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Budget 2019: चुनावों के लिए लॉलीपॉप तो जरूर थमाएगी सरकार, लेकिन असल फोकस कहां रहेगा?

जब एनडीए की सरकार एक फरवरी को 2019-2020 का अंतरिम बजट पेश करेगी, तो बहुत कुछ दांव पर होगा

Updated On: Jan 17, 2019 05:30 PM IST

Madhavan Narayanan

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Budget 2019: चुनावों के लिए लॉलीपॉप तो जरूर थमाएगी सरकार, लेकिन असल फोकस कहां रहेगा?

इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों के बाद अगली सरकार किसकी बनेगी, ये किसी को पता नहीं. ऐसे में भला सरकार के जमा और खर्च की अठन्नी और चवन्नी का हिसाब भला कौन लगाएगा? एक फरवरी को पेश होने वाला बजट, 2014 में चुनी गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का आखिरी बजट होगा. ये बजट नहीं, बल्कि लेखानुदान होगा. ऐसे में इस आर्थिक दस्तावेज में से हमें सियासी संकेत तलाशने होंगे.

बजट के हवाले से अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या नियमित रूप से मिलने वाली टैक्स की रियायत इस बार भी मिलेगी. अनिश्चितता के माहौल में अफवाहों का बाजार गर्म है.

किसान विरोधी छवि तोड़ना चाहेगी सरकार

जब एनडीए की सरकार एक फरवरी को 2019-2020 का अंतरिम बजट पेश करेगी, तो बहुत कुछ दांव पर होगा. हां, एक बात एकदम साफ है- वित्तीय घाटे के आंकड़े तो घोर अर्थशास्त्रियों की दिलचस्पी का विषय होंगे. आम लोगों की नजर तो बजट में आयुष्मान भारत योजना के लिए आवंटित की जाने वाली रकम पर होगी, ताकि आम लोगों को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिया जा सके. साथ ही बजट के जरिए सरकार अपनी किसान विरोधी छवि को भी तोड़ना चाहेगी कि ये तो विपक्षी दलों का शोर है.

इस बात की अटकलें काफी जोरों पर हैं कि आर्थिक संकट से जूझ रहे करीब 15 करोड़ कृषक घरों की आमदनी बढ़ाने के लिए किसी योजना का ऐलान इस बजट में हो सकता है. लेकिन, इस बात की उम्मीद ज्यादा है कि सत्ताधारी पार्टी किसानों के लिए इस योजना के एक बड़े हिस्से को बजट में फौरी तौर पर न डाल कर अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर ले. किसानों के लिए शायद सरकार कोई छोटी-मोटी मदद का एलान करके चुनाव प्रचार की आग में घी डालने का काम करे, ताकि सियासत के शोले और भड़क सकें.

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अगर, हम प्रधानमंत्री के हालिया भाषणों को संकेत मानें, तो सरकार का इरादा विपक्षी दलों के किसानों की कर्जमाफी की मांग पर सवाल खड़े करने का है. कांग्रेस ने जिस तरह तीन हिंदी भाषी प्रदेशों में चुनावी जीत के बाद बड़े पैमाने पर किसानों की कर्ज माफी की, उस पर मोदी लगातार हमले कर रहे हैं. इसी के साथ मोदी सरकार तेलंगाना की रायथु बंधु योजना की तर्ज पर किसानों के लिए अपना 'लॉलीपॉप' लाने की तैयारी में जुटी है. मोदी सरकार को उम्मीद है कि किसानों के खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर करके वो ग्रामीण भारत का दिल और वोट जीत सकती है.

लॉलीपॉप वाला होगा इस बार का बजट

वैसे, सरकार वित्तीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने में पूरे साल नाकाम रही है. फिर भी हम कुछ उम्मीद लगा सकते हैं कि बजट के जरिए कुछ चुनावी लॉलीपॉप दिए जाएंगे.

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इसकी एक बड़ी वजह तो ये है कि विश्व स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है. इससे महंगाई काबू में आई है. सरकार को इस मोर्चे पर राहत मिलने से विकास दर भी बढ़ी है, पिछले साल जुलाई से सितंबर की तिमाही में जीडीपी विकास दर घटकर 7.1 फीसद ही रह गई थी, जबकि उससे पहले की तिमाही में जीडीपी विकास दर 8.2 प्रतिशत रही थी. इस बोनस के अलावा सरकार को मदद की दूसरी किस्त रिजर्व बैंक के सरप्लस के हिस्से के तौर पर मिलने की उम्मीद है.

वैसे भी, उर्जित पटेल की विदाई के बाद जिस तरह से एक ब्यूरोक्रेट शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक की कमान दी गई, उसका फल सरकार को मिलने लगा है. पहले तो हमने देखा कि सूक्ष्म, छोटे और मध्यम कारोबारियों को बांटे गए कर्ज को लेकर रिजर्व बैंक ने नरमी भरा रुख दिखाया है, जबकि इस कर्ज की वसूली अभी नहीं हो पा रही है. हमें इस बात के संकेत साफ दिख रहे हैं कि रिजर्व बैंक सरकार को 30 हजार से 40 हजार करोड़ रुपए तक की रकम अंतरिम डिविडेंड के तौर दे सकता है. हालांकि, रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस मामले में खामोशी अख्तियार कर रखी है. हो सकता है कि इस मोर्चे पर हमें कोई हलचल ठीक उस वक्त सुनाई पड़े, जब बजट पेश किया जाने वाला हो.

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बजट नहीं विजन डॉक्यूमेंट होगा

तब, क्या हम इसे खास तौर से चुने गए रिजर्व बैंक के गवर्नर का सरकार को चुनावी तोहफा कह सकेंगे? इतनी बड़ी रकम की मदद मिलने से चुनावी साल में सरकार की बल्ले-बल्ले हो सकती है. ऐसी खबरें हैं कि एक फरवरी को पेश होने वाला बजट असल में विजन डॉक्यूमेंट होगा, जिसके जरिए मोदी सरकार वो तस्वीर दिखाने की कोशिश करेगी, जो दोबारा सत्ता में आने पर बनाएगी. इसे सरकार का आर्थिक चुनावी घोषणापत्र भी कहा जा सकता है.

बीजेपी, कांग्रेस की तरह से लोकलुभावन राजनीति करने वाली पार्टी नहीं है. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी की भाषण कला जरूर लोक-लुभावन है. दोबारा सत्ता में आने के लिए वोट मांगना है, तो मोदी को भी तो कुछ करके दिखाना होगा, ताकि वो जनता से ये कह सकें कि दोबारा चुनेगी, तो और भी बहुत कुछ देंगे!

मोदी अपनी कद्दावर राजनेता की छवि बनाए रखना चाहते हैं. इसीलिए वो उस तरह की शाहखर्ची से बाज आएंगे जिसके लिए कांग्रेस मशहूर या बदनाम रही है. एक और खास बात ये कि मोदी, दोबारा सत्ता में आने पर अपने ही बयानों के लिए निशाना नहीं बनना चाहेंगे. ऐसे में बजट से हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ लोक-लुभावन योजनाएं तो जरूर आएंगी, ताकि चुनावी भाषणों को धार मिल सके. साथ ही कोशिश ये भी होगी कि चुनाव से पहले ढेर सारे लॉलीपॉप लुटाकर चुनाव पूर्व आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप भी न लगे.

ये भी हकीकत है कि किसी लोक-लुभावन योजना के लिए बजट आवंटन का जमीनी असर दिखने के लिए जरूरी वक्त भी नहीं है. तो, हम ये उम्मीद कर सकते कि बजट में आंकड़ों और लफ्जों की बाजीगरी से जनता का दिल जीता जाए.

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आयुष्मान भारत योजना का अस्त्र

जनता को लुभाने का सबसे बड़ा अस्त्र आयुष्मान भारत योजना हो सकती है. नए साल में नेशनल हेल्थ एजेंसी का दर्जा बढ़ाकर उसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण बना दिया गया है. यानी अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा रकम खर्च करके, इसे चुनाव प्रचार में जोर-शोर से उठाया जा सकता है.

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पिछले साल वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट ने आयुष्मान भारत योजना से 10 करोड़ परिवारों को मदद करने का लक्ष्य रखा था. इसका मतलब हर परिवार को 5 लाख रुपए की मदद से करीब 50 करोड़ जनता को इस योजना का फायदा देना है. चूंकि इस योजना का ऐलान पिछले ही बजट में किया गया था. इसलिए अगर अंतरिम बजट में सरकार इस योजना के लिए रकम बढ़ाती है, तो इसे चुनाव पूर्व लॉलीपॉप कहकर निशाना बनाए जाने की आशंका कम हो जाती है. साथ ही, जैसा कि आयुष्मान भारत योजना के सीईओ इंदु भूषण खुद कह चुके हैं कि पिछले बजट में योजना के लिए 2 हजार करोड़ की रकम आवंटित हुई थी. पर, इस योजना का कुल खर्च 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं है. यानी मौजूदा सरकार अपने ऊपर खर्च का बोझ बढ़ाए बिना, इस योजना से करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचाने का शोर मचा सकती है.

दिल्ली की सर्दी में रोजगार का सवाल सबसे गर्म मुद्दा बना हुआ है. मोदी सरकार ने छोटे कारोबारियों को 59 मिनट के अंदर कर्ज देने की अपनी मुहिम पर काफी कुछ दांव पर लगाया हुआ है. इस योजना के तहत एक करोड़ रुपए तक का कर्ज मिलता है. अब तक 1 लाख 12 हजार से भी ज्यादा कर्ज इस योजना के तहत मंजूर किया जा चुका है. यानी ये रकम इतनी है कि चुनावी भाषण का मायाजाल बुनकर रोजगार की ख्वाब सरीखी दुनिया की तस्वीर दिखाई जा सकती है.

अंतरिम बजट पेश होने के बाद अर्थशास्त्री इसकी जो समीक्षा करेंगे वो चुनावी शोर-गुल में गुम हो जाएगा. मुद्रा लोन के तहत बांटे गए तमाम कर्ज के एनपीए बनने की आशंका जताने वाला रिजर्व बैंक का बयान अर्थशास्त्रियों को पहले ही आशंकित कर चुका है. नई सरकार के चुने जाने तक अर्थशास्त्रियों की फिक्र भरी बातों की फिक्र किसी को नहीं होगी.

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