एनसीईआरटी की पुरानी किताबों के पहले पन्ने पर आपको महात्मा गांधी की ताबीज मिल जाएगी. इसमें लिखा होता था, 'तुम जो काम करने जा रहे हो, देखो की उस काम से सबसे गरीब और कमजोर आदमी को कितना फायदा होगा. क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं.' समाज के इसी तबके लिए सालों से काम कर रहे हैं ज्यां द्रेज.
एक्टिविस्ट और इकोनॉमिस्ट द्रेज पिछले कई साल से झारखंड के पिछड़े इलाकों में काम कर रहे हैं. इनका कहना है कि नीतियां बनाते हुए सरकार को समाज के सबसे पिछड़े वर्ग के लोगों का ध्यान रखना चाहिए. खासतौर पर इन लोगों की शिक्षा और सेहत पर ध्यान चाहिए. उन्होंने कहा कि शिक्षा और सेहत पर बजट आवंटन बढ़ाना चाहिए. द्रेज का कहना है कि देश के विकास के साथ आम आदमी का विकास जरूरी है.
ज्यां द्रेज और अमर्त्य सेन की किताब 'भारत और उसके विरोधाभास' में बुनियादी सार्वजनिक स्वास्थय सेवाओं का ठोस आधार तैयार करने की बात कही गई है. उन्होंने अपनी किताब में दक्षिण और उत्तर भारत में स्वास्थय सेवा सुविधाओं के फर्क के बारे में बताया है. केरल में लोगों की स्थिति उत्तर भारत के मुकाबले काफी बेहतर है. उत्तर भारत में सरकार स्वास्थ्य सेवा सुविधाएं उपलब्ध कराने में पिछड़ गई और स्वास्थ्य सेवा निजी क्षेत्र पर ही निर्भर हो गई. इस विषमता को खत्म करने की कोशिश की जा रही है.
पिछले साल का आंकड़ा
फिस्कल 2018-18 में हेल्थ सेक्टर में बहुत ज्यादा आवंटन नहीं किया गया था. बजट के आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने तब जीडीपी का 0.3 फीसदी रकम आवंटित किया था. राज्यों को शामिल करने के बावजूद हेल्थ सेक्टर पर सरकारों का खर्च बहुत कम है. उम्मीद है कि सरकार इस साल के बजट में हेल्थ सेक्टर के लिए फंड बढ़ाएगी.
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