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भारत में बकरीद पर गायों की कुर्बानी कैसे शुरू हुई?

गोमांस भारत में कई सदियों से राजनीतिक और धार्मिक विवादों का विषय रहा है

Updated On: Dec 07, 2016 01:24 PM IST

Tufail Ahmad Tufail Ahmad

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भारत में बकरीद पर गायों की कुर्बानी कैसे शुरू हुई?

गोमांस भारत में कई सदियों से राजनीतिक और धार्मिक विवादों का विषय रहा है. तीन दिन तक चलने वाले ईद-उल-अजहा (बकरीद) त्योहार पर यह विषय और अहम हो जाता है. आम तौर पर अरब और अफ्रीकी देशों में इस पर्व पर गाय की कुर्बानी नहीं दी जाती. ऐसा लगता है कि भारत में मौलवियों ने कई कारणों से गाय की कुर्बानी देने का चलन शुरू किया. पहला, गाय खरीदना और उसकी कुर्बानी देना सस्ता पड़ता है; दूसरा, इसके जरिए गाय को पवित्र मानने वाले हिंदुओं को एक इस्लामी चुनौती दी गई.

12 सितंबर को पत्रकार तवलीन सिंह ने ट्वीट किया, ‘ज्यादातर भारतीय मुसलमान गोमांस नहीं खाते. इसे बिरयानी में कभी इस्तेमाल नहीं किया जाता.’ उन्होंने यह बात शायद इसलिए कही होगी क्योंकि जिन अमीर मुसलमानों के बीच उनका बैठना होता है, वो गोमांस खाने से बचते हैं. लेकिन 18 करोड़ मुसलमानों में से ज्यादातर के गोमांस न खाने वाले उनके ट्वीट का मतलब तो ये भी है कि तमाम ऐसी धारणाओं के बावजूद कई मुसलमान गोमांस खाते हैं.

पैगंबर अब्राहम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने की पेशकश की थी. इसी की याद में मुसलमान ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं. अन्य जानवरों के मुकाबले गाय सस्ते दामों पर मिल जाती है.

ईद-उल-अजहा (बकरीद)

क्यों मुद्दा है ‘गोमांस’

गाय की कुर्बानी का एक अन्य कारण भी है. बकरे जैसे छोटे जानवरों की कुर्बानी को एक कुर्बानी गिना जाता है. जबकि गाय और ऊंट जैसे बड़े जानवरों की कुर्बानी को 'सात कुर्बानी' गिना जाता है और इस पर आने वाली लागत को सात लोगों में बांट दिया जाता है. चूंकि यहां ऊंट आसानी से उपलब्ध नहीं हैं इसलिए गरीब मुसलमान गायों को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन यह कहना ठीक नहीं होगा कि बिरयानी में गोमांस का इस्तेमाल नहीं होता.

यह भी सच है कि भारत के बहुत से हिस्सों में छोटी या फिर बड़ी, दोनों ही जातियों के हिंदू गोमांस खाते हैं. बावजूद इसके गायों को लेकर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के कारण दंगे और विवाद होते हैं. अखलाक का ही मामला लीजिए जिसकी हत्या दिल्ली के पास दादरी में गुस्साई भीड़ ने की थी. पिछले एक साल में गौरक्षकों ने गाय या फिर गोमांस लेकर जा रहे बहुत से लोगों को पीटा है. गोमांस इसलिए भी एक राजनीतिक मुद्दा बना है क्योंकि गोरक्षक बीजेपी के समर्थक हैं.

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6 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौरक्षकों को झाड़ लगाते हुए कहा:

‘कुछ लोग गौरक्षा के नाम पर दुकान खोलकर बैठ गए हैं. मुझे इस पर बहुत गुस्सा आता है. गौ-भक्त अलग हैं, गौ-रक्षक अलग है. कुछ लोग पूरी रात असामाजिक कार्यों में लिप्त रहते हैं और दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं.'

लेकिन गोमांस का विवाद थमने वाला नहीं है. इसकी वजह है भारतीयों की बड़ी आबादी जो सदियों से गाय को पवित्र मानते आए हैं और आगे भी मानते रहेंगे.

अकबर ने लगाया था पहली बार बैन

इन्हीं धार्मिक भावनाओं के कारण सम्राट अकबर (शासन 1556 से 1605 ई. तक) ने शायद पहली बार भारत राज्य की नीति में धार्मिक तटस्थता को जगह दी और गायों की कुर्बानी पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि उस वक्त महान इस्लामी विद्वान शेख अहमद सिरहिंदी ने सम्राट अकबर की खूब आलोचना की थी. सिरहिंदी को मुजाददिद अलीफ सनी (दूसरी सहस्राब्दि को पुनर्जीवित करने वाला) कहा जाता है. उन्होंने सम्राट से पूछा कि क्यों मुसलमान एक मुसलमान सरकार के तहत गोमांस नहीं खा सकते.

सितंबर 2015 में पाकिस्तानी मार्क्सवादियों ने एक उर्दू पत्रिका फिक्र ए नौ (नई सोच) शुरू की, जिसके संपादक शादाब मुर्तजा और ताहिर मुर्तजा बनाए गए. इस पत्रिका में सरताज ख़ान का एक निबंध छपा, ‘गोकशी की राजनीति और अर्थव्यवस्था.’ इसमें गोकशी के मुद्दे की पड़ताल की गई और कहा गया कि जिस जगह पर आज पाकिस्तान है, वहां 1947 के बाद भारत से आने वाले कट्टरपंथी इस्लामी संगठन गोकशी को लेकर आए.

ख़ान लिखते हैं, ‘इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक, यह पता चलता है कि (पैगंबर अब्राहम द्वारा अल्लाह के आदेश के अनुसार अपने बेटे के बदले में) एक भेड़ की कुर्बानी दी गई थी. अरब देशों में गाय नहीं होती थी. इसलिए भेड़, बकरे और ऊंट कुर्बानी के लिए सबसे पसंदीदा जानवर थे.’

वह कहते हैं, ‘ऐतिहासिक रूप से हिंदू बहुल भारतीय उपमहाद्वीप में गायों की कुर्बानी उन शहरों में दी जाती थी, जो मुसलमान बादशाहों, धनाढ्य वर्गों और सेनाओं के केंद्र थे. हालांकि बहुत से मुसलमान राजाओं ने राजनीतिक कारणों से गाय की कुर्बानी पर रोक लगा दी थी. इनमें मुगल बादशाह अकबर का नाम खास तौर से लिया जाता है.’

लेखक का कहना है, ‘इन क्षेत्रों में.. जिसमें पाकिस्तान भी है, वहां सिर्फ बकरे, भेड़ और भैंस को आम तौर पर (ईद उल अजहा पर) कुर्बानी के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन भारत में गाय कुर्बानी के लिए मुसलमानों का पसंदीदा पशु रहा है. इसकी पृष्ठभूमि में हिंदू-मुसलमान विवाद रहा है.’

पवित्र गाय

आम नहीं गाय की कुर्बानी

ख़ान लिखते हैं कि पारंपरिक तौर पर पाकिस्तान में बड़ी संख्या में गायों की कुर्बानी नहीं दी जाती थी. वह कहते हैं कि सिर्फ बंटवारे के बाद आए लोग और ‘जमात ए इस्लामी’ जैसे संगठन गायों की कुर्बानी के विचार को लेकर आए. वह कहते हैं कि आज के दौर में ‘जमात उद दावा’ जैसे जिहादी गुट और धार्मिक संगठन गोकशी के चलन को बढ़ावा दे रहे हैं.

वह कहते हैं कि जिन सिंधु और पख्तून क्षेत्रों में ऋग्वेद लिखा गया, वहां भी गोमांस की बजाय लोग भेड़, बकरी और भैंस के मांस को पंसद करते हैं. इसी तरह मरदान, स्वाबी, बुनेर, स्वात, दीर, चारसद्दा और नौशेरा में कुर्बानी के लिए भैंस पसंदीदा जानवर है. जबकि कबायली इलाकों में भेड़ और बकरे की कुर्बानी बहुत आम है. ख़ान कहते हैं कि आम तौर पर ज्यादातर बलोच भी इसी तरह जानवरों की कुर्बानी देते हैं.

लेकिन लेखक का कहना है, 'चूंकि गाय, भैंस के मुकाबले कहीं ज्यादा अच्छी दिखती है इसलिए सामूहिक कुर्बानी के लिए गायों और बकरों को प्राथमिकता दी जाती है. तटस्थ रह कर भी बात की जाए तो सिर्फ शाकाहारी लोग ही पशुओं की कुर्बानी का विरोध कर सकते हैं. भारत में जिस तरह से लोग गाय को माता के समान मानते हैं, उसे देखते हुए इस मुद्दे पर विवाद होते रहेंगे.'

कैसे खत्म होगा विवाद 

इसके लिए तीन बातें दिमाग में रखनी होंगी.

पहली, विवाद की स्थिति में भारतीय संविधान के मुताबिक चलना होगा. संविधान के अनुसार, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों ने गाय की कुर्बानी पर प्रतिबंध लगा दिया है.

उन राज्यों में रहने वाले लोगों को प्रतिबंध का कानून मानना होगा. बीजेपी शासित गोवा और पूर्वोत्तर के बहुत राज्यों ने गोकशी पर रोक नहीं लगाई है. इन राज्यों में भारतीय नागरिक गोमांस खाने के लिए स्वतंत्र हैं.

दूसरी बात, दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी कर मुसलमानों से गाय की कुर्बानी न देने और हिंदूओं की भावनाओं का सम्मान करने को कहा था. भारतीय मुसलमानों को यह सलाह माननी चाहिए.

तीसरी बात, ऐसा लगता है कि हिंदू और मुसलमान दोनों कानून तोड़ते हैं, कोई गाय को बचाने के लिए, कोई उसकी कुर्बानी देने के लिए. ये लोग खुद को कानून से ऊपर समझते हैं. ऐसे लोगों के साथ सख्ती से निपटे जाने की जरूरत है.

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