अगर क्रूड ऑयल की कीमत मैनेज करने लायक स्थिति में रही और मॉनसून इस साल भी नॉर्मल रहता है तो हम 8 फीसदी से अधिक ग्रोथ रेट हासिल कर सकते हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नेटवर्क18 के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि बिजनेस कॉन्फिडेंस, पीएमआई (परचेज मैनेजर्स इंडेक्स), कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर ग्रोथ जैसे फैक्टर्स जिन्हें बिजनेस की भाषा में ग्रीन शूट्स कहा जाता है, वे सभी अच्छे हैं. हमें सिर्फ यह देखना है कि आगे क्या होता है.
जेटली ने कहा कि कृषि के लिए मॉनसून एक बड़ा फैक्टर है. इसी तरह मैं चाहता हूं कि क्रूड ऑयल की कीमतें वर्तमान स्तर से ऊपर नहीं जाएं. अगर हम 8 फीसदी ग्रोथ हासिल कर लेते हैं तो यह एक अच्छी उपलब्धि होगी, क्योंकि दुनिया में कोई भी देश 7 फीसदी ग्रोथ रेट हासिल करने की स्थिति में भी नहीं है. उनके अनुसार, भारत की जीडीपी ग्रोथ को वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए.
जेटली ने कहा कि वर्ल्ड इकोनॉमी में रिकवरी के पर्याप्त लक्षण हैं और 2018 में इसके 3.9 फीसदी ग्रोथ की उम्मीद है. अगर वर्ल्ड इकोनॉमी की ग्रोथ 3.9 फीसदी रहती है तो भारत सबसे अधिक ग्रोथ करने वाला देश होगा.
जेटली ने कहा कि चूंकि इस साल हमने नोटबंदी और जीएसटी जैसे रिफॉर्म्स किए हैं, ऐसे में हमारी ग्रोथ 6.7 से लेकर 6.8 फीसदी तक रह सकती है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि क्रूड ऑयल की कीमतों में लगातार इजाफा सरकार के लिए चिंता का सबब है. महज तीन महीनों में 50 डॉलर से 70 डॉलर प्रति बैरल पहुंच चुकीं कीमतें हमारे कम्फर्ट लेवल से लगभग बाहर हो चुकी हैं. इससे करेंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने और इकोनॉमिक ग्रोथ कम होने के साथ ही महंगाई भी बढ़ सकती है.
जेटली ने कहा कि अगर क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रहती हैं और इस साल भी मॉनसून सामान्य रहा तो देश की विकास दर दोहरे डिजिट में रह सकती है.
जेटली ने कहा कि चूंकि हम बड़ी मात्रा में क्रूड ऑयल आयात करते हैं. ऐसे में इसकी लगातार बढ़ रही कीमतों का असर महंगाई पर भी हो सकता है. क्रूड कीमतें बढ़ने से चीजों की आवाजाही महंगी हो जाती है, जिसका असर उपयोग की वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है. हालांकि जेटली ने यह भी कहा कि हमें देखना होगा कि क्रूड ऑयल की कीमतों में किस हद तक इजाफा होता है. हमारे ऊपर असर भी उसी के अनुरूप होगा.
बजट से चंद दिनों पहले संसद में पेश इकोनॉमिक सर्वे 2017-18 में भी कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बारे में आगाह किया गया था. उसमें भी कहा गया था कि इसका असर आने वाले साल में जीडीपी विकास दर पर दिख सकता है. वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तीन तिमाहियों में पिछले साल की तुलना में डॉलर में तेल की कीमतों में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
इकोनॉमिक सर्वे तैयार करने वाली टीम के प्रमुख और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा था कि तेल की कीमतों में हर 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से जीडीपी की ग्रोथ रेट लगभग 0.2-0.3 फीसदी कम हो जाती है. उनके अनुसार, 10 डॉलर के इस इजाफे से करेंट अकाउंट डेफिशिट (सीएडी) भी 9-10 अरब डॉलर बढ़ जाता है. नवंबर की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थीं, जो इस समय 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रही हैं.
आर्थिक सर्वे में 2018-19 में भारत की जीडीपी दर 7-7.5 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है. जीएसटी और नोटबंदी के नकारात्मक असर के बावजूद वर्तमान वित्त वर्ष यानी 2017-18 के लिए इकोनॉमिक सर्वे में ग्रोथ रेट 6.75 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है.
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