जीएसटी को लेकर संसद के ऐतिहासिक मध्य रात्रि सत्र को लेकर उत्सुकता थी, क्योंकि यह टैक्स केवल देश की 130 करोड़ जनता (उपभोक्ता) को ही देने का मसला था.
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को लेकर मन में तमाम सवाल थे कि इससे जनता का भला कैसे होगा, या कैसे रोजगार बढ़ेंगे, कैसे छोटे-छोटे व्यापारी और उद्यमी दैत्याकार बड़ी कपनियों को टक्कर देने में सक्षम हो जाएंगे. मन में सवाल ही सवाल थे.
वित्त मंत्री अरुण जेटली के भाषण को सुनने की व्यग्रता उनके बजट भाषण से ज्यादा थी, जब पल-पल में उनके भाषण की व्याख्या में पूरा मीडिया जुट जाता है. हां, राष्ट्रपति के भाषण को लेकर कोई ज्यादा उत्सुकता नहीं थी, क्योंकि वह एक निर्वहण भाषण होता है.
समारोह या सत्र
30 जून की मध्य रात्रि के इस भव्य आयोजन की पल-पल में खबरें साया हो रही थीं. जैसे ही संसद की कार्यवाही शुरू हुई, तो सारे सवाल पहले कार्यवाही में उलझ गए. सदन की प्रक्रिया को लेकर कई सवाल मन में कौंधे जिनका उत्तर संसद की रिर्पोटिंग करने वाला कोई अनुभवी रिर्पोटर या संसदीय कार्यवाही का सुधी विशेषज्ञ ही दे सकता है.
हम सब यही जानते हैं कि संसद सत्र की कार्यवाही का संचालन लोकसभा स्पीकर ही करता है. उनकी अनुपस्थिति में संसदीय विधान के अनुसार कोई उनकी जिम्मेदारी का निर्वाह कर सकता है. राष्ट्रपति का भाषण संसद में पहले होता है या सत्र उनके उदबोधन से शुरू होता है, यदि वह संसद में उपस्थित हैं. पर इस दिन मध्य रात्रि को ऐसा कुछ नहीं हुआ.
वित्त मंत्री संचालक थे और राष्ट्रपति का भाषण सबसे अंत में हुआ. मन इसमें उलझा रहा है कि यह संसद का विशेष सत्र है या समारोह. हो सकता है कि यह सवाल कूपमंढूकता का परिचायक हो.
मोदी जी अपने रंग में नहीं दिखे
प्रधानमंत्री के भाषण शुरू होते ही यह कब्जवाला सवाल सुप्तावस्था में चला गया. प्रधानमंत्री मोदी की भाषण कला के करोड़ों धरती के वासी मुरीद हैं. उनकी दो टूक बात उनके प्रशंसकों को छू जाती है. जब वे भाषण देते आक्रामक हो जाते हैं, तो उनके अनगिनत समर्थक गदगद हो जाते हैं. पर इस आक्रामक अंदाज में जब वे विपक्ष पर टूट पड़ते हैं, तो कई बार पद की गरिमा और मर्यादा भूल जाते हैं. ऐसा विदेशी भूमि पर प्राय निश्चित होता है. पर उनका यही गुण उनकी पॉलिटिक्स का आधार है.
भाषण के दौरान अनुभव हुआ कि जब प्रधानमंत्री लिखित भाषण या अंशों का सहारा लेते हैं, तो उनका यह ओजस्वी गुण गायब हो जाता है. इसी कारण जीएसटी के इस भाषण में उनके दहाड़ें मारने, श्रोताओं को पछाड़ने के मूल गुण गायब थे. उनकी इस ओजस्वी शैली के दीवाने लाखों-करोड़ों हैं, जो उन्हें उनका कट्टर समर्थक बना देते हैं और उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते हैं. इसलिए तालियों की गड़गडाहट में कोई कमी भी इस भाषण के दौरान में नहीं थी.
भाषण या विज्ञापन पाठ
इस भाषण में उन्होंने देश को बताया कि जीएसटी से देश का आगे मार्ग प्रशस्त होगा और न्यू इंडिया का निर्माण होगा, वन नेशन वन टैक्स, पारदर्शी, टैक्स टेरेरिज्म से छुटकारा, इंस्पेक्टर राज का खात्मा, अफसरशही के शोषण (परेशानियां) का अंत, कच्चे-पक्के बिल के खेल का खात्मा, आदि सब कुछ उनके भाषण में था, पर उसमें नया कुछ नहीं था. यह बातें सैकड़ों बार बताई और दोहराई जा चुकी हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने श्रेष्ठ भाव से आजादी के महापुरुषों का नाम लिया. पंडित नेहरु का भी नाम लिया. देखा जाता है कि नेहरु के नाम से ही उनके निष्ठावान लाखों संघी समर्थक बिदक जाते हैं.
भाषण काफी आगे बढ़ चुका था, तब अचानक लगा कि प्रधानमंत्री मोदी अपने रंग में लौट आये हैं. नए संक्षिप्त नाम रच कर गूढ़ बातों को सरल बना देने में उन्हें महारत हासिल है. इस भाषण में भी जीएसटी को रुपायित करने वाली नई व्याख्या बताई- जीएसटी के मायने 'गुड एंड सिंपल टैक्स' (अच्छा और सरल) कर.
पर 1 जुलाई की सुबह अखबारों में जीएसटी के गुणगान में पूरे एक पेज विज्ञापन था जिसकी बेस लाइन (आधार वाक्य) था- गुड एंड सिंपल टैक्स. अब यह मूल वाक्य मोदी जी का है या विज्ञापन एजेंसी के कॉपी राइटर का, यकीनी तौर पर नहीं मालूम. इसलिए भरोसा टूटा क्योंकि नरेंद्र मोदी दूसरों के सूत्र वाक्य या ब्रह्म शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
इस मामले में कॉपी राइट का वह बहुत ख्याल रखते हैं. पर पूरा विज्ञापन देख कर लगा प्रधानमंत्री मोदी इस विज्ञापन की अंर्तवस्तु को ही अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश कर रहे थे. जीएसटी के बताये अनेक गुण इस विज्ञापन में मौजूद थे. लगा कि जीएसटी पर प्रधानमंत्री मोदी भाषण नहीं, विज्ञापन पाठ कर रहे थे.
टोल ने चौंकाया
प्रधानमंत्री मोदी का 23-24 मिनट का यह भाषण जैसे ही 16वें मिनट से आगे बढ़ा तो एक शब्द ने चौंका दिया. उन्होंने कहा कि टोल पर घंटों व्हीकल खड़े रहते हैं, फ्यूल बरबाद होता है... पर्यावरण खराब होता है. अब जीएसटी से इससे मुक्ति मिल जायेगी. जीएसटी से चुंगी नाके खत्म हो जायेंगे. यह बात रट गई है. पर टोल टैक्स या टोल नाके खत्म हो जायेंगे, यह कभी नहीं पढ़ा. इससे कंफ्यूजन बढ़ गया.
टोल शब्द का अर्थ जाने के लिए तमाम शब्दकोष खंगाल डाले, इस शब्द के कई नए अर्थ सीखने का मौका मिला. पर टोल का अर्थ चुंगी किसी भी शब्दकोष में नहीं था. अब नोटबंदी की अंतिम तारीख की तरह मोदी जी को कोट कर अब आप टोल नाके वाले से झगड़ा न करें. पहले पुष्ट कर लें कि मोदी जी ने सही कहा है या गलत या भूलवश.
वैसे करोड़ों मोदी समर्थकों को दुआ करनी चाहिए कि टोल टैक्स खत्म हो जाएं, नहीं तो विरोधी प्रधानमंत्री के जीएसटी ज्ञान और उसके गुणगान पर सवाल उठाने लगेंगे.
सबका विजन अलग होता है
1 जुलाई से जीएसटी सभी के लिए लाभदायक, एक राष्ट्र, एक-कर एक बाजार से एक नए भारत के निर्माण वाला विज्ञापन देना ही था, तो इस मध्य रात्रि विशेष समारोह पर देश के करोड़ों रुपया बहाने, समय बर्बाद करने से किसी का सार्थकता भान नहीं हुआ.
संसद का विशेष मध्य रात्रि सत्र हो, और नेहरु जी का ऐतिहासिक भाषण ट्रीस्ट विद डेस्टिनी (नियति के साथ वादा) की चर्चा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. आखिर संसद का मध्य रात्रि सत्र इसी भाषण से दुनिया भर में मशहूर हुआ और कोई सत्ताधारी दल संसद के मध्य रात्रि समारोह करने से चूकना नहीं चाहता है.
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