live
S M L

नसीब वाले पीएम, फिर हम क्यों बदनसीब @80 रुपए पेट्रोल

साल 2015 में मोदी ने कहा था कि ये उनकी खुशनसीबी है कि क्रूड के भाव गिर रहे हैं, लेकिन हम आज भी पीएम की खुशनसीबी का हिस्सा नहीं बन पाए

Updated On: Sep 13, 2017 02:55 PM IST

Pratima Sharma Pratima Sharma
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

0
नसीब वाले पीएम, फिर हम क्यों बदनसीब @80 रुपए पेट्रोल

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो जनता को इस बात का अहसास हुआ कि वो कितने किस्मत वाले हैं. जिन लोगों को यह अहसास खुद नहीं हुआ, उन्हें पीएम ने चिल्ला-चिल्लाकर मंच से बताया.

ऐसा एकबार नहीं कई बार हुआ. 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'अब हमारे विरोधी लोग कहते हैं कि ये तो मोदी नसीब वाला है. अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते है, नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं..अगर मेरे नसीब के कारण आम आदमी की जेब के पैसे बच रहे हैं तो बदनसीब को लाने की जरूरत क्या है मेरे भाइयों.'

अगर अपने प्रधानमंत्री की ही बात मान लें तो क्या मोदी अब 'बदनसीब' हो गए हैं. वित्त वर्ष 2013-14 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल 105 डॉलर प्रति बैरल था. तब घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर थी. सब्सिडी खत्म करने यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को बाजार के हवाले कर दिया है. इसका सीधा मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के भाव में उतार-चढ़ाव के मुताबिक ही घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमतें तय होंगी.

लेकिन मौजूदा स्थिति देखकर लगता है कि नरेंद्र मोदी की किस्मत उनका साथ नहीं दे रही है. खुद नरेंद्र मोदी का भाषण सुने तो यही लगता है. अब आज दिल्ली में पेट्रोल का भाव बढ़कर 70.38 रुपए हो चुका है. वो भी तब जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल 48.18 डॉलर प्रति बैरल पर चल रहा है.

अब हमारी बदकिस्मती देखिए जब क्रूड ऑयल 105 डॉलर प्रति लीटर था तब पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर थी. अब जब क्रूड के दाम गिरकर 48.18 डॉलर पर आया है तो दिल्ली में हम 70.38 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं.

कैसे पूरा होगा अच्छे दिन का वादा 

नरेंद्र मोदी सरकार अच्छे दिन का वादा करके आई थी लेकिन अब यह सिर्फ वादा ही रह गया है. पेट्रोल की कीमत कम होने की उम्मीद पालने वाली आम जनता के हाथ कुछ नहीं लगा. टैक्स व्यवस्था में बदलाव करते हुए भी सरकार ने यह पूरा ध्यान रखा पेट्रोल को लेकर आम आदमी के 'अच्छे दिन' कभी ना आए. शायद यही वजह थी कि जीएसटी लागू करते हुए सरकार ने पेट्रोल और डीजल को इसके दायरे से बाहर रखा था.

कहां कितनी है कीमत

पहले पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव हर 15 दिन में होता था. उस वक्त 15 दिनों के अंतराल पर जब कीमतों में तेजी आती थी तो आम जनता के साथ-साथ विपक्ष भी विरोध करती थी. कुछ साल पहले तक पेट्रोल की कीमतें 65 रुपए प्रति लीटर तक पहुंचने पर देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाते थे.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में उतार चढ़ाव का ग्राहकों को जल्दी और ज्यादा फायदा मिले, इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार ने इस साल 16 जून को कीमत तय करने का नियम बदल दिया. उस वक्त सरकार की दलील थी कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड सस्ता होता है तो ग्राहकों को जल्दी फायदा होगा. या कीमत बढ़ती है तो उसका बोझ ऑयल कंपनियों पर नहीं पड़ेगा.

सरकार की मंशा पर उस वक्त तो कोई सवाल नहीं उठाया गया था. लोग बस उम्मीद करते थे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड सस्ता हो ताकि उन्हें भी इसका फायदा मिले. अब जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड लगभग 48 रुपए प्रति बैरल पहुंच चुका है तो भी आम आदमी को राहत नहीं है.

फिलहाल देश भर में पेट्रोल की कीमतें 70 से 80 रुपए प्रति लीटर के बीच है. अलग-अलग शहरों के हिसाब से देखें तो मुंबई में 79.48 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई है. यह तीन साल में सबसे ज्यादा है. दिल्ली में मंगलवार को पेट्रोल के भाव 70.38 रुपए तक पहुंच गए हैं. दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में पेट्रोल की कीमतें 8 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं.

देश भर में पेट्रोल की कीमतें जानने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं

इस साल 16 जून से हर दिन पेट्रोल की कीमतों में बदलाव शुरू हुआ है. तब से अब तक कोलकाता में 5.09 रुपए, दिल्ली में 4.90 रुपए, चेन्नई और मुंबई में 2.78 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गया है. मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार आने के बाद 1 अगस्त 2014 को मुंबई में पेट्रोल की कीमतें 81.75 रुपए प्रति लीटर पहुंच गई थीं. इस दौरान पेट्रोल की कीमतें कभी 62.75 रुपए प्रति लीटर से नीचे नहीं गईं.

क्यों बढ़ रही हैं कीमतें?

आखिर ऐसी क्या वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजर में क्रूड के दाम घटने के बावजूद घरेलू बाजार में दाम कम नहीं हो रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह तेल कंपनियों की सब्सिडी है. सरकार आम आदमी पर बोझ बढ़ाकर ऑयल कंपनियों के सब्सिडी के बोझ को कम कर रही है ताकि उनकी बैलेंस शीट मजबूत हो सके.

ऑयल कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत करने के लिए सरकार आम आदमी की जेब काट रही है. यही सही है कि नरेंद्र मोदी के आने के बाद क्रूड के दाम घटे हैं लेकिन इसका फायदा सिर्फ कंपनियों को हो रहा है. अब आम आदमी क्या करे? हर बार पेट्रोल भराते हुए वह बस यही कहता होगा कि पीएम की खुशनसीबी का वह भी हिस्सा बन सके!

पिछले तीन साल में पेट्रोल और डीजल का ट्रेंड. नीचे दिए सात चार्ट से आप समझ सकते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद आपकी जेब पर कितनी चोट पड़ी है.

एक सितंबर 2017 को दिल्ली में पेट्रोल का भाव 69.26 रुपए प्रति लीटर था. जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान में यह 40.82 रुपए प्रति लीटर रहा. यह बताने की जरूरत नहीं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड का भाव सबके लिए एक समान है.

जून 2014 में जब एनडीए सरकार आई क्रूड 109 डॉलर प्रति बैरल था. जनवरी 2016 में क्रूड के भाव 74 फीसदी गिरकर 28.1 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए. इस दौरान पेट्रोल और डीजल के भाव में सिर्फ 20 फीसदी की कमी आई. वहीं दूसरी तरफ क्रूड का भाव अपने निचले लेवल से 91 फीसदी बढ़कर 53.6 डॉलर प्रति बैरल पर आया तो घरेलू बाजार में पेट्रोल के दाम करीब 20 फीसदी बढ़े. यानी क्रूड का भाव घटने से ज्यादा भाव बढ़ने का नुकसान. ऐसा सरकार के टैक्स और वैट के कारण होता है.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi