पिछले कुछ दिनों में पूरे उत्तर भारत में अचानक मौसम ने करवट बदली और लगभग पूरे भूभाग में तेज हवा के साथ कहीं बहुत हल्की, कहीं हल्की और कहीं तेज बारिश देखी गई. आम लोगों के लिए ये राहत की फुहार थी, जिसने पिछले महीने भर में तेजी से बढ़ी गर्मी से राहत दी, लेकिन उत्तर भारत के करोड़ों किसानों की पेशानी पर इस राहत ने चिंता की लकीरें उकेर दी. अप्रैल साल का वह महीना होता है, जब रबी की ज्यादातर फसलों की हार्वेस्टिंग हो रही होती है. गेहूं जहां लगभग पूरे उत्तर भारत की प्रमुख रबी फसल है, वहीं अलग-अलग राज्यों में चना, सरसों इत्यादि भी खेतों से निकालकर मंडी में या तो पहुंच चुके हैं या फिर कटाई के अंतिम चरण में हैं.
इन 3 तरीकों से हो सकता है नुकसान
पिछले 3-4 दिन में मौसम में आए बदलाव का इन सब फसलों पर कमोबेश असर पड़ा है. फसलों पर मौसम के असर को 3 हिस्से में बांटा जा सकता है. पहला, तेज हवा से हुआ नुकसान, दूसरा बारिश का असर और तीसरा ओला गिरने का नुकसान. फसलों पर इन तीनों ही स्थितियों में हुए नुकसान को भी दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. वह फसल जो अभी खेतों में है, उस पर असर और वह फसल जो कटाई के बाद या तो खेतों में या मंडियों में खुले में रखी है, उसका नुकसान.
दरअसल तेज हवा से खेतों में खड़ी फसल झुक जाती है, लेकिन क्योंकि अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक रबी की सारी फसलें लगभग पूरी तरह तैयार हो चुकी होती हैं, इसलिए इन पर इससे कोई असर होता नहीं है. बहुत हल्की या हल्की बारिश से भी खेतों में खड़ी फसलों पर ज्यादा असर नहीं होता. अलबत्ता तेज बारिश से जरूर खेतों में खड़ी फसल को आंशिक नुकसान होता है.
ऐसा ही नुकसान हल्की और तेज बारिश में कटाई के बाद खुले में पड़ी फसल का भी होता है. उपज के दाने पानी की मात्रा के लिहाज से भूरे या काले पड़ जाते हैं, जिससे मंडियों में उसका भाव काफी कम हो जाता है. तीसरी और सबसे ज्यादा नुकसानदायक स्थिति ओलावृष्टि की होती है. इससे खेतों में खड़ी फसल भी लगभग तबाह हो जाती है और खुले में पड़ी उपज को भी भारी नुकसान होता है.
ओलावृष्टि ने मचाई है सबसे ज्यादा तबाही
इस लिहाज से देखा जाए, तो 8-12 अप्रैल के बीच मौसम ने जो करवट ली है, उसका सबसे ज्यादा असर देश के उन हिस्सों में पर पड़ा है, जहां ओलावृष्टि हुई है. पश्चिम राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से लगे श्रीगंगानगर जिले के किसान राजेंद्र ज्यानी के मुताबिक उनके इलाके में सरसों की फसल में करीब 15-20 प्रतिशत का नुकसान हुआ है, जबकि चना और गेहूं में यह नुकसान और ज्यादा है. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ राजस्थान के उन इलाकों में शामिल है, जहां ओलावृष्टि हुई है.
राजस्थान और गुजरात की खेती पर नजर रखने वाले बीकानेर के ट्रेडर पुखराज चोपड़ा के मुताबिक, बीकानेर और आसपास के इलाकों में सरसों और चना की लगभग 80 प्रतिशत हार्वेस्टिंग पूरी हो चुकी है और लगभग सारा माल मंडियों में यहां-वहां रखा है. इस पर बारिश का बुरा असर हुआ है. लेकिन क्योंकि गेहूं की कटाई अभी काफी कम हुई है, इसलिए इस इलाके में गेहूं को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. गुजरात की उंझा मंडी में ईसबगोल की फसल बड़ी मात्रा में रखी है. पानी के प्रति ईसबगोल बहुत संवेदनशील होता है और इसलिए एक अनुमान के मुताबिक उंझा मंडी में करीब 5000 क्विंटल ईसबगोल पर बुरा असर पड़ा है. हालांकि उंझा मंडी के अधिकारियों ने आधिकारिक तौर पर यह मात्रा केवल 500 क्विंटल बताई है.
गेंहू और टमाटर की फसल को हुआ है ज्यादा नुकसान
पंजाब के गुरदासपुर के हल्दी किसान गुरदयाल सिंह के मुताबिक पंजाब में मुक्तसर और मोगा में ओलावृष्टि होने की खबर है, जिसका वहां खड़ी फसलों पर बहुत बुरा असर पड़ा है. लेकिन इसके अलावा फसलों को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है. हरियाणा में हालात काफी बेहतर हैं. केवल यमुनानगर जिले के रदौर तहसील में ओलावृष्टि हुई है, जिसके कारण करीब 14000 हेक्टेयर में लगी गेहूं की फसल का 40 प्रतिशत और 800 हेक्टेयर में लगे टमाटर का 50 प्रतिशत बरबाद होने की रिपोर्ट है.
उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के किसान भारत भूषण त्यागी और मुजफ्फरनगर के किसान मुनेश त्यागी के मुताबिक तेज हवा और बारिश से खास नुकसान नहीं हुआ है, हालांकि इससे फसल की गुणवत्ता पर थोड़ा असर जरूर रहेगा. वहीं सहारनपुर के किसान अजय शर्मा ने बताया कि इस इलाके में थोड़ी ओलावृष्टि हुई है, जिसके कारण गेहूं की फसल को कुछ नुकसान जरूर हुआ है.
कहीं-कहीं फायदा भी
बिहार में भी समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा इत्यादि जिलों में ओलावृष्टि हुई है और जहां-जहां भी ये हुआ है, वहां फसलों को खासा नुकसान हुआ है. हालांकि मधेपुरा से सटे पूर्णिया जिले के किसान शिवशंकर सिंह के मुताबिक, ओलावृष्टि के मधेपुरा तक सीमित रहने के कारण बाकी इलाकों में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. वहीं समस्तीपुर के किसान रूपेश राज के मुताबिक उनके जिले और मुजफ्फरपुर में फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. पश्चिम बंगाल में कहीं से भी ओलावृष्टि की रिपोर्ट नहीं है. कोलकाता से सटे 24 परगना जिले के सब्जी उत्पादक किसान समूह से जुड़े जब्बार खान ने बताया कि जो हल्की बारिश हुई है उससे सब्जियों की फसल को कुछ फायदा ही हुआ है, नुकसान नहीं.
इसके अलावा मौसम में आए इस बदलाव का एक फायदा यह भी हुआ है कि एकाएक बढ़ी गर्मी से खरीफ की बुवाई पर जो प्रतिकूल असर पड़ सकता था, उससे निजात मिल गई है. इस असर को इस एक तथ्य से समझा जा सकता है कि इस सीजन में बिहार में एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में लगी मक्के की फसल देखने में तो शानदार थी, लेकिन उसके भुट्टे में कोई दाना ही नहीं था. उसी जगह पर उसी कंपनी के बीज जो महीने भर बाद बोए गए थे, उनमें बेहतरीन दाने आए.
दरअसल इसका कारण यह बताया गया कि दिसंबर-जनवरी में हुई बुवाई वाली फसल को पाला मार गया था, जिसके कारण भुट्टे के सारे दाने पहले ही मर गए. इसलिए बुवाई के वक्त सही तापमान रहने से अंतिम उपज पर उसका असर अवश्यंभावी है और इस लिहाज मौसम में आया बदलाव कुछ हद तक सकारात्मक असर भी लेकर आएगा.
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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