कम नाम ज्यादा दाम
खान-पान व्यवस्था के बदहाली के साथ रेल स्टेशनों और ट्रेनों में खाद्य सामग्री को तय वजन से कम देने और निर्धारित कीमत से अधिक वसूलने की बात आम है. ट्रेनों में फूड प्रॉडक्ट्स की खरीद पर बिल देने की कोई प्रथा नहीं है. वेटरों को वस्तुओं की कीमत सूची भी मुहैया नहीं कराई जाती है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पनीर, पराठा, पूड़ी, और दाल तय वजन से कम दिए जाने के कई मामलें देखने को मिले.
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पनीर के एक टुकड़े का वजन 5 ग्राम होना चाहिए, उन्हें 3 ग्राम के टुकड़े मिले. पूड़ी का वजन 130 ग्राम, दाल का वजन 90 ग्राम निकला, जबकि इनका वजन 150 ग्राम और 100 ग्राम होना चाहिए था. घटतौली के साथ अधिक कीमत वसूलना ट्रेनों में सामान्य बात है. ट्रेनों में एक चाय की कीमत 7 रुपए निर्धारित है, लेकिन वसूले जाते हैं 10 रुपए. पर स्टेशनों पर चाय प्राय: तय कीमत पर ही मिलती है. दुखद बात यह है कि यह सब टीटी और रेल कर्मियों की आंखों के सामने होता है.
लीपापोती में माहिर
कैग की यह रिपोर्ट आने के बाद रेलवे ने नई कैटरिंग पॉलिसी की घोषणा की. घोषणा के कुछ ही दिनों के बाद प्रीमियम ट्रेन तेजस के 24 यात्रियों को जहरीले नाश्ते के कारण 14 अक्टूबर 2017 को अस्पताल में भरती होना पड़ा. तेजस को भारी भरकम दावों के साथ पिछले साल जून में बड़ी धूमधाम से शुरू किया गया था. यह देश की पहली आधुनिक सुविधाओं से लैस सेमी-हाई स्पीड ट्रेन है.
पर घटना के एक दिन बाद रेलवे प्रशासन ने फौरी जांच के बाद घोषित कर दिया कि ट्रेन के खाने से कोई बीमार नहीं पड़ा है. पर इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि रेलवे ने अपने दो अधिकारियों को क्यों निलंबित किया. मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर हुई भगदड़ में 22 लोग अकाल मारे गए थे.
पर इस दुर्घटना की जांच के बाद खुद को छोड़ रेलवे ने हर किसी को और हर चीज को इस भयावह दुर्घटना के लिए जिम्मेवार ठहराया. भारतीय रेलवे इस असंवेदनशील रवैये के कारण ही रेल सुधार के तमाम प्रयासें पर पानी फिर जाता है.
चकमा देने में पीछे नहीं
घटतौली और अधिक कीमत वसूलने के लिए रेलवे अन्य लोगों को जिम्मेदार बता कर बच कर निकल जाती है. पर आय बढ़ाने के लिए रेलवे भी यात्रियों को चकमा देने में पीछे नहीं है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं सुपर फास्ट ट्रेन.
मेल या एक्सप्रेस ट्रेन को सुपरफास्ट ट्रेन का दर्जा देकर रेलवे एक ही झटके में बड़ी आमदनी का इंतजाम कर लेता है. हाल ही में 48 मेल या एक्सप्रेस ट्रेनों को सुपर फास्ट ट्रेन का दर्ज दिया गया. इससे 70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आमदनी रेलवे को होगी. पर सुपरफास्ट ट्रेन का दर्जा मिलने से यात्रियों को कोई लाभ नहीं मिलता है. न वास्तव में ट्रेन की स्पीड बढ़ती है, न कोई अतिरिक्त सुविधा, न ही ट्रेन के स्टॉपेज कम होते हैं.
पर आरक्षण संबंधी शुल्क में भारी बढ़ोतरी केवल यात्रियों के हिस्से में आती है. कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि सुपरफास्ट ट्रेन बताई गई गति से नहीं चलती है. इस समय देश में 1072 सुपरफास्ट ट्रेनें हैं.
प्रभु को प्रभु भी नहीं बचा पाए
अपनी सादगी और सरलता के लिए मशहूर सुरेश प्रभु बीते सितंबर तक रेल मंत्री रहे. पर उनके कार्यकाल में पिछले साल समय का एक ऐसा अशुभ दौर आया कि एक के बाद एक रेल दुर्घटनाएं हुईं और उन्हें हार कर अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
सुरेश प्रभु ने भारतीय रेलवे की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए अनेक काम किए. रेलवे की सुरक्षा चौकस करने के लिए पिछले बजट में एक लाख करोड़ रुपए का कोष भी बनाया गया. लेकिन रेल दुर्घटनाओं ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. उनके कार्यकाल में 346 दुर्घटनाएं हुईं.
यानी हर तीसरे दिन कोई न कोई रेल दुर्घटना और पिछले दस सालों में एक साल के अंदर 2016-17 में रेल दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा 194 लोग अकाल मारे गए. और दुखी हो कर उन्होंने मंत्रालय छोड़ दिया. लेकिन अब रेल मंत्रालय का कहना है कि पिछले तीन साल में रेल दुर्घटनाओं में कमी आई है. ट्रेनों के देर से चलने की चर्चा बेकार है, क्योंकि देर से चलना अरसे से ट्रेनों का जन्म सिद्ध अधिकार सा बन गया है.
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