बड़ी सूचीबद्ध (लिस्टेड) कंपनियों को अपने दीर्घकालीन (लॉन्ग टर्म) कर्ज का कम-से-कम 25 प्रतिशत हिस्सा बॉन्ड से जुटाना होगा. सेबी निदेशक मंडल ने इस बारे में नियम के संशोधित मसौदे को मंगलवार को मंजूरी दी. यह व्यवस्था एक अप्रैल 2019 से लागू की जा सकती है.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा है कि नए नियमों के तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को छोड़ कर अन्य कंपनियों को कुछ मानदंडों के आधार पर बड़ी कंपनियों के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा. मंगलवार के निर्णयों के अनुसार एक साल से अधिक की परिपक्वता वाले बॉन्ड को दीर्घकालिक कर्ज माना जाएगा.
नए मसौदे के संदर्भ में सेबी ने कहा कि इस प्रकार के कर्ज में विदेशों से लिए गए वाणिज्यिक कर्ज और मूल कंपनी तथा अनुषंगी इकाई यानी कंपनियों से लिए कर्ज शामिल नहीं होंगे.
पहले दो साल (2019-20 और 2020-21 में) ऐसी कंपनियों को नियम का अनुपालन करना होगा या ऐसा न करने का उपयुक्त कारण बताना होगा. अगर वे दीर्घकालीन कर्ज का 25 प्रतिशत कॉरपोरेट बॉन्ड के जरिए जुटाने में विफल रहती हैं तो उन्हें शेयर बाजार को इसकी सूचना देनी होगी.
नियामक के अनुसार बढ़े हुए कर्ज का 25 प्रतिशत बॉन्ड बाजार से जुटाने के नियम का 2021-21 के बाद से दो-दो साल में जांच-परख की जाएगी. दो साल की अवधि में बॉन्ड के जरिए कर्ज जुटाने में कोई कमी होने पर उसके 0.2 प्रतिशत के बराबर जुर्माना चुकाना होगा.
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