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मौलिक अधिकार है निजता: सरकार की नजरबंदी से फिलहाल तो बच गए

आधार को हर जगह अनिवार्य करने की वजह से इस मामले ने तूल पकड़ा है

Updated On: Aug 24, 2017 07:57 PM IST

Pratima Sharma Pratima Sharma
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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मौलिक अधिकार है निजता: सरकार की नजरबंदी से फिलहाल तो बच गए

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आम आदमी की निजता के लिए एक ऐतिहासिक फैसला है. 9 सदस्यीय जजों की बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि 'निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है.' ये अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 के तहत आता है.

आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने को लेकर यह बहस शुरू हुई थी. इस फैसले को आम आदमी की जीत कहा जा सकता है. लेकिन असल जिंदगी में इससे क्या कुछ बदलेगा इसकी गारंटी नहीं है. जहां तक आधार की बात है तो ऐसा नहीं है कि इस फैसले के बाद आधार की उपयोगिता खत्म हो जाएगी. इस फैसले से फिलहाल यह तय है कि आधार की अनिवार्यता नहीं रहेगी.

इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने कहा, 'निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी में डालने से अब यह होगा कि निजता के हनन पर कोई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.'

क्या है निजता का अधिकार?

निजता या प्राइवेसी क्या है? कब आपकी निजता आपके हिसाब से रहेगी और कब वह अथॉरिटी के हिसाब से होगी. यह तय होना अभी बाकी है. मान लीजिए आप मॉल जाते हैं वहां आपको छूकर जांचा जाता है. मुमकिन है यह बात आपको पसंद न आए लेकिन क्या वहां आप 'निजता के अधिकार' की बात कर सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. अगर आप समाज में मिलकर रहना चाहते हैं तो आपको अपनी जानकारियां जाहिर करनी पडे़गी. ऐसा भी नहीं है कि आप फुल वॉल्यूम में म्यूजिक चलाकर सुनें तो मना करने पर निजता के अधिकार का हवाला नहीं दे सकते हैं.

निजता का अधिकार का मतलब यह कतई नहीं है कि आप जो चाहें वो करें. यह बिल्कुल बोलने के अधिकार की तरह है. जिस तरह आपके बोलने का अधिकार वहीं तक रहता है जहां तक सामने वाला शख्स का सम्मान बरकरार हो. ठीक उसी तरह निजता के अधिकार की भी एक सीमा होगी.

निजता के अधिकार पर कैसे लगेगी रोक?

अदालत ने कहा है कि सरकार को यह देखना होगा कि किसी के जीने के तरीके से कोई दूसरे व्यक्ति को कोई परेशानी तो नहीं है. इसलिए सरकार मौलिक अधिकारों पर कुछ जरूरी पाबंदी भी लगा सकती है. बस फर्क यह है कि निजता के अधिकार पर किसी भी तरह की पाबंदी लगाने से पहले सरकार को इस पर संसद से कानून पारित करना होगा कि वो पाबंदी क्यों लगाई जा रही है. पहले सरकारें बिना कानून बनाए ही पाबंदी लगा सकती थी.

निजता का यह मामला आधार की वजह से बढ़ा है. सरकार ने आधार को हर जगह अनिवार्य कर दिया, जिसकी वजह लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. आधार को अनिवार्य करने के खिलाफ आवाज उठाने वाली आईआईटी की सोशियो प्रोफेसर ऋतिका खेरा ने कहा, 'किसी प्रजातांत्रिक देश के लिहाज से निजता का अधिकार जरूरी है. किसी भी देश में रहने के लिए यह जरूरी है. अगर यह अधिकार नहीं होते तो हमारे देश और चीन में कुछ खास फर्क नहीं रहेगा.'

उनका कहना है, 'हर जगह अाधार अनिवार्य करने से सुरक्षा को खतरा है. आंगनबाड़ी और मिड डे मिल के लिए आधार को जरूरी बना दिया गया, जो गलत है.' खेरा ने कहा, 'अदालत का यह बहुत बड़ा फैसला है, जो आम लोगों को सरकार की बंदिश से मुक्त करता है.'

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