नए साल की शुरुआत शेयर बाजार के लिए अच्छी नहीं रही. साल के पहले ही दिन लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (एलटीसीजी) दोबारा लागू होने की खबर शेयर कारोबारी और निवेशक बेचैन हो गए हैं. केंद्र के सरकारी घाटे का निर्धारित लक्ष्य जीडीपी के 3.2 फीसदी से बढ़ने और बाजार से अतिरिक्त 50 हजार करोड़ रुपए उधार लेने की खबरों से शेयर बाजार और जानकारों के एक बड़े वर्ग को लग रहा है कि इस साल बजट में एलटीसीजी को दोबारा लागू किया जा सकता है.
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लोकसभा चुनाव 2019 और इस साल आठ राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले यह मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट है. इसलिए राजनीतिक हित साधने के लिए मोदी सरकार को अधिक राजस्व की आवश्यकता होगी. गुजरात विधानसभा चुनाव में किसानों, युवाओं और ग्रामीणों का तीव्र आक्रोश और असंतोष हाल ही में मोदी सरकार और उनकी पार्टी को झेलना पड़ा है. इसलिए इन तीनों वर्गों को लुभाने के लिए बजट में मोदी सरकार निश्चय ही कुछ विशेष उपाय करेगी.
वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास अतिरिक्त राजस्व जुटाने के विकल्प सीमित हैं. अधिक राजस्व जुटाने के लिए वह एलटीसीजी लगाने का विकल्प चुन सकते हें. वैसे भी वित्त मंत्रालय का एक विभाग शेयर कारोबारियों से चिढ़ा बैठा है. इस महकमे में कई वरिष्ठ अधिकारी इस टैक्स की बहाली के लिए पुरजोर वकालत कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं इशारा
पिछले बजट के दौरान भी एलटीसीजी को लेकर शेयर बाजार और निवेशक सहमे हुए थे. इसकी वजह थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने 24 दिसंबर 2016 को मुंबई में दिए एक भाषण में पहली बार स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जो लोग शेयर बाजार से मुनाफा कमाते हैं, वे पर्याप्त टैक्स नहीं दे रहे हैं. तब से ही एलटीसीजी का हौवा रह-रह कर शेयर बाजार को डराता है. पिछले साल बजट में नोटबंदी से मची हड़कंप के चलते वित्त मंत्री ने एलटीसीजी के प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ करना उचित नहीं समझा था.
बीएसई ने भी उठाया सवाल
लेकिन इस मुद्दे ने दिसंबर की शुरुआत में एक बार फिर तूल पकड़ लिया, जब वित्त मंत्रालय से शेयर बाजार के एक बड़े भागीदार बीएसई ने एलटीसीजी को बहाल करने की मांग की. खबरों के अनुसार बीएसई ने वित्त मंत्रालय को बताया है कि इस कर के न होने से सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है और बाजार इस छूट का नाजायज फायदा उठा रहा है. बीएसई का कहना है कि दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ कर न होने से औसतन सरकारी खजाने को सलाना 49 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है.
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गड़बड़ी रोकने की कोशिश
शेयर मार्केट रेगुलेटर सेबी का आकलन है कि शेयर बाजार के बड़े खिलाड़ी बड़े पैमाने पर इस छूट का नाजायज फायदा उठा रहे हैं. एक बिजनेस अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसर सेबी ने पिछले दिनों पेनी स्टॉक्स (जिन्हें चवन्नी शेयर भी कहा जाता है) में एलटीसीजी के नाजायज इस्तेमाल के 11 हजार मामलों की एक सूची आयकर विभाग को सौंपी है. इनसे 34 हजार करोड़ रुपए के टैक्स रेवेन्यू के अनुमानित नुकसान की आशंका है.
सेबी ने डेटा विश्लेषण और पिछले तीन साल के ट्रेडिंग डेटा की निगरानी समीक्षा से इन संदिग्ध मामलों की जिम्मेदार इकाइयों की पहचान की है. कर चोरी करनेवाली यह ज्यादातर इकाइयां अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, कोलकोता और दिल्ली की हैं. शेयर बाजार का यह खुला रहस्य है कि नाम मात्र या जीरो बिजनेस वाली लिस्टेड कंपनियों में बड़े निवेशक पैसा लगाते हैं. इन शेयरों की कीमतों में गड़बड़ी करके वे छोटे शेयरों को चूना लगाते हैं.
चिढ़े बैठे हैं आयकर अधिकारी
खबर है कि पीएमओ ने 80 पेनी स्टॉक्स की एक लिस्ट सेबी और आयकर विभाग को भेजी थी जिसके बाद इन संस्थानों की कार्रवाई में तेजी आई. लेकिन मुंबई आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सेबी और आयकर विभाग की तत्परता और मेहनत पर पानी फेर दिया. इस ट्रिब्यूनल ने एक केस में दिए आदेश में कहा कि पेनी स्टॉक्स में निवेशक के एलटीसीजी के दावे को संदेह के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि सेबी की जांच चल रही है.
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इस आदेश में यह भी कहा गया कि कर-वंचना का मामला सेबी की न्यायाधिकारता में नहीं आता है. इस आदेश से ज्यादा से ज्यादा कर राजस्व जुटाने के आयकर विभाग के अभियान को करारा झटका लगा और ये शेयर बाजार से चिढ़े बैठे हैं और इस कर की बहाली के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं.
क्या है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स या एलटीसीजी
2005 में देश में इक्विटी कल्चर को बढ़ावा देने के लिए इस टैक्स को समाप्त कर दिया गया और इसकी जगह शेयरों की खरीद-बिक्री पर एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स) लगाया गया. इससे देश में इक्विटी निवेश बढ़ा. यदि कोई निवेशक किसी शेयर को खरीद कर 12 महीने बाद उसे बेचता है तो उस पर फिलहाल कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है. अगर एक साल के पहले शेयर बेचता है तो उसे 15 फीसदी एलटीसीजी चुकाना पड़ता है. इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स कहते हैं.
पर सामाजिक न्याय की कसौटी पर शेयर बाजार को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर मिलने वाला टैक्स छूट असंगत है. संपन्न तबका ही शेयर बाजार में खरीद-बिक्री करता है. पेनी स्टॉक्स पर दांव लगाकर बड़े निवेशक ही फायदा उठा पाते हैं.
कंजर्वेटिव इनवेस्टर पोस्ट आॅफिस या बैंक डिपॉडिट में पैसा लगाते हैं. इस पर उन्हें 10, 20 या 30 फीसदी तक टैक्स चुकाना पड़ता है. आम आदमी को जीवनबीमा, हेल्थ इंश्योरेंस पर 5 से 18 फीसदी तक जीएसटी देने को मजबूर है. लिहाजा संपन्न शेयरधारकों को छूट देना ठीक नहीं है. 2009 में तैयार प्रत्यक्ष कर संहिता में भी शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म टैक्स के अंतर को समाप्त करने की सिफारिश की थी.
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क्या मोदी सरकार साहस जुटा पाएगी
2012 में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने एलटीसीजी को दोबारा लागू करने की मंशा दिखाई थी, पर शेयर बाजार के अचानक धराशायी हो जाने के डर से मनमोहन सिंह सरकार ने इस टैक्स से किसी भी किस्म की छेड़खानी न करना ही मुनासिब समझा. अनेक जानकारों का कहना है कि इस समय शेयर बाजार ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर है. बाजार से पूंजी निकासी का कोई बड़ा खतरा नहीं है. यह दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ टैक्स दोबारा लगाने का उचित मौका है.
पर एलटीसीजी के नाम से ही बीएसई का सूचकांक 200-250 अंक लुढ़क गया, तो इस टैक्स के लागू होने से बीएसई सूचकांक के 2000-3000 अंकों के लुढ़कने की आशंका निराधार नहीं है. इससे देश में निवेश और कारोबारी माहौल के बिगड़ने के आसार को नकारना मुश्किल है.
नोटबंदी और जीएसटी के प्रभाव से देश पूरी तरह से उबर नहीं पाया है. आर्थिक विकास दर धीमी बनी हुई है. निजी निवेश तमाम कोशिशों के बाद भी कमजोर बना हुआ है. कम निवेश और मांग के कारण रोजगार अवसर ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम पर है. देश के विभिन्न वर्गों में गहरा असंतोष और आक्रोश है. ऐसे माहौल में क्या मोदी सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाकर देश में निवेशकों और कारोबारियों की नाराजगी का खतरा मोल लेने का साहस दिखा पाएगी, ऐसा लगता नहीं है. अरुण जेटली ज्यादा से ज्यादा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स 12 से बढ़ाकर 24 महीने कर सकते हैं.
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