बजट आ रहा है, हर बार आता है. वित्त मंत्री हर बार संसद में बजट भाषण देते हैं, इस बार भी देंगे. मीडिया हर बार कवर करता है, इस बार भी करेगा. लेकिन बजट में नया क्या होगा? नया तो बजट से पहले ही हो चुका है. बरसों से पाइप लाइन में पड़ी जीएसटी को अमली जामा पहनाया जा चुका है. छोटे कारोबारी बहुत नाराज थे. लेकिन धीरे-धीरे जीएसटी की आदत पड़ रही है और असंतोष कम हो रहा है. नोटबंदी का गर्दो-गुबार भी शांत हो गया है. ऐसे में सवाल यह है कि देश इस बजट को किस तरह देखेगा.
बजट से तय नहीं होगा महंगा-सस्ता
हर साल बजट भाषण से पहले परिवार के मुखिया कागज पेन लेकर टीवी के सामने पोजीशन ले लेते थे. किचेन में काम कर ही पत्नी चिल्लाकर पूछती थी- .. कुछ चीजों के दाम कम हुए या सबकुछ महंगा हो गया जी? पतिदेव चिल्लाकर कहते थे- रूको डिस्टर्ब मत करो, सुनने दो पूरा भाषण. वित्त मंत्री का भाषण खत्म होते ही परिवार के मुखिया सीधे किसी न्यूज़ चैनल का रुख करते थे और ये चेक करते थे कि महंगे और सस्ते का जो अनुमान उन्होंने लगाया था, वह ठीक है या नहीं.
लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. एक्साइज जैसे तमाम इनडायरेक्ट टैक्स जीएसटी काउंसिल के हवाले हैं. इसलिए बजट से आम आदमी को इस बात का कोई अंदाजा नहीं मिलेगा कि आने वाले दिनों में क्या महंगा होगा और क्या सस्ता. पहले लोग अपनी बड़ी खरीदारियों खासकर कार, फ्रिज, टीवी वगैरह खरीदने के लिए बजट का इंतजार करते थे. वे जानकार लोगों से पूछते थे और उनकी सलाह पर अक्सर बजट तक रुक जाते थे या कई बार कुछ शॉपिंग बजट से पहले भी कर लेते थे. हर घर के लिए बजट एक बड़ा इवेंट होता था. मीडिया के लिए तो खैर यह मेगा इवेंट होता ही था. लेकिन अखबार वालों का काम भी इस बार आसान हो गया है. इस साल सस्ते महंगे का चार्ट बनाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.
अलग नहीं होगा रेल का खेल
दो साल पहले तक रेल बजट आम बजट से अलग हुआ करता था. पहले इकॉनमिक सर्वे, फिर रेल बजट और उसके बाद आम बजट. यानी आम बजट के बिल्ड अप से पहले दो बड़े इवेंट हुआ करते थे. 2017 से यह व्यवस्था भी बदल चुकी है. रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बना दिया गया है. यानी एक और बड़ा इवेंट कम हो गया है.
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रेल बजट और कुछ करे या ना करे रेल मंत्री की शख्सियत को स्थापित जरूर करता था. याद कीजिए ममता बनर्जी के बंगाली लहजे में बोली जानेवाली अंग्रेजी और टूटी-फूटी हिंदी में की जानेवाली शायरी. ठेठ गंवई अंदाज में लालू यादव के बेबाक और बिंदास भाषण. लालू यादव का एक चमत्कारी रेल मंत्री के तौर पर स्थापित होना. अब किसी रेल मंत्री के लिए महफिल लूटने की संभावनाएं पूरी तरह खत्म हो गई है. पिछली बार की तरह इस बार भी अरूण जेटली अपने बजट भाषण में संक्षेप में बता देंगे कि रेलवे के लिए क्या किया जा रहा है.
भारत मूलत: एक उत्सवधर्मी देश है. बजट हो या इलेक्शन यहां सबकुछ उत्सव है. लेकिन व्यवस्थागत सुधार से उत्सवधर्मिता पर असर पड़ता है. आप किसी भी पुराने पत्रकार से पूछ लीजिए. वे आपको बताएंगे इस देश के इलेक्शन उस तरह रंग-रंगीले नहीं रहे जितने 20 या 25 साल पहले हुआ करते थे, क्योंकि प्रचार की पाबंदियों को लेकर चुनाव आयोग सख्त हो गया है. व्यवस्थागत बदलाव ने बजट को भी कुछ ऐसा ही बना दिया है.
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यह पूछा जा रहा है कि आम आदमी इस बार वित्त मंत्री के बजट भाषण में रुचि क्यों लेगा? इसके दो जवाब हैं. पहला यह कि बजट पॉलिसी डॉक्युमेंट होता है. इसमें अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाली नीतियों की घोषणा होती है, प्रशासनिक फैसले नहीं. आम आदमी वित्त मंत्री का भाषण सुन ले तो अच्छी बात, अगर ना सुने तब भी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. बजट कोई एंटरटेनमेंट की चीज तो है नहीं. आम आदमी के मतलब की बात सिर्फ इतनी है कि इनकम टैक्स के स्लैब में कोई बदलाव होता है या नहीं और पीएफ की ब्याज दरों का क्या होता है.
पकौड़ा नहीं मेक इन इंडिया पर जोर
दूसरा जवाब यह है कि बजट भाषण रुखा-सूखा नहीं होगा, क्योंकि 2019 के चुनाव से पहले मोदी सरकार का यह आखिरी पूर्ण बजट है. इसलिए जेटली के बजट में सरकार के राजनीतिक एजेंडे की भी झलक होगी. इस समय सबसे ज्यादा सवाल रोजगार को लेकर हैं. वित्त मंत्री को बजट भाषण के जरिए यह संदेश देना है कि पकौड़ा सिर्फ एक जुमला था और नए रोजगार पैदा करने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट मेक इन इंडिया को गति देने के लिए इस बजट में कुछ अहम घोषणाएं हो सकती हैं. ग्रामीण रोजगार और सस्ते मकान सरकार की प्राथमिकताओं में ऊपर होंगे, इकॉनमी के ज्यादातर जानकार ऐसा मान रहे हैं. शहरी वोटरों को रिझाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की एक और प्रिय योजना `स्मार्ट सिटी’ को लेकर भी इस बजट में कुछ अहम घोषणाएं हो सकती हैं. इसी तरह अपनी राष्ट्रवादी छवि बरकरार रखने के लिए सरकार डिफेंस बजट में भी ठीक-ठाक बढ़ोत्तरी कर सकती है. सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने घोषणाओं के अंबार लगाए थे. अब इन घोषणाओं पर जवाब देने का वक्त करीब आ रहा है. ऐसे में स्वच्छता मिशन जैसी तमाम परियोजनाओं पर बजट में खास ध्यान दिए जाने की अटकलें पूरी तरह से जायज हैं.
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हालांकि प्रधानमंत्री ने समय-समय पर इस बात के संकेत दिए हैं कि सरकार का इरादा पॉपुलिस्ट बजट लाने का नहीं है. सच पूछा जाए तो ऐसा संभव है, क्योंकि आलोचनाओं के बावजूद इस सरकार की लोकप्रियता में गिरावट के कोई खास संकेत नहीं हैं. जब नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुश्किल फैसलों के बावजूद सरकार की लोकप्रियता पर कोई खास असर नहीं पड़ा तो फिर भला लोक-लुभावन बजट लाने की क्या मजबूरी है? इसलिए बहुत संभव है कि सरकार बजट के जरिए जनता को यह संदेश देने की कोशिश करे कि वह आर्थिक सुधारों की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रही है.
महिलाओं के लिए सरप्राइज?
वैसे लोगों को चौंकाना मोदी की राजनीति की खास शैली है. इसलिए ऐसा हो सकता है जेटली की पोटली से एकाध चौंकाने वाली चीजें निकल आए. मोदी के कोर वोटर्स में महिलाएं शामिल हैं. उज्ज्वला जैसी स्कीम ने उन्हें महिलाओं के बीच खासा लोकप्रिय बनाया है. संकेत इस बात के मिल रहे हैं कि आधी आबादी के लिए इस बजट में कुछ खास ऐलान हो सकते हैं. यानी जेटली का बजट भाषण परिवार के मुखिया सुने या ना सुने महिलाओं को जरूर सुनना चाहिए.
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