गुरुवार को मोदी सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश हुआ. इसका सबसे बड़ा ऐलान था राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना. इसके तहत सरकार ने 10 करोड़ गरीब परिवारों को मेडिकल सुविधाओं के लिए पांच लाख रुपए तक की मदद का वादा किया गया है. ये मानते हुए कि हर परिवार में औसतन पांच लोग होते हैं, इस स्कीम से पचास करोड़ लोगों को मेडिकल सुविधा का फायदा मिलने की उम्मीद है.
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि कामयाब होने पर इस स्वास्थ्य योजना का दायरा बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने इसे दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना करार दिया. बहुत से मायनों में मोदी सरकार की ये स्वास्थ्य योजना, अमेरिका की ओबामाकेयर योजना से मिलती-जुलती कही जा रही है. ओबामाकेयर में भी सरकार ने लोगों की सेहत का जिम्मा लिया था. लेकिन, क्या भारत में ऐसी योजना कामयाब हो सकती है? और क्या ये उस सूरत में लागू हो पाएगी, जैसा कि वित्त मंत्री जेटली ने बजट में ऐलान किया.
अगर हम हकीकत और तथ्यों पर नजर डालें, तो ये योजना लागू होना नामुमकिन सा लगता है. इसकी पहली वजह तो यही है कि इतनी बड़ी योजना के लिए बजट में कोई फंड नहीं रखा गया है. ऐसी योजनाएं तो पहले भी लाई गई थीं. पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के नाम से एक स्कीम शुरू हुई. बाद में इसका नाम राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना कर दिया गया. पिछले साल इसे रिपैकेज करके राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना यानी NHPS के नाम से फिर से लॉन्च किया गया.
कई राज्यों में चल रही हैं इस तरह की योजनाएं
कई राज्य भी गरीबों के लिए ऐसी स्वास्थ्य योजनाएं चला रहे हैं. आंध्र प्रदेश में आरोग्यश्री, कर्नाटक में वाजपेयी आरोग्यश्री योजना, राजस्थान में भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना और गोवा की दीनदयाल स्वास्थ्य सेवा योजना इसकी कुछ मिसालें हैं. महाराष्ट्र ने अपनी स्वास्थ्य योजना के लिए 2017-18 के बजट में 1316 करोड़ का फंड रखा था. पांच साल में महात्मा ज्योतिबा फूले जन आरोग्य योजना के तहत 15.04 लाख दावे निपटाए गए. इसमें सरकार को 3343.51 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.
ताजा स्वास्थ्य संरक्षण योजना, इन सभी योजनाओं का बड़ा रूप मालूम होती है. पुरानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना/राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 30 हजार रुपए का बीमा देने का प्रावधान था. इसके बाद आई राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना में ये रकम बढ़ाकर एक लाख कर दी गई थी. अब नई योजना में सरकार ने बीमा की रकम 5 लाख रुपए करने का ऐलान किया है.
सवाल ये है कि इस योजना के लिए सरकार पैसे कहां से जुटाएगी? बजट में तो वित्त मंत्री जेटली ने बस इतना कहा कि योजना लागू करने के लिए पर्याप्त धन मुहैया कराया जाएगा. लेकिन इसके लिए बजट में किसी रकम का जिक्र नहीं है. आम तौर पर अगर बजट में किसी योजना का ऐलान होता है, तो उसके साथ ही फंड की घोषणा भी की जाती है. हम अगर ये मान लें कि सरकार मौजूदा फंड का इस्तेमाल ही नई योजना के लिए करेगी. तो वो रकम यानी दो हजार करोड़ रुपए तो इस योजना के लिहाज से बहुत कम हैं. इतनी कम रकम से ये योजना तो लागू की ही नहीं जा सकती. पांच लाख के बीमा कवर की योजना का सालाना प्रीमियम औसतन 10 हजार रुपए होता है. माना कि ये सरकारी योजना है, तो प्रीमियम कम होगा. फिर भी बहुत कम तो होगा नहीं.
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हिंदू बिजनेस लाइन ने स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकार अर्थशास्त्री प्रोफेसर इंद्रनील मुखोपाध्याय के हवाले से लिखा कि, 'हम ऐसी योजना को बाजार रेट के पैमाने पर कसें, तो सरकार को इसके लिए 1.2 लाख करोड़ प्रीमियम देना होगा. जबकि देश का कुल स्वास्थ्य खर्च ही 1.3 लाख करोड़ का है.'
क्या सरकारी अस्पताल हैं तैयार?
इस साल के बजट में स्वास्थ्य के लिए 52,800 करोड़ का प्रावधान किया गया है. इसमें अगर राज्य सरकारों का बजट भी जोड़ दें, तो ये रकम काफी ज्यादा होगी. फिर भी नई योजना को लागू करना आसान नहीं होगा.
अगर सरकार हर परिवार को पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देती है, तो ये बहुत शानदार बात होगी. मगर ये याद रखिए कि पिछले साल लागू की गई, एनएचपीएस योजना को भी ठीक से लागू नहीं किया जा सका है.
पिछले साल दिसंबर में सरकार ने संसद को बताया था कि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना का रंग-रूप अब तक तय नहीं हुआ है. अब, अगर सरकार जैसे-तैसे इस योजना के लिए रकम जुटा भी लेती है, तो क्या हमारे सरकारी अस्पताल लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए तैयार हैं?
हम निजी अस्पतालों से तो ये उम्मीद कर नहीं सकते कि वो इस योजना को लागू करने में मदद करेंगे. ऐसे में सरकारी अस्पतालों को ही योजना को लागू करना होगा. इसके लिए जरूरी बुनियादी ढांचा नहीं दिखता.
अब अगर सरकारी अस्पतालों की हालत नहीं सुधरती, तो योजना के ऐलान से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता. सरकार को इस बात पर जोर देने की ज्यादा जरूरत है. कहने का मतलब ये कि जेटली ने जिस स्वास्थ्य योजना का ऐलान किया है, वो सुनने में तो बहुत शानदार लगती है. देश के 50 करोड़ लोगों को ये ऐलान बहुत पसंद आया. लेकिन इस प्लान को लागू करने का कोई प्लान नहीं दिखता.
पहले भी ऐसी योजनाएं लाई गईं थी, मगर उनका हाल बहुत बुरा रहा. ऐसे में इस स्वास्थ्य योजना से भी कुछ खास उम्मीद करना बेमानी है. हमें ये देखना होगा कि मोदी सरकार दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना को किस तरह लागू करती है.
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