संसद की एक समिति ने कहा है कि सरकार कंपनी कानून में यह साफ तौर पर बताए कि शेल कंपनियां किसे कहा जाए. समिति ने यह भी कहा कि धोखाझड़ी करने वाले और पर्याप्त जानकारी न देने वालों के बीच क्या फर्क है, यह भी साफ करे.
क्यों अहम हैं ये सिफारिशें?
सरकार उन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, जो लंबे समय से किसी तरह का कोई कारोबार नहीं कर रही हैं. साथ ही उन इकाईयों पर भी कार्रवाई हो रही है, जिनका इस्तेमाल कथित तौर पर काले धन को ठिकाना लगाने में किया जा रहा है.
ब्लैकमनी पर रोक लगाने की कोशिशों के तहत कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने 2.26 लाख से ज्यादा कंपनियों के नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से हटा दिया है. साथ ही इन इकाईयों के डायरेक्टर को भी अयोग्य घोषित कर दिया गया है.
सीनियर कांग्रेस नेता और कॉरपोरेट मामलों के पूर्व मंत्री एम वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाली संसद की वित्त पर स्थायी समिति ने कहा है जिन 2.26 लाख कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द हुआ है, मुमकिन है कि उनमें से कुछ कंपनियां निष्क्रिय होंगी और उनकी इरादा धोखाधड़ी नहीं था.
समिति ने अपनी यह रिपोर्ट 9 मार्च को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कहा है कि शेल कंपनियों पर कार्रवाई करते हुए मंत्रालय को धोखाधड़ी करने वालों और दस्तावेज जमा न कराने वालों में फर्क करना चाहिए.
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