विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (कारोबार में आसानी) रैंकिंग में भारत के जबरदस्त उछाल पर कांग्रेस ने खामोशी के बाद घबराहट भरे अंदाज में कड़वाहट भरी प्रतिक्रिया दी है. राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक और तंज भरी टिप्पणी की है, जिसमें कहा है कि भारत की 30 अंकों की उछाल हकीकत को बयान नहीं करती, जबकि वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने व्यापमं और भूख इंडेक्स के बारे में ट्वीट करना शुरू कर दिया है.
India at 100 of 190 countries in Ease of Doing Business . India at 100 of 119 countries in the Global Hunger Index .
Deal with hunger too .— Kapil Sibal (@KapilSibal) November 1, 2017
एक कांग्रेस प्रवक्ता ने 'एडवेंचर पसंद' प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए और अरुण जेटली को 'सबसे खराब वित्तमंत्री' और 'स्पिन डॉक्टर (हेराफेरी का उस्ताद)' बताते हुए दावा किया कि 'रैंकिंग हकीकत को नहीं बदल सकती.'
कांग्रेस के आरोपों का आधार क्या है?
बुधवार को गुजरात में एक रैली में कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने इसी सोच को आगे बढ़ाया. हकबकाए राहुल गांधी ने वर्ल्ड बैंक को एक 'विदेशी कंपनी' बता डाला. गुजरात के भरूच में एक जनसभा में उन्होंने कहा, 'जेटली अपने दफ्तर में बैठकर ईज ऑफ बिजनेस की बात कर रही एक विदेशी कंपनी पर यकीन कर रहे हैं. क्या जेटली जी छोटे दुकानदार के पास जाएंगे और बताएंगे कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस क्या है? इस सरकार के लिए जो विदेश में बोला जाता है, वही सच है और भारत की हकीकत झूठी है.'
यह साफ नहीं है कि कांग्रेस के आरोपों का आधार क्या है और यह भी साफ नहीं है कि उन्होंने वित्त मंत्री को 'स्पिन डॉक्टर' क्यों कहा, क्योंकि सालाना रेटिंग तो केंद्र सरकार ने नहीं बल्कि विश्व बैंक ने जारी की है, जिस पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. कांग्रेस उपाध्यक्ष को निश्चित रूप से पता होना चाहिए कि विश्व बैंक स्वतंत्र संस्थान है ना कि 'विदेशी कंपनी.'
भारत की अब तक की सबसे लंबी छलांग
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रेटिंग के अनुसार भारत पहली बार कारोबार के लिए उपयुक्त माहौल वाले देशों की लिस्ट में टॉप 100 में शामिल हो गया है, और इसकी 30 अंकों की उछाल किसी देश द्वारा लगाई सबसे लंबी छलांग है. भारत ने 10 में से 9 मानकों में सुधार किया है और कारोबार के लिए मददगार कानूनी ढांचे के मामले में दुनिया के सर्वोत्तम देशों की कतार में शामिल हो गया है.
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भारत ने 10 में से 8 कैटेगरी में सर्वश्रेष्ठ स्थान हासिल किया है. ये कैटेगरी हैं- ‘कारोबार की शुरुआत’, ‘निर्माण का परमिट हासिल करना’, ‘कर्ज हासिल करना’, ‘अल्पसंख्यक निवेशकों का संरक्षण’, ‘कर भुगतान’ ‘सीमा पार से कारोबार’, ‘संविदा का पालन करने’ और ‘दिवालिया मामलों का समाधान.’
इन आठ कैटेगरी में, तीन मुख्य सुधारों से भारत की रैंकिंग में उछाल आया है- दिवालियापन के मामलों का समाधान, करों का ऑनलाइन भुगतान करने की सुविधा और अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा. इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड और जीएसटी के दूरगामी सुधारों के जोर पकड़ने के बाद इन क्षेत्रों में भारत के प्रदर्शन को पंख लग जाने की उम्मीद है. इसके अलावा एक और क्षेत्र है जिसमें भारत ने जबरदस्त सुधार किया है. विश्व बैंक इसे डिस्टेंस टू फ्रंटियर (डीटीएफ) मीटरिक कहता है, जिसमें फिसड्डी देश को अच्छा प्रदर्शन करने वाले राष्ट्र के मुकाबले में रखकर देखा जाता है.
जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है, 'डीटीएफ हर अर्थव्यवस्था की 'सीमांत' से दूरी को बताता है, जो कि वर्ष 2005 से डूइंग बिजनेस सैंपल के संकेतकों को परखने का सबसे अच्छा तरीका है.' किसी अर्थव्यवस्था की सीमांत से दूरी शून्य से 100 के पैमाने पर आंकी जाती है. शून्य निम्नतम प्रदर्शन दिखाता है, जबकि 100 पूर्णता दर्शाता है.'
इस मानक पर भारत ने 60.76 अंक हासिल किए हैं, जबकि पिछले साल 56.05 अंक मिले थे, यानी कि 4.17 अंक की जबरदस्त बढ़त हुई है. तुलनात्मक नजरिये से देखें तो चीन ने इस अवधि में सिर्फ 0.40 अंक की बढ़त हासिल की है, हालांकि समग्र रूप से चीन भारत से काफी आगे है.
टॉप 50 में शामिल होने का है लक्ष्य
विश्व बैंक की रिपोर्ट उन क्षेत्रों के बारे में भी बताती है, जहां भारत अन्य देशों से पिछड़ रहा है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेटली की टिप्पणी इशारा देती है कि सरकार इस पर ध्यान दे रही है. वित्त मंत्री ने रिपोर्टरों से कहा कि, 'कारोबार करने, निर्माण परमिट हासिल करने, अनुबंधों का पालन कराने और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री जैसे पैरामीटर्स में भारत अभी पिछड़ा हुआ है, लेकिन यह भरोसा करने की भरपूर वजह है कि हम अपनी स्थिति में काफी सुधार ला सकते हैं.'
हासिल की गई उपलब्धियों से परे (प्रतिस्पर्धा में 190 में से 100 में देशों में शामिल होना अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता), रैंकिंग से हासिल सबसे जरूरी सबक यह है कि सुधार प्रक्रिया से डिगना नहीं है और कड़े फैसले लेने होंगे, भले ही उनके संक्रमण-काल की कीमत भी चुकानी पड़े. एक अपेक्षा पैदा हो गई है कि भारत को अब और अच्छा करना होगा और लक्ष्य टॉप-50 में शामिल होने का रखा जाए- एक ऐसा लक्ष्य जो वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया है.
विश्व बैंक की दक्षिण एशिया की वाइस प्रेसिडेंट एन्नेट डिक्सॉन ने कहा है कि, 'हमारी नजर में आज के परिणाम भारत की तरफ से बहुत साफ संकेत देते हैं कि यह देश ना सिर्फ कारोबार के लिए तैयार और खुला है बल्कि अब यह दुनिया में कारोबार करने के लिए पसंदीदा जगह बनने की प्रतिस्पर्धा में शामिल है.'
और इस सोच पर कि नोटबंदी और जीएसटी के बाद कारोबार को लगे झटके को देखते हुए यह रैंकिंग 'हकीकत में लोगों के मूड से उलट लगती है,' भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद की टिप्पणी देखिए जो हिंदू अखबार में छपी है, 'मैं नहीं समझता कि कोई अंतर्विरोध है. सुधारों को रफ्तार पकड़ने में थोड़ा वक्त लगता है. आप आज जो देख रहे हैं, वह पिछले सिर्फ 12 महीनों का काम नहीं, बल्कि ये पिछले तीन वर्षों का काम है. नीतियों में बदलाव अब उभरकर सामने आ रहे हैं. इनको जमीन पर उतरने में भी वक्त लगता है. नीतियां बदल जाती हैं, लेकिन व्यवहार फौरन नहीं बदलता. अब दिखना शुरू हुआ है कि एसएमई सेक्टर और बड़े उद्योग लागू किए गए बदलावों को समझ रहे हैं और वह इस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं.'
कांग्रेस की असहजता साफ है
अगर कांग्रेस की बातों का मतलब यह नहीं है कि विश्व बैंक भारत की रैंकिंग में सुधार दिखाने के लिए मोदी सरकार के साथ मिल गया है, तो कांग्रेस के आलोचना की गहराई माप पाना मुश्किल है.
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार को कांग्रेस पार्टी क्यों स्वीकार नहीं कर रही है, इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि कांग्रेस के लिए एक असहज समय पर आई है, जो कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के कथित कुप्रबंधन के खिलाफ पूरे जोर-शोर से अभियान छेड़े हुए है.
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एक और चुनाव की तरफ बढ़ते हुए बीते कुछ दिनों में राहुल गांधी की सरपरस्ती में कांग्रेस का पूरा ध्यान जीएसटी से पैदा हुई अफरातफरी (और नोटबंदी की बाकी बची परेशानियों ) पर है. उन्हें लगता है कि लगातार जीएसटी और नोटबंदी से पैदा हुए संकट का मुद्दा उठाने से आखिरकार बीजेपी के राजनीतिक आधार में सेंध लगाई जा सकती है. यह इस आकलन पर आधारित है कि महत्वपूर्ण राज्य गुजरात- जहां लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद बीजेपी सत्ताविरोधी लहर का सामना कर रही है- जीएसटी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ व्यापारियों का बड़ा तबका बीजेपी का साथ छोड़ और कांग्रेस को समर्थन देकर अपना गुस्सा जाहिर करेगा.
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी की दोबारा पैकेजिंग की गई है- इस बार वह थोड़े मजाकिया, तीखे और तंज भरे लहजे से लैस हैं. कांग्रेस मोदी की बेइज्जती करने पर आमादा है, चाहे वह जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स का चुटीला नाम देना हो, या आर्थिक बदहालियों पर चोट करता बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर फिल्मों का पैरोडी वीडियो जारी करना हो.
विश्व बैंक की रिपोर्ट ने इस पूरी योजना पर पानी फेर दिया है और कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया है. राहुल गांधी के बेसुरे बोल और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग, जोकि कारोबारी नियामक ढांचे को लेकर वैश्विक मानक निर्धारित करती है, को खारिज करने का शायद यही कारण है.
कांग्रेस यहां दो अलग मुद्दों का घालमेल कर रही है- बीजेपी का राजनीतिक विरोध और भारत के कारोबारी माहौल में सुधार. इन दोनों का एकदम अलग होना जरूरी नहीं है, लेकिन विश्व बैंक की तरफ से दी गई रैंकिंग को खारिज करके राहुल गांधी भारत की रैंकिंग में सुधार का पूरा श्रेय नरेंद्र मोदी के नाम किए दे रहे हैं. कोई भी समझ सकता है कि यह समझदारी भरी रणनीति नहीं होगी.
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