live
S M L

Budget 2019: मोदी सरकार में नोटों का रंग तो बदला लेकिन रुपया मजबूत नहीं हुआ

दूसरी तरफ देखा जाए तो साल 2014 से पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी तब रुपए को लेकर काफी बयानबाजी देखी गई थी.

Updated On: Feb 01, 2019 09:54 AM IST

Himanshu Kothari Himanshu Kothari

0
Budget 2019: मोदी सरकार में नोटों का रंग तो बदला लेकिन रुपया मजबूत नहीं हुआ

हर देश की अपनी एक अलग मुद्रा होती है. मुद्रा के जरिए ही लेन-देन में आसानी रहती है. हालांकि हर देश की मुद्रा की कीमत एक जैसी नहीं होती. किसी देश की मुद्रा कितनी मजबूत है इसको आंकने के लिए डॉलर को आधार मान लिया जाता है. भारत की मुद्रा रुपया है और भारत की आजादी के बाद से रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होता देखा गया है.

भारत की इकोनॉमी कितनी सुधर रही है, इसकी परख डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा रुपए से भी आंकी जा सकती है. एक डॉलर के मुकाबले रुपया जितना मजबूत होगा, देश की आर्थिक दशा उतनी ही मजबूत मानी जा सकती है. वहीं अगर किसी देश की मुद्रा डॉलर के मुकाबले गिर जाती है तो उस देश पर आर्थिक संकट भी गहरा जाता है. गिरती मुद्रा से महंगाई जैसे संकट भी पैदा हो जाते हैं. देश में आजादी के बाद कई सरकार बनी और गिरी, लेकिन गिरते रुपए को कोई भी संभाल न सका.

दरअसल, आजादी के वक्त रुपया डॉलर को बराबरी पर मजबूती से टक्कर दे रहा था. उस दौरान भारत के सिर पर किसी तरह का कोई कर्जा नहीं था. एक डॉलर की कीमत तब एक रुपए के बराबर थी. लेकिन जब साल 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई और भारत ने विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया तो रुपया लगातार धड़ाम होने लगा. 1975 तक एक डॉलर के मुकाबले रुपया 8 के स्तर तक पहुंच चुका था और 1985 में रुपए ने 12 का स्तर भी छू लिया. वहीं साल 1991 में भारत में कई तरह के बदलाव हुए और इन बदलावों की भेंट रुपया भी चढ़ गया.

यह भी पढ़ें: Budget 2019: आम चुनाव से पहले वोट बटोरने का पैंतरा या कुछ और!

नरसिम्हा राव की सरकार में भारत ने उदारीकरण की तरफ कदम बढ़ाया और यहीं से रुपए की साख पर जबरदस्त बट्टा लगना शुरू हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब पहली बार सरकार बनाई तो रुपया 40 के स्तर को पार कर चुका था. वहीं उदारीकरण की शुरुआत के 10 साल में ही रुपया 48 के स्तर तक पहुंच चुका था. साल 2004 में अटल विहारी वाजपेयी सत्ता से बाहर हुए और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई. इस दौरान रुपया 44 के स्तर पर था. वहीं साल 2009 में रुपया 46 के स्तर पर पहुंचा तो साल 2019 यानी 10 सालों में ही रुपया 71 के स्तर तक पहुंच चुका है.

साल 2012 में रुपया 54 के स्तर पर था तो साल 2013 में रुपया लुढ़कता हुआ 68 के स्तर तक पहुंच चुका था. लेकिन इसके बाद रुपए ने थोड़ी मजबूती दिखाई और साल 2014 में रुपया एक डॉलर के मुकाबले 60 रुपए तक आ चुका था. साल 2014 में ही भारत को बीजेपी की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्णबहुमत की सरकार देखने को मिली. हालांकि नई सरकार में दिसंबर 2014 तक आते-आते रुपया फिर गिरा और 63 रुपए तक पहुंच गया था.

Dollars

बीजेपी की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार से जनता को काफी उम्मीदें थी. आशाएं थी कि गिरते रुपए को थोड़ी मजबूती मिलेगी और डॉलर के मुकाबले रुपया फिर से खड़ा हो सकेगा. लेकिन पांच सालों में मामला थोड़ा उलझ गया और तस्वीर कुछ और ही है. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस सत्ता में थी तो विपक्ष के जरिए गिरते रुपए को लेकर संसद के अंदर और संसद के बाहर काफी हंगामा किया जाता रहा है.

वहीं ऐसे में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक ट्वीट आज भी याद आता है. सुब्रमण्यम स्वामी के जरिए भागवत राठौड़ नाम के एक ट्विटर यूजर को 21 अप्रैल 2012 में गिरते रुपए को लेकर ट्वीट किया गया था. जिसमें स्वामी ने लिखा था 'In 2017 $1=Re 1' यानी साल 2017 में एक डॉलर के बराबर एक रुपया होगा. हालांकि साल 2019 में रुपया फिलहाल डॉलर के मुकाबले 70-71 के स्तर पर कारोबार कर रहा है.

वैसे गौर करने वाली बात यह है कि सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से गणित में अपनी स्नातक ऑनर्स डिग्री की है. वहीं इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट में स्टैटिस्टिक्स में मास्टर्स डिग्री के लिए भी पढ़ाई की है. इतना ही नहीं, हार्वर्ड विश्वविद्यालय से सुब्रमण्यम स्वामी इकोनॉमिक्स में पीएचडी भी हैं. एक राजनेता के अलावा स्वामी को एक अर्थशास्त्री और सांख्यिकीविद के तौर पर भी पहचान हासिल है.

हालांकि साल 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी के जरिए किए ट्वीट का मतलब था कि साल 2017 में यानी पांच सालों में रुपया डॉलर की बराबरी कर लेगा. वहीं 2014 में बीजेपी यानी सुब्रमण्यम स्वामी जिस पार्टी से जुड़े हैं उनकी सरकार के आने के बावजूद रुपया मजबूत होने की बजाय गिराता ही गया है. सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2012 में ट्वीट किया था और अब नरेंद्र मोदी सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल का आखिरी बजट पेश करने जा रही है, लेकिन रुपए का लुढ़कना फिर भी नहीं थमा. आलम तो ये हुआ कि बीजेपी सरकार के 2014 से शुरू कार्यकाल के दौरान रुपया मजबूत होने की बजाय गिरते हुए अपने All Time Low तक भी मोदी सरकार में ही पहुंचा है.

साल 2015 में रुपया 63 से 69 के स्तर पर कारोबार कर रहा था. इसके बाद रुपए ने 11 अक्टूबर 2018 को अब तक का अपना निम्नतम स्तर छूआ था. इस दिन रुपया एक डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड 74.48 के स्तर तक जा गिरा था. हालांकि संभावनाएं है कि आने वाले दिनों में रुपए में और भी ज्यादा गिरावट देखी जा सकती है.

Rewa: Prime Minister Narendra Modi addresses a rally ahead of Madhya Pradesh Assembly elections, in Rewa, Tuesday, Nov. 20, 2018. (PTI Photo) (PTI11_20_2018_000151B)

सरकारे आती हैं और अपने साथ रुपए की मजबूती के लिए भी कदम उठाने की बात करती है. वहीं विपक्ष भी रुपए के गिरने के कारण मौजूदा सरकार को कोसने से पीछे नहीं हटता है. साल 2014 से पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी तब रुपए को लेकर काफी बयानबाजी देखी गई थी. अगस्त 2013 में रुपया डॉलर के मुकाबले हिचकोले खा रहा था. मई 2013 से सितंबर 2013 तक रुपए में करीब 17 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी.

उसी दौरान अगस्त, 2013 में लोकसभा में सुषमा स्वराज ने कहा था 'देश कि करेंसी के साथ देश की प्रतिष्ठा जुड़ी है. जैसे-जैसे करेंसी गिरती है, तैसे-तैसे देश की प्रतिष्ठा गिरती है.' वहीं रुपए को लेकर नरेंद्र मोदी भी साल 2013 में बयान दे चुके हैं. उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने तब कहा था 'रुपए की कीमत तेजी से गिर रही है. कभी तो लगता है कि दिल्ली सरकार और रुपए के बीच में कंपीटीशन चल रहा है कि किसकी आबरू तेजी से गिरेगी.'

sushma

साल 2014 में बीजेपी की सरकार बनने से पहले गिरते रुपए को कांग्रेस सरकार की बड़ी कमजोरी के रूप में पेश किया जाता रहा है. उस वक्त कांग्रेस की सरकार गठबंधन की सरकार थी और विपक्ष के नेता कहा करते थे कि गठबंधन की सरकार में अनिर्णय की स्थिति होती है. हालांकि पूर्णबहुमत की सरकार बने बीजेपी अब पांच साल पूरे करने वाली है, साथ ही अपनी सरकार का आखिरी बजट भी पेश करने वाली है. लेकिन रुपया साल 2014 के स्तर से भी काफी नीचे गिर चुका है. पांच साल केंद्र में मोदी सरकार रहने के बावजूद रुपया कमजोर क्यों है? रुपए के गिरने के बाद मोदी सरकार पर सवाल तो कई उठे लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के जरिए बयान दिया गया कि रुपया कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि डॉलर मजबूत हुआ है. वित्त मंत्री के इस बयान पर विपक्ष काफी हमलावर रहा था. हालांकि मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में भारतीय करेंसी का रंग तो जरूर बदला लेकिन उसमें मजबूती की गुंजाइश अभी तक नहीं बनी है.

क्यों गिरता रुपया?

रुपए के गिरने या मजबूत होने के पीछे घरेलू कारण जितना अहम होते हैं, उतने ही वैश्विक कारण भी होते हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें प्रभावित होने से भी भारत का रुपया घटता-बढ़ता रहता है. दरअसल, भारत अपनी तेल की जरूरत का करीब 80 फीसदी हिस्सा आयात करता है. ऐसे में जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत को बढ़े हुए तेल के मुताबिक भुगतान करना होता है. ऐसे में भारत विदेशी मुद्र भंडार से डॉलर में भुगतान करता है. जिसके कारण रुपया कमजोर होता जाता है. जिसका साफ मतलब है कि अगर डॉलर की मांग बढ़ेगी तो घरेलू मुद्रा का गिरना तय है.

वहीं यूएस फेडरल रिजर्व के जरिए ब्याद दरों में बढ़ोतरी किए जाने से भारतीय बाजार से लोग पैसे निकाल रहे हैं. विदेशी निवेशकों के जरिए भारत से अपना पैसा निकालने के कारण भी रुपया गिरता है. इसके अलावा भारत के जरिए आयात ज्यादा और निर्यात कम होने के कारण भी रुपए में गिरावट का सिलसिला देखा जाता है. दूसरी तरफ अमेरिका की मजबूत होती अर्थव्यवस्था के कारण भी दूसरे देशों की मुद्रा में गिरावट होती है. इसका असर भारतीय मुद्रा पर भी पड़ता है.

rupee

कैसे मजबूत होगा रुपया?

रुपए की मजबूती के लिए सबसे पहले भारत को निर्यात में बढ़ोतरी करनी होगी. भारत का निर्यात बढ़ने से विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा होगा. इससे काफी हद तक रुपए को मजबूती मिल सकेगी. सस्ती दर पर कच्चा तेल मिलने से भी भारत को गिरते रुपए से काफी हद से राहत मिल सकती है. वहीं भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियों से भी रुपए पर काफी असर पड़ता है. साथ ही देश की सरकार के जरिए उठाए जाने वाले कदमों से भी रुपया का गिरना-बढ़ना चलता रहता है.

2019 के आम चुनाव और नई सरकार के कार्यकाल की शुरुआत होने में करीब 100 दिनों का वक्त बाकी है. हालांकि इस बात की संभावना कम ही है कि इन 100 दिनों में मोदी सरकार में रुपए में सुधार के लिए किसी तरह का कोई कदम उठाया जाएगा. ऐसे में साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में रुपए को और ज्यादा गिरने से बचाने के लिए स्थिर सरकार की जरूरत काफी ज्यादा महसूस की जा रही है.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi