हर साल बजट आते ही नजर टैक्स पर टिक जाती है. आम आदमी इस उम्मीद में रहता है कि सरकार टैक्स घटाकर कुछ ज्यादा पैसे उनकी जेब में रहने देगी. 2018 में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव और 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यह आखिरी मौका होगा जब सरकार के पास जनता को खुश कर सकती है. इस साल बजट में जिन मुद्दों से आपकी जेब पर सबसे ज्यादा फर्क पड़ेगा उनपर हम बात करते हैं.
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एजुकेशन लोन में चाहिए ज्यादा छूट
एजुकेशन लोन लेने वालों की मांग है कि इस पर मिलने वाले टैक्स छूट का दायरा बढ़ाया जाए. 80E के तहत सरकार इस लोन के ब्याज पर टैक्स छूट का फायदा देती है. लेकिन यह फायदा ज्यादा से ज्यादा 8 फाइनेंशियल ईयर तक ही लिया जा सकता है. यानी अगर आपने फाइनेंशियल ईयर 2010 में एजुकेशन लोन लिया है तो फाइनेंशियल ईयर 2018 तक ही टैक्स क्लेम कर सकते हैं. अब यह मांग की जा रही है कि एजुकेशन लोन को भी होम लोन की तरह कर देना चाहिए. यानी जब तक यह लोन चले तब तक टैक्स छूट का फायदा मिलता रहे.
80C में कम जोखिम वाले फंड शामिल हों
पिछले कुछ साल में शेयर बाजार का परफॉर्मेंस शानदार रहा है. हालांकि नुकसान के डर से इसमें सब निवेश नहीं करते हैं. अभी भी ज्यादातर निवेशक लॉस के डर से छोटी स्कीमों में पैसा लगाते और एफडी करते हैं. उनका मकसद सेक्शन 80C में टैक्स छूट हासिल करना है.
लेकिन पिछले कुछ समय में एफडी और दूसरी छोटी स्कीमों के रेट घटे हैं. निवेशक हमेशा यही चाहते हैं कि कम जोखिम और बेहतर रिटर्न के साथ टैक्स छूट का फायदा भी मिले. अब जानकारों की मांग है कि 80C का दायरा बढ़ाकर इसमें उन फंड को भी शामिल कर दिया जाए, जिनपर जोखिम कम होता हो. ELSS में किए गए निवेश पर अभी टैक्स छूट मिलता है, लेकिन इसमें तीन साल का लॉकइन होता है. इस बार 80C की सीमा भी बढ़ाई जा सकती है. जेटली इस बार 80C की सीमा 1.50 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर सकते हैं. इससे टैक्स छूट का फायदा ज्यादा मिलेगा.
टर्म इंश्योरेंस के लिए अलग टैक्स छूट
लाइफ इंश्योरेंस के लिए सबसे बेहतर है टर्म प्लान लेना. बगैर ज्यादा पैसे खर्च किए इसमें पर्याप्त कवर मिलता है. इंश्योरेंस सेक्टर के जानकारों का कहना है कि ज्यादातर भारतीय वहीं निवेश करते हैं, जहां टैक्स छूट का फायदा मिलता है. लिहाजा यह मांग की जा रही है कि टर्म इंश्योरेंस पर टैक्स छूट की एक अलग सीमा बनाई जाए. इससे टर्म प्लान लेने वाले लोगों की तादाद बढे़गी.
मेडिकल अलाउंस की लिमिट बढ़े
दवाइयों और इलाज का खर्च लगातार बढ़ रहा है. हर साल मेडिकल इनफ्लेशन में 18 से 20 फीसदी का इजाफा हो रहा है. अभी तक सालाना मेडिकल अलाउंस 15,000 रुपए है. इस बार फाइनेंस मिनिस्टर से यह उम्मीद की जा रही है कि वो यह सीमा बढ़ा दें.
एनपीएस और पेंशन प्लान टैक्स फ्रेंडली बने
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 65 साल से ज्यादा उम्र के बहुत कम भारतीय ही प्राइवेट पेंशन प्लान में सेविंग्स करते हैं. ज्यादातर लोगों के पास कोई पेंशन प्लान नहीं होता है. दरअसल पेंशन प्लान पर टैक्स लगता है, लिहाजा इसमें लोगों की दिलचस्पी बहुत कम होती है.
अभी अगर कोई निवेशक मैच्योरिटी पर एन्युटी नहीं खरीदता है तो 66 फीसदी फंड पर टैक्स देना पड़ता है. यहां तक कि एन्युटी से मिलने वाले पेंशन पर भी टैक्स लगता है. अब मांग हो रही है कि इस साल बजट में सरकार कुछ राहत दे. उम्मीद की जा रही है कि पेंशन प्लान में निवेश को बढ़ावा देने के लिए टैक्स के नियमों में छूट देनी चाहिए.
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