते एक नए राग और उसकी कहानी को पढ़ने के लिए इंतजार कीजिए.
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