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बजट 2018: बेहतर है 2019 से पहले कृषि क्षेत्र की चुनौती से निपट ले मोदी सरकार

विपक्षी दलों का मानना है कि राष्ट्रपति का संसद में अभिभाषण निराशानजनक था. उन्होंने कृषि के बारे में जो कुछ कहा उसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है

Updated On: Jan 30, 2018 03:22 PM IST

Debobrat Ghose Debobrat Ghose
चीफ रिपोर्टर, फ़र्स्टपोस्ट

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बजट 2018: बेहतर है 2019 से पहले कृषि क्षेत्र की चुनौती से निपट ले मोदी सरकार

अगर गुजरात चुनाव के नतीजों से निकलते संकेतों पर गौर करें और बजट सत्र के तुरंत पहले सांसदों के नाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाषण से झांकते महीन इशारे को समझने की कोशिश करें तो जान पड़ेगा कि कृषि क्षेत्र नरेंद्र मोदी सरकार और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. और, यह चुनौती का वह दायरा है जिससे सरकार 2019 के चुनावों में उतरने से पहले निबट लेना चाहती है क्योंकि तब तक मामला हाथ से निकल चुका होगा.

सरकार 2022 तक कृषि की पैदावार दोगुना करने के लिए वचनबद्ध है

राष्ट्रपति कोविंद ने अपने भाषण में खेती-किसानी पर स्पष्ट जोर दिया और यह बात दोहराई कि सरकार 2022 तक कृषि की पैदावार दोगुना करने के लिए वचनबद्ध है. ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए चलाए गए सरकार के कार्यक्रमों के बारे में बताते हुए राष्ट्रपति ने लोगों को संदेश देने का प्रयास किया कि किसानों के लिए सरकार ने आगे क्या योजनाएं सोच रखी हैं.

इसके तुरंत बाद लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश हुआ और वित्त वर्ष 2018 के लिए इसमें कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया.

लेकिन खेती-किसानी के मामलों के विशेषज्ञ और राजनीतिक विपक्ष कृषि क्षेत्र की बढ़वार की कहानी को लेकर आश्वस्त नहीं. इन्हें आर्थिक सर्वेक्षण में जताया गया अनुमान एक ‘छलावा’ लग रहा है, वो मानकर चल रहे हैं कि सरकार ने यह छलावा मतदाताओं को लुभाने के लिए रचा है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बजट सत्र से पहले संसद को संबोधित करते हुए

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बजट सत्र से पहले संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए

कृषि विशेषज्ञ और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री के पद पर रहे सोमपाल शास्त्री ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि 'अगर खेतिहर क्षेत्र की आमदनी अगले 4 साल में दोगुनी करनी है तो कृषि-क्षेत्र की बढ़वार सालाना 20 फीसदी की दर से होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता कहीं नजर नहीं आता.'

उन्होंने कहा कि 'बीते 4 सालों में ग्रामीण क्षेत्र में क्रयक्षमता में 30 से 40 प्रतिशत की गिरावट आई है. कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश का कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है और फिलहाल यह निवेश योजनागत आवंटन का महज 3 प्रतिशत है.'

राष्ट्रीय किसान आयोग के प्रथम अध्यक्ष का ओहदा संभाल चुके सोमपाल शास्त्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के सवाल पर कहा कि 'प्रधानमंत्री मोदी का 2014 के चुनावों में मुख्य वादा स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने और यह सुनिश्चित करने का था कि किसानों को उपज का लाभदायक मूल्य मिले. यही बात बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में भी कही गई थी. लेकिन सत्ता में आते ही वो इससे पीछे हट गए और सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र पेश कर दिया. चावल और गेहूं को छोड़ दें तो किसानों को 17 उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा.'

बीते 4 वर्षों में वास्तविक कृषिगत जीडीपी और कृषिगत राजस्व में ठहराव

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 'पहला नया मुद्दा- और एक तरह से देखें तो सबसे पुराना मुद्दा भी- खेती है. सफल आर्थिक-सामाजिक बदलाव हमेशा खेतिहर उत्पादकता की बढ़त की पृष्ठभूमि में ही हुए हैं. बीते 4 वर्षों में वास्तविक कृषिगत जीडीपी और कृषिगत राजस्व ठहराव के शिकार रहे जिसकी वजह (4 में से) दो सालों में मॉनसून का कमजोर होना है.'

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सोमपाल शास्त्री की आशंका निराधार नहीं है क्योंकि हाल में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनाव में किसानी का संकट एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा और विपक्षी कांग्रेस ने किसानों के गुस्से का बड़ा फायदा उठाया. सत्ताधारी बीजेपी को गुजरात के ग्रामीण इलाकों में अधिक कामयाबी नहीं मिली.

2017 के जून में मध्य प्रदेश का मंदसौर किसान आंदोलन का गढ़ बनकर उभरा और भीड़ ने वहां बड़े पैमाने पर हिंसा की.

इस साल देश के 8 राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं और आसार यही लग रहे हैं कि कम से कम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों का मुद्दा जोर पकड़ेगा.

शास्त्री का मानना है कि 'अनुमानित 2.1 प्रतिशत का आकलन तो कृषि-उत्पादन के बारे में है लेकिन उपलब्धियां गिनाने के लिए कोई ठोस आंकड़ा नहीं बताया गया है. यह महज नारेबाजी है. गुजरात चुनाव से सबक लेने की जरूरत है. सरकार ने किसानों से वादे के नाम पर छल किया और आने वाले चुनावों में इसके गंभीर नतीजे होंगे.'

'राष्ट्रपति के अभिभाषण का जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं'

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस किसानी के संकट के मुद्दे पर जनमत अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश में है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में पार्टी के डिप्टी लीडर (उपनेता) आनंद शर्मा का कहना है कि 'दोनों सदनों को संबोधित राष्ट्रपति का अभिभाषण निराशानजनक था. राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कृषि के बारे में जो कुछ कहा उसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है. कृषि की विकास-दर 4 फीसद से घटकर 1.9 से 1.7 प्रतिशत के बीच आ गई है.'

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बीजेपी ने 2014 के अपने घोषणापत्र में किसानों की आमदनी को दोगुना करने की बात का जिक्र किया था

उन्होंने कहा कि 'यह सरकार इनकार पर तुली है. मामला चाहे कृषि-संकट से उबारने का हो या फिर किसानों की परेशानियों को दूर करने अथवा ग्रामीण इलाके में तेजी से कम होती मजदूरी में सुधार का- किसी भी मोर्चे पर सरकार हालात बेहतर करने की स्थिति में नहीं है.'

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