फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने बजट 2018 के जरिए एग्रीकल्चर सेक्टर में जारी डिस्ट्रेस को कंट्रोल करने की कोशिश की है. इन प्रयासों के लिए उन्हें अपनी पार्टी की तरफ से खूब वाहवाही मिल रही है, लेकिन विपक्ष और फार्म सेक्टर के एक्सपर्ट्स का इस पर काफी आलोचनात्मक रिस्पॉन्स दिखाई दे रहा है.
विपक्ष को लगता है कि बजट में किए गए ऐलान महज कोरी बातें हैं. बजट में जेटली ने जोर दिया है कि किसानों की कमाई 2022 तक दोगुनी हो जाएगी. उन्होंने मिनिमम सपोर्ट प्राइसेज (एमएसपी) को भी 1.5 गुना बढ़ाने का वादा किया है.
फसल बेचने के लिए खड़ा रहता है किसान
जेटली के इस ऐलान को अरेबियन नाइट्स की कपोल-कल्पित कहानी बताते हुए सीपीएम के किसान संगठन ऑल इंडिया किसान सभा (AIKS) ने कहा है कि बजट में खेती-किसानी के लिए हुए ऐलान जमीनी हकीकत कम और फैंटेसी ज्यादा लगते हैं.
AIKS के जॉइंट सेक्रेटरी और CPM के सेंट्रल कमेटी के मेंबर बादल सरोज ने कहा, ‘ऐलान फैंटेसी जैसे हैं. आज भी किसानों को अपने लदे हुए ट्रैक्टरों के साथ फसल बेचने के लिए मंडियों के बाहर चार-पांच दिन तक खड़े रहना पड़ता है. फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) और स्टेट वेयरहाउसेज फसल नहीं खरीद रहे हैं क्योंकि खरीदारी के सिस्टम को खत्म कर दिया गया है. बजट का एकमात्र पॉजिटिव हिस्सा यह है कि किसानों के भारी विरोध-प्रदर्शनों के चलते सरकार ने पहली बार किसानों के मसलों पर नजर डाली है और ऐलान किए हैं.’
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उन्होंने कहा, ‘बजट में न तो आवंटन का जिक्र है, जो कि किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करता है, न ही इसमें स्कीमों को लागू करने के मैकेनिज्म के बारे में कुछ कहा गया है. यह किसानों के साथ भद्दा मजाक है.’
किसानों की हालत में सुधार करने की सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए फॉर्मर फाइनेंस मिनिस्टर और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने पूछा, ‘किसानों की आमदनी क्यों नहीं बढ़ रही है?’
29 जनवरी को संसद के पटल पर रखे गए इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा, ‘इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि वास्तविक एग्रीकल्चरल जीडीपी पिछले पांच सालों में वहीं की वहीं है. कृषि से रेवेन्यू में भी कोई इजाफा नहीं हुआ है. यह साफतौर पर बताता है कि किसानों के आर्थिक हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है.’
चिदंबरम ने कहा, ‘इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया है कि सरकार किस तरह से बजट की योजनाओं को आगे बढ़ाएगी.’
कृषि उत्पादन रिकॉर्ड हाई पर है
खेतीबाड़ी पर फोकस बढ़ाते हुए सरकार ने फार्म सेक्टर के लिए कई उपायों का ऐलान किया है. इसमें एमएसपी फिक्स करने से लेकर कृषि के लिए 2,000 करोड़ रुपए का फंड बनाने जैसी योजनाएं शामिल हैं.
जेटली ने अपनी बजट स्पीच में कहा, ‘हमने किसानों की कमाई बढ़ाने पर काफी जोर दिया है. किसानों के लिए फार्म और नॉन-फार्म एंप्लॉयमेंट पर फोकस बना हुआ है. कृषि उत्पादन रिकॉर्ड हाई पर है. सरकार किसानों को कॉस्ट प्राइस से 50 पर्सेंट ज्यादा दिलाने पर काम कर रही है. इससे किसानों की कमाई 2022 तक दोगुनी करने में मदद मिलेगी. हमारा मकसद एमएसपी को प्रमोट करने का है ताकि किसानों को पूरा एमएसपी मिल सके. सरकार नीति आयोग और राज्य सरकारों के साथ चर्चा कर एक स्ट्रक्चर तय करेगी ताकि मार्केट प्राइस कम होने की स्थिति में भी किसानों को एमएसपी मिल सके. खरीफ फसलों के लिए एमएसपी उत्पादन लागत की 1.5 गुना होगी.’
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रहे और एग्री एक्सपर्ट सोमपाल शास्त्री ने इन ऐलानों को झूठ करार दिया. शास्त्री ने कहा, ‘सीएसीपी का प्रॉडक्शन की लागत निकालने का तरीका भी गड़बड़ियों से भरा है. सरकार कॉस्ट से कम एमएसपी ऑफर कर रही है. सरकार के ऐलान के मुताबिक, अगर कृषि आय को अगले चार साल में दोगुना करना है तो एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ सालाना कम से कम 20 पर्सेंट की रफ्तार से बढ़नी चाहिए. यह फिलहाल होता नहीं दिख रहा है.’ शास्त्री नेशनल कमीशन फॉर फार्मर्स के पहले चेयरपर्सन भी रहे हैं.
कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेज (सीएसीपी) को पहले एग्रीकल्चरल प्राइसेज कमीशन कहा जाता था. सीएसीपी सरकार की एक विकेंद्रीकृत इकाई है. इसका काम कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी की सिफारिश करना है.
योगेंद्र यादव की अगुवाई वाले स्वराज इंडिया की किसान विंग जय किसान आंदोलन ने गुरुवार को # किसान का बजट’ नाम से एक सत्र का आयोजन किया ताकि किसानों के नजरिए से बजट का विश्लेषण किया जा सके.
यादव ने कहा, ‘गुजरे चार सालों में सरकार एग्री सेक्टर पर नाकाम होती नजर आई है. हमें उम्मीद थी कि इस अंतिम बजट में सरकार किसानों को उनके उत्पादों के लिए उचित और फायदेमंद मूल्य दिलाने का एक रोडमैप लेकर आएगी और किसानों की समस्याओं को हल करेगी. लेकिन, यह बजट किसानों के साथ बेइमानी है. सरकार ने दिखाया है कि उन्हें किसानों की तकलीफ से कोई लेनादेना नहीं है. इसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति का साफ अभाव दिखाई दिया है. उन्हें लगता है कि वे किसानों की वास्तविक समस्याओं को हल करे बगैर आसानी से चुनाव जीत सकते हैं.’
'कृषि स्टेट सब्जेक्ट है'
हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की किसानों की संस्था भारतीय किसान संघ ने बजट की तारीफ की है, लेकिन इसकी भी कुछ चिंताएं हैं. BKS के जनरल सेक्रेटरी बद्री नारायण चौधरी ने कहा है, ‘शुरुआती तौर पर लगता है कि किसानों के लिए हुए ऐलान अच्छे हैं. लेकिन किसी भी किसान से बात कीजिए और वह बताएगा कि उसे उत्पादन लागत से कम दाम मिल रहा है. ऐसा एमएसपी के कैलकुलेशन में गड़बड़ियों के चलते होता है. जरूरत इस चीज की है कि किस तरह से एमएसपी, जो कि कॉस्ट की 1.5 गुनी होगी, को लागू किया जाता है.’
उन्होंने कहा, ‘लागू करने का मैकेनिज्म और राज्य सरकारों की भूमिका काफी अहम है क्योंकि कृषि स्टेट सब्जेक्ट है. कई बार देखा गया है कि राज्य 40 पर्सेंट डेलीवरेंस के अपने हिस्से का इस्तेमाल नहीं कर पाते. इससे किसानों को तकलीफ होती है. राज्य काम करें इसके लिए एक मजबूत पॉलिसी की जरूरत है.’
विपक्षी इस बजट को मोदी सरकार की किसानों को लुभाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं. इन्हें लगता है कि सरकार इस साल राज्यों में होने वाले असेंबली इलेक्शंस और अगले साल आम चुनावों से पहले पूरे देश में किसानों में फैले तनाव को कम करना चाहती है.
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जून 2017 में मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों का रोष पूरे देश ने देखा था और इसमें बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. इस साल आठ राज्यों में चुनाव होने हैं, ऐसे में कम से कम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों के मसले बड़े तौर पर उभर सकते हैं.
गुजरात के हालिया चुनावों में भी किसानों में फैला तनाव बड़े लेवल पर दिखाई दिया था और विपक्षी पार्टी कांग्रेस को किसानों के गुस्से से फायदा भी हुआ. सत्ताधारी बीजेपी गुजरात के ग्रामीण इलाकों में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई.
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कृषि सेक्टर को लेकर हुए ऐलानों को जुमला करार दिया. बादल सरोज ने लिखा है, ‘हालांकि, इन ऐलानों से बीजेपी की सरकार ने किसानों को चुनावों से पहले लुभाने की कोशिश की है, लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि किसानों को अब और हल्के में नहीं लिया जा सकता.’
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