चीनी नेता चाउ इन लाइ को इतिहास के प्रभाव का आकलन करने वाले सबसे व्यावहारिक नेता के रूप में जाना जाता है. 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव पर उनकी टिप्पणी थी, 'कुछ भी बताना जल्दबाजी होगी.' यह विवादास्पद रहा है कि इन लाइ ने वास्तव में ऐसा कहा था. बहरहाल जो विवाद का विषय नहीं है, वो ये कि किसी देश की आयु और उसकी नियति तय करने वाली घटना को समझने के लिए दीर्घकालिक आंकड़ों पर गौर करने की जरूरत होती है.
साहसिक पहल है नोटबंदी
नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साहसिक पहल नोटबंदी के साल पूरा हो रहा हैं. कालेधन के खिलाफ प्रधानमंत्री की ओर से शुरू की गयी इस लड़ाई की सफलता और विफलता दोनों को तय करने के लिए कई पैमानों का इस्तेमाल किया गया है. शायद सरकार अपनी ही रणनीति की वजह से ‘नोट कम पड़ने’ की वजह को लेकर मुश्किल में आयी और यही नोटबंदी की सफलता का कारक भी साबित हुआ. सिर्फ नोट प्रचलन पर अर्थशास्त्रियों के नजरिए पर गौर करें तो शायद वे इमारत बनने की बड़ी तस्वीर को देखने से रह गये.
नोटबंदी का चार दीर्घकालिक पैमाने पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए जिसने बस खेल दिखाना शुरू ही किया है. नोटबंदी बस इन चार पैमानों की शुरुआत थी. दीर्घकालिक समयवाधि में बेहतर संकेत मिलेगा कि किस तरह इन पैमानों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बदल कर रख दिया है.
पहली बात ये है कि नोटबंदी एक राजनीतिक बयान से अलग कुछ भी नहीं थी. पीएम मोदी ने ये साफ कर दिया था कि उनकी लड़ाई अर्थव्यवस्था में लगी दीमक से है और उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि इसमें उन्हें किसी का साथ मिलेगा या नहीं. कालेधन विरोधी अभियानों का राजनीतिक गान सुनते रहे भारतीय नागरिकों के लिए यह मौका था जब उन्होंने इस पर कुछ होता हुआ पाया. एक्सेल शीट वाले विश्लेषण से अलग आम तौर पर डेविड को यह पता होता है कि गोलिएथ पर दर्द कैसे असर करता है. यह ऐसी ही एक घटना थी जो ऊंचे और ताकतवर लोगों के लिए आखिरी मौका था. नोटबंदी ने कालेधन के खिलाफ राजनीतिक अभियान को ऊंचाई प्रदान की.
बढ़े हैं कर देने वाले
दूसरी बात ये है कि वित्तीय खुलासों और करों के मामले में नोटबंदी एक तैयारी के तौर पर सामने आयी. चूकि सरकार कालेधन के पीछे पड़ी थी, इसलिए सभी व्यक्तिगत या कालेधन का कारोबार करने वाले लोगों को यह याद रखने की जरूरत है कि इसकी अवज्ञा करने वालों की संख्या भी बड़ी थी. और, यह धारणा आगे भी बारम्बार दोहरायी जाएगी. भारत ने 2016-17 में 84 लाख नये करदाताओं को जोड़ा है. पिछले साल के मुकाबले नये कर दाताओं की संख्या में 27 फीसदी का उछाल आया है.
नोटबंदी के बाद ई-रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. एक बार अगर जीएसटी स्थिर हो गयी, तो नोटबंदी को समझने के लिए यह अध्ययन का अच्छा मौका होगा जिसके बाद नये जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए माहौल और मजबूत होगा.
डिजिटाइजेशन में आएगी जल्दी
नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था के डिजिटाइजेशन को स्थायी रूप से फायदा हुआ है. डिजिटाइजेशन भी लम्बी प्रक्रिया में है लेकिन नकद का इस्तेमाल नहीं करने की आदत में आया यह स्वाभाविक बदलाव के पीछे सिर्फ नोटबंदी ही है. अगस्त 2017 में पिछले अगस्त 2016 के मुकाबले 58 फीसदी ज्यादा डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए है. अक्टूबर 2016 में भारत में 15 लाख प्वाइट ऑफ सेल मशीनें (PoS) थीं. भारत में 1969 में पहली बार कार्ड का प्रचलन शुरू हुआ था. अक्टूबर 2017 में देश में 29 लाख पीओएस मशीने थीं जिसे भारत ने और अधिक कार्ड का इस्तेमाल करने के लिए पिछले एक साल में जोड़ा है. गूगल ने तेज़ लॉन्च किया है जो भारत में इसका P2P पेमेन्ट प्लेटफॉर्म है. चर्चा है कि व्हाट्सएप भी पेमेंट व्यवस्था हासिल करने जा रहा है.
हाल के अध्ययन से पता चलता है कि ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंकिंग प्रमुख मॉर्गन स्टेनले इसे डिजिटाइशेन से हुआ फायदा मानते हैं, “भारत पहले से विकास के रास्ते पर था लेकिन डिजिटाइजेशन की ओर देश के अभियान ने अगले दशक में इसे दुनिया की सबसे तेज विकसित होती अर्थ व्यवस्था बनने की उम्मीद जगा दी है.” इन्वेस्टमेन्ट बैंक का अनुमान है कि भारत 2027 तक 6 ट्रिलियन डॉलर वाली सबसे बड़ी विश्व आर्थिक व्यवस्था बनने जा रहा है. उसके मुताबिक डिजिटाइजेशन मल्टी ट्रिलियन डॉलर के मौके बनाएगा.
नोटबंदी का वित्तीय फायदा देश की अर्थव्यवस्था को मिलेगा. इसके लिए जरूरत होगी कि सरकार उन आंकड़ों पर नज़र डालें जो जो पुराने नोटों को बैंकों में जमा कराने की प्रक्रिया से जुड़ी हैं. 99 प्रतिशत करेंसी बैंक खातों में लौट आए हैं. अब सरकार सभी जमाकर्ताओँ तक जा सकती है और कर राजस्व में बढ़ोतरी कर सकती है. सरकार अब देश के 23 लाख बैंक खातों में जमा कराए गये 3.7 लाख करोड़ रुपये की जांच करा रही है. पिछले दो सालों से टैक्स रिटर्न जमा नहीं करने वाली दो लाख से ज्यादा कम्पनियों को रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज़ से हटा दिया गया है.
इन कंपनियों की ओर से जमा किए गये हज़ारों करोड़ रुपए की भी जांच की जा रही है. इनके डायरेक्टरों को विभिन्न वित्तीय गतिविधियो में जिम्मेदारी लेने से भी रोक दिया गया है. नोटबंदी के दौरान वित्तीय संस्थानों में करीब 5 लाख संदिग्ध ट्रांजेक्शन हुए और उन सभी की जांच की जा रही है. तथ्यों का पता लगाने के इन सभी मिशन को सरकार की ओर से तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना जरूरी है ताकि दोषियों को अंजाम तक पहुंचाया जा सके. इससे आम नागरिकों का विश्वास नोटबंदी पर मजबूत होगा.
ऐसे समय में जबकि बैंकों में जमा कराए जा रहे अधिक मूल्य वाले नोटों की वजह से बैंकों में रकम अटी पड़ी हैं, निकट भविष्य में इसका फायदा जरूर मिलेगा. ब्याज दरें घट गयी हैं और लोन सस्ते हो गये हैं. कई शहरों में रियल इस्टेट की कीमतों में गिरावट हुई है क्योंकि कैश ट्रांजेक्शन घट रहे हैं और बिल्डरों का ध्यान बचे हुए फ्लैट बेचने पर लगा हुआ है. दूसरे दर्जे का यह असर अधिक दिनों तक नहीं रहेगा, लेकिन वे निश्चित रूप से घर के खरीददारों और रकम लगानेवालों को मदद करेंगे.
नोटबंदी ने वर्तमान अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है और आर्थिक व्यवहार के नये तरीके बनाए हैं जो कानून के हिसाब से बेहतर है. बुनियादी आर्थिक बदलाव के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में नोटबंदी का आकलन करने के लिए इतिहास व्यापक पैमाना इस्तेमाल करेगा.
(आशीष चंदोरकर मैनेजमेंट कन्सल्टेंट है जो सार्वजनिक नीतियों पर लेखन करते हैं.)
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