उदय स्कीम को सफल तरीके से लागू करने के बाद सरकार ने अगला तार्किक कदम उठाते हुए सभी घरों तक बिजली पहुंचाने की योजना बनाई है. इसके लिए सौभाग्य स्कीम शुरू की गई है. इसके लिए कुल 16,320 करोड़ रुपए रखे गए हैं. इनमें से 12,320 करोड़ रुपए केंद्र देगा. बाकी रकम राज्य सरकारें और यूटिलिटी देंगे.
यह साफ नहीं है कि सरकार खर्च के लिए इतनी रकम का नया आवंटन करेगी या फिर वित्त वर्ष 2018 के बजट के आवंटन से ही ये रकम खर्च होगी. अगर ये बजट का हिस्सा होगा, तब सौभाग्य ये सुनिश्चित करेगी कि ऐसे आवंटन पर फोकस हो. अगर रकम मौजूदा बजट के बाहर होगी तो इसे सीमित आधार पर अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की कवायद माना जाएगा.
बिजली वाले गांवों की बदलेगी परिभाषा?
आज 20 फीसदी आबादी की पहुंच बिजली तक नहीं है. यहां तक कि बिजली वाले गांव की परिभाषा भी अस्पष्ट है. वर्तमान में, अवधारणा ये है कि अगर 10 फीसदी निवासियों के पास कनेक्शन है तो उसे बिजली वाला गांव माना जाता है. अवधारणा में बिजली कितने घंटे आती है, इसका कोई जिक्र नहीं है. इसलिए, जब स्कीम में सब तक बिजली पहुंचाने की बात हो रही है तब भी सप्लाई की गुणवत्ता के बारे में पता नहीं चलेगा. ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दूसरी योजनाओं जैसे शौचालय बनाने में चोरी और पानी की आपूर्ति मुद्दे हैं. फिर भी ये बहुत प्रगतिशील उपाय है. अगर सरकार हर घर को कनेक्शन उपलब्ध कराने में सफल हो जाती है तो ये भी उपलब्धि होगी.
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भारत में बिजली की स्थिति काफी असंबद्ध है. बिजली उत्पादन की क्षमता सरप्लस है लेकिन उत्पादन के लिए सस्ता कच्चा माल और ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन बड़ी समस्या हैं. डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी घाटे में हैं और वो बिजली खरीद का भुगतान करने में असमर्थ है. इससे दूसरी कंपनियों की स्थिति भी नकारात्मक हो गई है. उदय योजना इस समस्या से व्यापक तरीके से निपटती है. इसमें डिस्कॉम के घाटे का भार पहले राज्य उठाते हैं और फिर बिजली दरें बढ़ाने, बेहतर मीटरिंग और बिजली नुकसान में कमी जैसे सुधार किए जाते हैं.
सौभाग्य के सामाजिक और आर्थिक पक्ष
सौभाग्य के दो निहितार्थ हैं. पहला पक्ष सामाजिक है. अधिक से अधिक घरों का बिजली आपूर्ति नेटवर्क से जुड़ाव सकारात्मक है. इससे जीवनस्तर सुधरेगा. लोग स्वरोजगार के रास्ते तलाशेंगे जो अभी बिजली की कमी के कारण असंभव है. लगातार बिजली आपूर्ति की कोशिश होनी चाहिए, नहीं तो स्कीम का उद्देश्य खत्म हो जाएगा.
दूसरा पक्ष आर्थिक है. चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के लिहाज से अब भी चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, इसलिए ये आवंटन एक सीमित दायरे में अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में मददगार होगा. हालांकि इससे अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी उम्मीद करना बेमानी है. इससे जिन उद्योगों को फायदा होगा, उनमें कोयला, ट्रांसमिशन, डिस्ट्रीब्यूशन और इस प्रक्रिया से जुड़ी वस्तु और सेवाएं शामिल हैं. किसी को ज्यादा सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि क्योंकि रकम 16 हजार करोड़ की है और दो से कम साल (दिसंबर 2018 तक) में खर्च होगी.
सस्ती बिजली के लिए राज्यों को तय करना होगा बजट
सौभाग्य में ये परिकल्पना है कि उपभोक्ता बिजली खपत के लिए भुगतान करेगा. हालांकि, ये सेवा कम दरों पर उपलब्ध कराई जाएगी जो राज्यों के हिसाब से उनकी प्राथमिकता के आधार पर अलग-अलग होगी. उदय स्कीम में स्पष्ट है कि भविष्य में डिस्कॉम को होने वाले सभी घाटों को उतरोत्तर राज्यों को अपने खातों में लेना होगा. इस तरह, गरीबों को दी जाने वाली सस्ती बिजली के लिए राज्यों को बजट में प्रावधान करना होगा या फिर डिस्कॉम के घाटे के रूप में अपने खातों में लिखना होगा.
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ऐसे में, राज्यों को इस बिल का भुगतान करने के लिए तैयार रहना चाहिए. परिवार को प्रति कनेक्शन के लिए 10 महीनों में 500 रुपए का भुगतान करना होगा. राज्य अगर चाहें तो इसे माफ कर सकते हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई राज्य गरीबों को सस्ती बिजली नहीं देने का फैसला करता है.
सभी घरों तक बिजली पहुंचाने के लिहाज से सौभाग्य निश्चित रूप से बेहद सकारात्मक कदम है. कोई भी ये विश्वास कर सकता है कि आखिरी घर तक कनेक्शन पहुंचेगा. लेकिन बिजली की नियमित सप्लाई चुनौती होगी. अधिकतर सामाजिक योजनाओं में, पिछली सरकारें ढांचा खड़ा करने में असरदार थी लेकिन बीच रास्ते में दिशाहीन हो जाती थी.
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ऐसी योजना चलाने की लागत राज्यों से आनी चाहिए. यहां निश्चित रूप से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि हम अब भी सार्वजनिक सेवाएं देने के लिए सब्सिडी पर निर्भर करते हैं. अर्थव्यवस्था में सब्सिडी का स्तर घटाने में अहम सफलताएं अर्जित की गई हैं, लेकिन इस तरह की सब्सिडी लाने से ये मुद्दा उठेगा कि क्या ये किसानों जैसी सब्सिडी देने के बराबर है, जो कि कई राज्यों में प्रचलित हो गया है. हालांकि गरीबों को सस्ती दर पर बिजली देना जरूरी है और ये काम किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार ऐसी ही कोशिश राजकोषीय लक्ष्यों के साथ सामंजस्य बिठाने में कभी नहीं कर पाई.
(लेखक केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री हैं,. ये उनके निजी विचार हैं)
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