एक वक्त था जब डॉलर और रुपया लगभग बराबर थे. आजादी के समय एक रुपया एक डॉलर के बराबर था. जी हां! आप सही समझ रहे हैं. आज जिस एक डॉलर के लिए हमें 72.52 रुपए चुका रहे हैं तब एक रुपए की कीमत एक डॉलर ही थी. लेकिन आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ कि डॉलर इतना महंगा हो गया.
ऐसे गिरना शुरू हुआ रुपया
देश जब आजाद हुआ था तब भारत पर कोई कर्ज नहीं था. ब्रिटिश सरकार का शासन था. ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी यहां कारोबार करती थी. भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था लिहाजा उस वक्त लेनदेन में रुपए और डॉलर का इस्तेमाल होता था और दोनों की वैल्यू बराबर थी.
लेकिन आजादी के बाद भारत एक अलग देश बना. भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए फंड की जरूरत थी. और इस फंड का इंतजाम कर्ज लेकर ही हो सकता था. तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में जब पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की तब विदेश से डॉलर में कर्ज लिया गया.
अक्टूबर 2013 में एक आरटीआई के जवाब में रिजर्व बैंक ने बताया था कि 18 सितंबर 1949 तक रुपए और पाउंड की वैल्यू बराबर थी. लेकिन जैसे जैसे पाउंड की वैल्यू घटती गई, रुपए की भी वैल्यू अपनेआप घट गई.
इंपोर्ट का बढ़ता बोझ
विकासशील देश होने की वजह से भारत के लिए अपने इंपोर्ट पर काबू पाना मुश्किल था. नतीजा यह था कि भारत के पास एक्सपोर्ट करके डॉलर कमाने के बजाय इंपोर्ट करके डॉलर देने का विकल्प ज्यादा रहा. 1960 में विदेशी कर्ज अपने उच्चतम सीमा पर था. 1950 से लेकर 1960 के मध्य तक एक डॉलर की कीमत 4.79 रुपए थी.
इंपोर्ट के अलावा पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध ने भी भारत का खर्च बढ़ा दिया था. 1965 में नेहरू सरकार पहले से ही डेफेसिट बजट (खर्च ज्यादा, आमदनी कम) में थी. ऊपर से 1962 में भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद भारत-पाकिस्तान युद्ध से भारत का खर्च काफी बढ़ गया था. इससे भारत और कर्ज लेने के लिए मजबूर हो गया.
इस दौर में भारत सूखा से भी जूझ रहा था. डॉलर में कर्ज लेने से महंगाई बढ़ गई थी. ऐसे में नेहरू सरकार के पास रुपए की वैल्यू गिराने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था. 1966 में भारत सरकार ने रुपए की वैल्यू गिराकार 7.57 रुपए प्रति डॉलर कर दिया.
घटता फॉरेक्स रिजर्व
1990 में पहले खाड़ी युद्ध के बाद से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आने लगी. सोवियत यूनियन टूटने की वजह से हालात और खराब हो गई. महंगाई ने रुपए की कमर तोड़ दी. जून 1991 में भारत का फॉरेक्स रिजर्व गिरकर 112.40 करोड़ डॉलर पर आ गया. फॉरेक्स रिजर्व के मायने डॉलर के भंडार से है. जिस देश के पास जितना ज्यादा डॉलर होगा उसकी अर्थव्यवस्था उतनी बेहतर मानी जाती है.
2007 तक रुपया टूटकर 39 रुपए प्रति डॉलर पर आ गया था. लेकिन इसके बाद 2008 की क्राइसिस के बाद डॉलर कमजोर हुआ. 2008 के अंत तक रुपया 51 रुपए पर आ गया था. अब वेनेजुएला और तुर्की में उथलपुथल की वजह से रुपया गिरकर 72.52 पर आ गया है.
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