खबरों के अनुसार सरकार फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफडीआरआई) बिल 2017 को 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए वापस ले सकती है या ठंडे बस्ते में डाल सकती है. दरअसल इस बिल का का उद्देश्य रिजॉल्यूशन कॉर्पोरेशन का गठन करना है. यह कॉर्पोरेशन वित्तीय कंपनियों की निगरानी करेगा. यह इन कंपनियों की रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से वर्गीकरण करेगा. कंपनियों को यह अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों से अलग कर दिवालिया होने से रोकेगा. हाल ही में कई कंपनियों ने खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन दिया है. इस तरह इससे लोगों को एक तरह की सुरक्षा ही मिलेगी, क्योंकि यह कॉरपोरेशन कंपनियों या बैंकों को दिवालिया होने से बचाएगा.
इस वजह से है नाराजगी
इस बिल को पिछली बार 11 अगस्त, 2018 को लोकसभा में पेश किया था. इस बिल के बेल-इन प्रावधान को लेकर सबसे ज्यादा चिंता है. यह प्रावधान डूबने वाली वित्तीय कंपनी को वित्तीय संकट से बचाने के लिए उसे कर्ज देने वाली संस्था और जमाकर्ताओं की रकम के इस्तेमाल की इजाजत देता है. हालांकि, बेल-इन वित्तीय संस्था को नाकाम होने से बचाने के कई विकल्पों में से एक है.
बेल-इन का साधारण शब्दों में मतलब है कि अपने नुकसान की भरपाई कर्जदारों और जमाकर्ताओं के पैसे से करना. जब उन्हें लगेगा कि वे संकट में हैं और उन्हें इसकी भरपाई करने की जरूरत है, तो वह आम आदमी के जमा पैसों का इस्तेमाल करते हुए अपने घाटे को पाटने की कवायद कर सकेगा.
जानकारों की मानें तो बैंक में जमा 1 लाख रुपए तक की रकम इंश्योर्ड है. हालांकि इसके अलावा जो पैसे हैं, वे किसी भी कानून के तहत गारंटीड नहीं हैं. जबकि आमतौर पर बैंकों में जमा लोगों के पैसे को पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि कोई भी सरकार और रिजर्व बैंक किसी भी बैंक को डूबने नहीं देती है.
उदाहरण के लिए अगर बैंक में आपके 10 लाख रुपए जमा हैं तो इसमें से सिर्फ 1 लाख रुपए बैंक या वित्तीय कंपनी आपको देकर बाकी की रकम का इस्तेमाल अपने घाटे को पूरा करने के लिए कर सकती है.
फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफडीआरआई) बिल, 2017 के इस प्रावधान की वजह से जमाकर्ताओं के बड़े हिस्से में नाराजगी है. लोग अपने जमा पैसों को लेकर काफी सशंकित हैं. अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में सरकार इस बिल को पास करके जमाकर्ताओं की नाराजगी का सामना नहीं करना चाहेगी.
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