एक रिपोर्ट के अनुसार बहुचर्चित जीएसटी प्रणाली अपने एक सबसे बड़े वादे को अब तक पूरा नहीं कर पाई है. इसके अनुसार कहा गया था कि इस अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से अर्थव्यवस्था और अधिक औपचारिक होगी और संगठित क्षेत्र का विस्तार होगा लेकिन अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नजर नहीं आ रहा है.
ब्रिटेन की ब्रोकरेज फर्म एचएसबीसी ने अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला है. इसमें कहा गया है कि इसके विपरीत जीएसटी प्रणाली से नकदी की मांग बढ़ी है.
इसमें कहा गया है, ‘जीएसटी प्रणाली मूल रूप से औपचारिकता (अर्थव्यवस्था में संगठित क्षेत्र के विस्तार) से संबद्ध थी. लेकिन हमारी राय में अब तक तो यह अपने उस वादे पर खरा नहीं उतरी है. न ही इससे नकदी की मांग कम हुई बल्कि उसमें बढ़ोतरी ही हुई है.’
हालांकि इसमें कहा गया है कि दीर्घकालिक स्तर पर जीएसटी से अर्थव्यवस्था और अधिक औपचारिक (संगठित) होगी.
जीएसटी एक जुलाई 2017 से लागू की गई. उसके बाद से इसमें अनेक बदलाव किए जा चुके हैं. यह शुरुआती दौर में कर रिफंड में देरी, नए आईटी नेटवर्क में प्रारंभिक दिक्कत और सेवाओं के लिए उच्च कर दर जैसे कई मुद्दों से जूझती नजर आई है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चलन में नकदी सामान्य से ज्यादा है यह ग्रामीण भारत के बेहतर प्रदर्शन के कारण नहीं बल्कि ‘अनौपचारिक’ क्षेत्रों के पुनरोद्धार के कारण है, नोटों के चलन में आने की वजह से है. ’
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अप्रैल में दावा किया था कि नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था ‘और अधिक औपचारिक’ हुई.
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