जेपी इन्फ्रा के दिवालिया घोषित होने के बाद सबसे अधिक मुश्किलों का सामना होम बायर्स को करना पड़ रहा है. अधिकांश लोगों का कहना है कि उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उन्हें अब कौन सा रास्ता अख्तियार करना चाहिए.
नोएडा के सेक्टर 128 में कंपनी द्वारा बनाए जा रहे विश टाउन में ही सिर्फ 32,000 अपार्टमेंट्स हैं. इसके अलावा भी कई सारे प्रोजेक्ट्स में कई हजार बायर्स फंसे हुए हैं. कुल बायर्स की संख्या 40 हजार से भी अधिक बताई जा रही है. हम यहां कानून में अभी बताए गए उपायों के साथ ही दो एक्सपर्ट की राय और होम बायर्स की जुबानी भी बता रहे हैं-
बायर्स के पास ये हैं उपाय
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने गुरुवार को ही जेपी इन्फ्राटेक के लिए एक इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल की नियुक्ति कर दी थी. ट्रिब्यूनल ने जेपी के प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक कराने वाले हजारों बायर्स को अपने फ्लैट या प्लॉट का क्लेम करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है.
24 अगस्त तक कर सकते क्लेम
इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल या तो शनिवार से सोमवार तक बायर्स के क्लेम आमंत्रित कर सकता है, क्योंकि कानून के तहत उसे एनसीएलटी ऑर्डर के तीन दिन के भीतर यह काम करना है. फ्लैट बायर्स के साथ बैंक, लोन देने वाले अन्य संस्थान, वेंडर समेत सभी संबंधित पक्ष को क्लेम करने के लिए 24 अगस्त तक का समय मिलेगा.
9 महीने के बाद होगी नीलामी
एनसीएलटी ने अनुज जैन को कंपनी का सीईओ नियुक्त किया है. कंपनी को पटरी पर लाने के लिए जैन को 6 महीने का समय दिया गया है, जिसे 3 महीने और बढ़ाया जा सकता है. उसके बाद कंपनी के एसेट्स को बेचकर बैंक के पैसे रिकवर किए जाएंगे.
नीलामी के पैसे पर बैंक का पहला हक: मिश्रा
रियल एस्टेट मामलों के एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा ने बताया कि कंपनी के दिवालिया हो जाने के बाद होम बायर्स के पास अब विकल्पों की कमी है. वे कोर्ट मूव कर सकते हैं. उनके अनुसार 9 महीनों में प्रोजेक्ट के पटरी पर आने की संभावना कम ही है. ऐसे में जेपी इन्फ्रा के एसेट्स को बेचा जाएगा. अफसोस कि एसेट्स की नीलामी करने के बाद आने वाले पैसे पर पहले बैंक, फिर ऑपरेशन और वर्कमैन का हक होगा. उसके बाद ही बायर्स की सुनी जाएगी.
रेरा में रजिस्टर्ड होने पर बंधती है थोड़ी उम्मीद: उपाध्याय
होम बायर्स के हितों की लड़ाई लड़ रहे संगठन ‘फाइट फॉर रेरा’ के नेशनल कन्वीनर (राष्ट्रीय संयोजक) अभय उपाध्याय ने बताया कि अगर रेरा के तहत निर्माणाधीन प्रोजेक्ट रजिस्टर्ड होंगे, तब जाकर ही होम बायर्स को कोई राहत की संभावना बन सकती है. मिश्रा के उलट उन्होंने कहा कि रजिस्टर्ड होने की स्थिति में रेरा कानून के तहत नीलामी से आने वाले पैसे पर बायर्स का पहला हक होगा और उसके बाद ही बैंक अपना दावा पेश कर पाएंगे.
क्या कहते हैं होम बायर्स
दर्जनों की संख्या में नोएडा स्थित फिल्म सिटी आने वाले होम बायर्स बेहद टूटे-बिखरे दिखे. पढ़े-लिखे बायर्स ने भी स्वीकार किया कि उनके पास रेरा या फिर इन्सॉल्वेंसी की बहुत सीमित समझ है. राघव वर्मा नाम के एक बायर ने कहा कि वे कोर्ट मूव करने के साथ ही आमरण अनशन पर भी बैठ सकते हैं.
बायर रवि यादव ने बताया कि हमने 2010 में फ्लैट बुक कराया, जबकि प्रोजेक्ट की मंजूरी बिल्डर को 2012 में मिली और यह सबकुछ हमें आईटीआर फाइल करने के बाद मिली.
एक तरह का टेस्ट केस भी है यह
जेपी इन्फ्रा के इस केस को रेरा और इन्सॉल्वेंसी नियमों के मामले में एक तरह टेस्ट केस माना जा रहा है. हालांकि मामला अभी बिल्कुल साफ नहीं है.
(न्यूज 18 से साभार)
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