तेल की कीमतों में लगी आग के चलते देश भर में पेट्रोल और डीजल के दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं. इसकी वजह से बढ़ी महंगाई लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है. ईंधन के दामों में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) के पूर्व चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) आर एस शर्मा से पेश है बातचीत...
सवाल: पेट्रोल और डीजल के दाम में हाल में आई तेजी के क्या कारण हैं?
आर एस शर्मा: इसका कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी है. यह वृद्धि मांग और आपूर्ति में अंतर और धारणा से प्रभावित होती है. अमेरिका के ईरान के साथ परमाणु समझौते से हटने और फिर से पाबंदी लगाने और वेनेजुएला में संकट से आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है. इसीलिए घरेलू बाजार में तेल की कीमतें बढ़ी हैं. इसके अलावा तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के सदस्य देश अपने हितों के आधार पर कच्चे तेल का दाम 80 डालर से अधिक रखना चाहते हैं और इसी के आधार पर आपूर्ति निर्धारित कर रहे हैं.
सवाल: सरकार ने जब ईंधन के दाम को नियंत्रण मुक्त कर दिया है, तो कर्नाटक चुनाव के दौरान लगभग 20 दिन तक मूल्य क्यों नहीं बढ़ाए गए?
आर एस शर्मा: यह बातें सब समझते हैं. इसमें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है. आम लोगों को भी यह पता है कि चुनावों के समय सरकार चाहती है कि उसके पक्ष में धारणा हो, चीजें अच्छी दिखें और इसको ध्यान में रखकर तेल के दाम नहीं बढ़ाए जाते हैं.
सवाल: तेल कंपनियां किस आधार पर कीमत का निर्धारण करती हैं? हाल में कच्चे तेल के दाम 4, 5 डालर घटने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम में मात्र 1 पैसा, 5 पैसे की कटौती की गई?
आर एस शर्मा: पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम के आधार पर तय होती हैं. जहां तक इसमें कमी का सवाल है, यह 1-2 दिन के लिए ही हुई है. कच्चे तेल के दाम में फिर तेजी देखी जा रही है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक कंपनियों पर राजनीतिक प्रभाव रहता है. वैसे भी कंपनियों पर जिसका स्वामित्व होता है, उसके हिसाब से निर्णय होते हैं. यह बात हर जगह लागू है. प्रबंधन को अपने हित में जो उपयुक्त लगता है, कंपनियां वही काम करती हैं. दूसरा, हम अपनी कुल तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत आयात करते हैं और इस पर कर लगाना और उसकी वसूली सबसे ज्यादा आसान है. यह सरकार के राजस्व का बढ़िया स्रोत है.
सवाल: पेट्रोल-डीजल के दाम में वृद्धि निरंतर एक मसला बना हुआ है. इसका दीर्घकालीन हल क्या है? क्या जीएसटी के दायरे में लाने से राहत मिलेगी?
आर एस शर्मा: इस बारे में विजय केलकर की अध्यक्षता वाली समिति ने उत्पादन बढ़ाने और विभिन्न स्तर पर सुधारों को लेकर कई सिफारिशें की हैं. उन सिफारिशों को लागू करने की जरूरत है. दूसरी बात, जब आपने ईंधन के दाम में नियंत्रण मुक्त करने का निर्णय किया तो इस फैसले का सम्मान होना चाहिए. जब कच्चे तेल के दाम घट रहे थे, फिर आपने उत्पाद शुल्क क्यों बढ़ाए? तेल के दाम कम हो रहे थे तो इसका लाभ ग्राहकों को देना चाहिए था. वर्ष 2014 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9 रुपए के करीब था जिसे बढ़ाकर 19 रुपए से अधिक कर दिया गया (पेट्रोल पर जून 2014 में उत्पाद शुल्क 9.48 रुपए और अक्टूबर 2017 से 19.48 रुपए, डीजल पर 3.56 रुपए और अक्टूबर 2017 से 15.33 रुपए) जबकि उस समय तेल के दाम घट रहे थे. अगर आपने उस समय वह लाभ दिया होता, तो अभी इतना हो-हल्ला नहीं मचता. पर कर राजस्व बढ़ाने और राजकोषीय स्थिति में सुधार के लिए ऐसा नहीं किया गया. सरकार को उत्पाद शुल्क में कटौती करनी चाहिए. इससे वैट भी कम होगा और दाम कम होंगे जिससे ग्राहकों का राहत मिलेगी. दूसरा कोई उपाय नहीं है क्योंकि फिलहाल अंतररष्ट्रीय बाजार में दाम में नरमी के कोई संकेत नहीं दिखते.
जहां तक जीएसटी (माल एवं सेवा कर) का सवाल है, फिलहाल इसके तहत अधिकतम कर 28 प्रतिशत है जबकि पेट्रोल डीजल पर कर 100 प्रतिशत (उत्पाद शुल्क और स्थानीय कर या वैट मिलाकर) से भी अधिक है. उनके लिए (केंद्र और राज्य सरकार) पेट्रोलियम उत्पादों को फिलहाल जीएसटी के दायरे में लाना मुश्कल है क्योंकि इससे उनका राजस्व प्रभावित होगा.
सवाल: आईओसी, ऑयल इंडिया जैसी कंपनियों का मुनाफा काफी बढ़ा है. क्या तेल कंपनियों को कुछ सब्सिडी वहन नहीं करनी चाहिए?
आर एस शर्मा: यह कंपनियां काफी बड़ी हैं. इनका जितना कारोबार है, उसमें 20 हजार करोड़ रुपए का सालाना मुनाफा कोई ज्यादा नहीं है. फिर इन्हें नई परियोजनाओं और विदेशों में भी निवेश करना होता है जो जरूरी है. उसके लिए पूंजी चाहिए. यह कंपनियां बेहतर काम कर रही हैं. इन पर आप कितना भार डालेंगे?
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