अंत भला तो सब भला. नीति-नियंताओं के बीच छिड़ी जंग का खात्मा ऐसे ही होने की उम्मीद की जाती है. अगर सरकार और प्रशासन के किसी और अंग के बीच टकराव हो, तो जीतने का अधिकार केवल प्रधानमंत्री को है. बाकियों को समझौतों के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए. इसलिए, रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा नहीं दिया.
किसी भी विशेषज्ञ के लिए ये बात उसी दिन साफ हो गई थी, जब पटेल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे, कि वो इस्तीफा नहीं देंगे. अगर उर्जित पटेल का पद छोड़ने का इरादा होता, तो वो दिन इसके लिए सबसे मुफीद था, जब वो पीएम मोदी से मिले थे. वो मुलाकात बड़े अच्छे माहौल में हुई. उर्जित पटेल ने पिछले 83 साल में बने अपने से पहले के रिजर्व बैंक के 23 गवर्नरों की तरह ही आखिरकार ये माना कि सरकार सर्वोच्च है. भले ही बाजार और फंड मैनेजर कुछ भी सोचें.
इस मामले में सरकार ने भी रिजर्व बैंक के गवर्नर और उनकी टीम का सम्मान बनाए रखा. हालांकि, रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने बेवक्त और गलत सलाह पर दिए गए अपने भड़काऊ भाषण से आग में घी डालने का काम किया था. लेकिन, सरकार ने बिना उन्हें रिजर्व बैंक का सम्मान बनाए रखते हुए मजबूती से अपना पक्ष रखा.
रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त मंत्रालय के बीच गंभीर मतभेद हो गए हों
सियासी तौर पर सरकार ये कह सकती है कि वो सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के हितों की लड़ाई लड़ रही है. क्योंकि ये कारोबारी पूंजी की किल्लत से जूझ रहे हैं. छोटे कारोबारियों को 25 करोड़ रुपए तक लोन देने और उसकी वापसी की नई योजना जल्द ही शुरू की जाएगी.
वहीं, बैंकों को अपनी पूंजी बढ़ाने का राहत भरा मौका मिलेगा. रिजर्व बैंक अपने पास कितना रिजर्व पैसा रखे, इसकी समीक्षा के लिए एक नई कमेटी बनाई गई है. ये कमेटी ये देखेगी कि आखिर, पूंजी अपने पास रखने के मामले में रिजर्व बैंक अपने तरीके से सोचे या फिर सरकार के कहने पर चले. और आखिरी बात ये कि रिजर्व बैंक, सलाहकार बोर्ड का रोल बढ़ाने पर सहमत हो गया. हालांकि, हकीकत में क्या होगा, ये देखने वाली बात होगी.
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अब जबकि जंग के शोले दहकने बंद हो गए हैं. और जैसा कि सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य ने कहा कि, 'रिजर्व बैंक और सरकार के बीच का झगड़ा अखबारों के पहले पन्ने से गायब होगा', तो इस बात की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस विवाद के सभी पक्षों को फटकार लगाएंगे कि उन्होंने विवाद को न केवल चुनावी सीजन में सार्वजनिक किया, बल्कि इस हद तक बढ़ने दिया. आखिरकार जैसा कि कई विश्लेषकों ने कहा भी कि, ये पहली बार तो नहीं था कि रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त मंत्रालय के बीच गंभीर मतभेद हो गए हों.
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई.वी रेड्डी का कई बार उस वक्त के वित्त मंत्री पी चिदंबरम से टकराव हुआ था. ऐसे ही एक मामले में वित्त मंत्री ने इस बात की शिकायत प्रधानमंत्री से की. जब, प्रधानमंत्री को बताया गया कि वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक को क्या 'सलाह' दी थी, तो मनमोहन सिंह ने पूछा कि, 'फिर, गवर्नर ने क्या कहा?' इसका जवाब बहुत आसान सा था. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कुछ भी नहीं कहा था. उन्होंने अपनी राय अपने ही पास रखी. उन्होंने नॉर्थ ब्लॉक के हरकारे की बात बस चुपचाप सुन ली.
जवाब में न हां कहा, न ना! मुलाकात इतने पर ही खत्म हो गई. कुछ दिनों बाद गवर्नर ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. बड़ी शांति से विवाद का निपटारा हो गया था. इसके उलट, उर्जित पटेल और उनके डिप्टी विरल आचार्य की टीम ने अपनी बात सार्वजनिक मंच से रखने का फैसला किया. उन्हें खुलेआम ऐसी बातें करने से बचने की आदत डालनी चाहिए.
इस विवाद में वित्त मंत्रालय का रोल भी सराहनीय नहीं कहा जा सकता. आर्थिक मामलों के सचिव एस सी गर्ग और वित्तीय सेवाओं के सचिव राजीव कुमार ने आरबीआई एक्ट की धारा 7 को लागू करने की धमकी तक खुलेआम दे डाली. ऊंचे सरकारी ओहदों पर बैठे लोगों को ये बर्ताव शोभा नहीं देता. हुकूमत ऐसे नहीं चलाई जाती. ताकत का इस्तेमाल इस तरीके से होना चाहिए कि किसी को कानों-कान खबर तक न हो.
अब इस विवाद के निपटारे का क्या नतीजा निकलने वाला है, इसका फौरी असर तो हमें नीतिगत मोर्चे पर देखने को मिलेगा. केंद्रीय बैंक, मौद्रिक नीति को लेकर बहुत आक्रामक नहीं होगा. वो वित्तीय मामलों में सरकार के रुख को लेकर ज्यादा सहिष्णु होगा. आखिर ये चुनावी साल है. उम्मीद है कि सरकार भी संयमित बर्ताव करेगी और धूल फांक रहे रिजर्व बैंक के सेक्शन 7 लागू करने जैसी धमकी सरेआम देने से बचेगी. इसी तरह अगर रिजर्व बैंक के सलाहकार बोर्ड के सदस्य ये चाहते हैं कि उनकी बात को तवज्जो दी जाए, तो वो भी ज्यादा तैयारी के साथ बैठकों में जाएंगे. केवल अपनी बात रखकर दबाव बनाने भर से काम नहीं चलने वाला है.
हालांकि आगे चल कर देखें, तो उर्जित पटेल और विरल आचार्य की जोड़ी ने नई दिल्ली में बैठे आईएएस अफसरों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि केंद्रीय बैंक में भी ब्यूरोक्रेसी की मौजूदगी होनी चाहिए. पहले भी ऐसा होता रहा है.
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हकीकत तो ये है कि, रिजर्व बैंक के एक बड़े चर्चित पूर्व गवर्नर का मानना था कि रिजर्व बैंक और भारत सरकार के बीच अच्छे तालमेल के लिए ये जरूरी है कि रिजर्व बैक में कोई मौजूदा या रिटायर्ड आईएएस अफसर होना चाहिए. रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे डॉक्टर सी रंगराजन हों या फिर डॉक्टर बिमल जालान, दोनों को अपने कार्यकाल के दौरान अपनी टीम में आईएएस अधिकारी डॉक्टर वाई वी रेड्डी के होने का बहुत फायदा हुआ था.
राजन ये भूल गए कि आखिरी सिक्का तो सरकार का ही चलेगा
ध्यान देने वाली बात है कि रिजर्व बैंक के 23 गवर्नरों में से गिने-चुने ही ऐसे थे, जिन्होंने आरबीआई में काम करने से पहले केंद्र सरकार में काम नहीं किया था. आरबीआई के जो गवर्नर ऐसे थे भी जिन्हें केंद्र में काम करने का तजुर्बा नहीं था, वो कम से कम रिजर्व बैंक में गवर्नर बनने से पहले दूसरे रोल में लंबा वक्त गुजार चुके थे.
जब 2011 में डी सुब्बाराव का रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर पहला कार्यकाल खत्म हो रहा था, तो उस वक्त के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को एक वरिष्ठ सहयोगी ने सलाह दी कि रघुराम राजन को भारत आने का न्यौता देकर, उन्हें रिजर्व बैंक का गवर्नर बना दिया जाना चाहिए. लेकिन, डॉक्टर मनमोहन सिंह की सोच इस मामले में एकदम साफ थी. उन्होंने कह दिया कि रघुराम राजन को गवर्नर बनाए जाने से पहले या तो रिजर्व बैंक में डिप्टी गवर्नर के तौर पर कुछ तजुर्बा करना होगा या फिर वो मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर सरकार का हिस्सा बनकर देश की वित्तीय व्यवस्था का कुछ अनुभव हासिल कर लें.
रघुराम राजन ने इसके लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद चुना. हालांकि वो केवल एक साल तक इस पद पर रहे. उन्हें भी पता था कि रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर मुंबई में काम करने से पहले नई दिल्ली में सरकार में एक पद संभालना उनके लिए मददगार साबित होगा. हालांकि 2016 में उनकी विदाई की शायद एक वजह ये भी थी कि राजन ये भूल गए कि आखिरी सिक्का तो सरकार का ही चलेगा.
कारोबार जगत और शेयर बाजार दोनों को सरकार और रिजर्व बैंक से ये उम्मीद होती है कि वो अर्थव्यवस्था को नई धार और रफ्तार दें. अर्थव्यवस्था में पूंजी की उपलब्धता बढ़ाना इसका एक हल हो सकता है. लेकिन, उतना ही अहम होगा नीतियों का निर्धारण. उम्मीद है कि रिजर्व बैंक के सरकार से हालिया विवाद के बाद उर्जित पटेल सरकार से संवाद बेहतर करेंगे. इससे निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था में हौसला बढ़ेगा.
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