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Cash Crunch: डर सबको लगता है लेकिन पहले ATM तो चेक कीजिए!

देश के कुछ इलाकों में कैश की कमी है लेकिन नोटबंदी जैसे हालात बनने के डर से लोग नकदी दबाकर रख रहे हैं, जिससे नकदी का संकट बढ़ता जा रहा है

Updated On: Apr 18, 2018 05:27 PM IST

Pratima Sharma Pratima Sharma
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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Cash Crunch: डर सबको लगता है लेकिन पहले ATM तो चेक कीजिए!

Cash Crunch को लेकर हरतरफ हंगामा मचा है. ऐसे में अगर यह कहा जाए कि समस्या उतनी बड़ी नहीं है, जितनी नजर आ रही है तो शायद गलत नहीं होगा. इस बात से कोई इनकार नहीं है कि मार्च से ही एमपी, झारखंड, गुजरात के कुछ इलाकों में नकदी की कमी थी. इस बात की जानकारी वहां के चीफ सेक्रेटरी ने पत्र लिखकर आरबीआई को दी भी थी.

यह भी पढ़ें- कैश क्रंच: RBI को मार्च से ही नकदी संकट की जानकारी थी

लेकिन नकदी संकट के विकराल रूप धारण करने की एक अहम वजह नोटबंदी का डर भी है. 8 नवंबर 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था, उसके बाद देशभर में जो हुआ, वह किसी से छिपा नहीं है. इस बार भी जब देश के कुछ इलाकों में नकदी की कमी हुई तो लोगों ने नोटबंदी जैसी स्थिति बनने के डर से अपना पैसा बैंक और एटीएम से निकालकर घरों में रख लिया.

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इस पर जेएनयू के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा, ‘मीडिया में ऐसी कई रिपोर्ट आई हैं जिसमें यह कहा गया है कि कर्नाटक चुनाव की वजह से नोटों की जमाखोरी बढ़ गई है. यह मुमकिन है. लेकिन इसके साथ ही लोगों के भीतर का डर भी है.’ उन्होंने कहा, अभी नकदी संकट की एक अहम वजह ‘वेलोसिटी ऑफ करेंसी’ है. वेलोसिटी ऑफ करेंसी’ के मायने सिस्टम में मौजूद करेंसी से है. सीधे शब्दों में कहें तो आप पैसा खर्च कर रहे हैं या दबाकर बैठे हैं, उसे 'वेलोसिटी ऑफ करेंसी’ से समझा जा सकता है. अगर आप पैसा ज्यादा खर्च कर रहे हैं तो सिस्टम में पैसा ज्यादा रहेगा और तब माना जाएगा कि 'वेलोसिटी ऑफ करेंसी’ ज्यादा है.

अरुण कुमार से यह पूछे जाने पर कि क्या शादियों के सीजन और एक साथ बैसाखी, बिहू और पोंगल होने की वजह से भी नकदी की जमाखोरी बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘इस बात के चांस कम हैं. शादियां हर साल होती हैं और ये त्योहार भी हर साल आते हैं. ऐसे में इस साल इन्हें वजह बताना ठीक नहीं है.’ वह कहते हैं कि नकदी की कमी लोगों के बीच अफवाह की तरह फैली है. ग्रामीण और शहरी इलाकों में कई बार एटीएम खराब रहते हैं या फिर कैश की कमी रहती है. लेकिन तब लोगों को मानसिक तौर पर ऐसी बेचैनी नहीं होती है. इस बार हालात अलग हैं क्योंकि नोटबंदी में हुई दिक्कत को लोग अभी भूल नहीं पाए हैं.

कैसे बिगड़े हालात?

नवंबर 2016 में ही यह अफवाह फैली थी कि देशभर में नमक की कमी हो गई है. लोगों ने बिना कुछ सोचे समझे किराना दुकानों में लाइन लगा दी. लोगों की बेचैनी का फायदा उठाते हुए दुकानदारों ने भी 200 से 800 रुपए तक नमक बेचा. इस बार के हालात पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक ऐसे ही हैं.

नकदी की जमाखोरी से इनकार नहीं किया जा सकता. यह भी सच है कि 2000 रुपए के नोटों की छपाई बंद हो चुकी है. आरबीआई हर हफ्ते 1 से 1.5 लाख करोड़ रुपए की आपूर्ति करती है. ऐसे में अगर नोटों की जमाखोरी बढ़ जाती है तो उसकी भरपाई आरबीआई की सप्लाई से नहीं हो पाती. जिससे नकदी संकट का खतरा बढ़ जाता है.

मान लीजिए देश में 26 करोड़ परिवार हैं. प्रत्येक परिवार औसतन 1 लाख रुपए भी घर पर रखता है तो 26 लाख करोड़ रुपए होते हैं. 1 लाख रुपए की रकम औसतन मानी गई हैं. मुमकिन है कोई अपने घर में 200 रुपए तो कोई 2 लाख रुपए भी रखता हो. अगर नकदी संकट के डर से हर परिवार अपनी घरेलू बचत 20 फीसदी भी बढ़ाता है तो सिस्टम में मौजूद नकदी का बड़ा हिस्सा घरों की तिजोरियों में बंद हो जाता है. इससे नकदी संकट की समस्या और बड़ी हो जाती है.

इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए मान लीजिए किसी पेट्रोल पंप पर हर दिन 1 लाख रुपए का पेट्रोल बिकता है. अगले दिन पेट्रोल पंप वह पैसा बैंक में जमा करता है. यानी उस पेट्रोल पंप की औसत होल्डिंग हर दिन एक लाख रुपया है. अगर वह पेट्रोल पंप पैसा बैंक में जमा ना करे तो उतनी रकम सिस्टम में नहीं रहती. इसे लोगों को नकदी संकट से जूझना पड़ता है.

क्या कहना है आरबीआई का?

आरबीआई ने भी 17 अप्रैल को प्रेस रिलीज जारी करके यह साफ कहा था कि नकदी की कोई समस्या नहीं है. लॉजिस्टिक्स की दिक्कत के कारण पैसा एटीएम तक नहीं पहुंच पा रहा है. एचडीएफसी बैंक के एक अधिकारी ने भी नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि बैंकों में कैश की कोई दिक्कत नहीं है. लोग नोटबंदी वाली स्थिति से डर रहे हैं और अगले कुछ दिनों में हालात सामान्य हो जाएंगे.

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