धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रति क्विन्टल 200 रुपए बढ़कर बेशक 1750 रुपए हो गया हो लेकिन छत्तीसगढ़ के धान उपजाने वाले किसान खुश नहीं हैं. छत्तीसगढ़ पूर्वी भारत का धान का कटोरा कहलाता है, 43 लाख किसानों के इस सूबे में धान मुख्य फसल है. किसानों को उम्मीद थी कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार अपना वादा निभाते हुए धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य के रुप में प्रति क्विन्टल 2100 रुपए का भुगतान करेगी.
सूबे के कृषिमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि 'छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को प्रति क्विन्टल 300 रुपए का बोनस भी दे रही है, बोनस को मिलाकर किसानों को धान की उपज पर प्रति क्विन्टल 2050 रुपए मिलेंगे. ये फैसला प्रदेश के किसानों के लिए एक वरदान की तरह है और इससे उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आएंगे.'
सूबे के मुख्यमंत्री के रुप में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण करने के बाद रमन सिंह ने 12 दिसंबर 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी थी कि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2100 रुपए कर दिया जाए. उस समय बीजेपी ने भी अपने घोषणापत्र में ऐसा करने का वादा किया था.
रमन सिंह ने चिट्ठी में लिखा कि 'हमारे किसान धान की एमएसपी 1345 रुपए प्रति क्विन्टल होने से निराश हैं. खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए यह रकम बहुत कम है. पिछले कुछ सालों में खाद और मजदूरी के दाम में लगातार इजाफा हुआ है. स्थाई तौर पर खाद्य-सुरक्षा कायम करने के लिए एमएसपी बढ़ाना जरुरी है ताकि किसानी फायदेमंद बन सके.'
समर्थन मूल्य बेमानी-मतलब का है
रायपुर जिले के अरंग गांव के किसानों का बढ़े हुए समर्थन मूल्य के बारे में कहना है कि वो बेमानी-मतलब का है. किसान द्वारिका साहू ने कहा कि एक एकड़ के रकबे में धान की खेती में 145 दिनों की मजदूरी लगती है. सरकार ने न्यूनतम मजदूरी 235 रुपए प्रतिदिन तय की है. इस हिसाब से एक एकड़ के लिए मजदूरी पर ही 33,350 रुपए का खर्चा बैठेगा. इसमें धान के बीज के लिए 700 रुपए, कीटनाशक के मद में 2000 रुपए और खाद-बनाई (मेनर) के 3000 रुपए जोड़ दें तो जमीन का किराया हटाकर कुल खर्च 39,050 रुपए का आता है. प्रति एकड़ धान की औसत उपज 10 क्विन्टल की है.
द्वारिका साहू का कहना है कि 10 क्विन्टल धान के लिए सरकार 17,500 रुपए दे रही है. इसमें बोनस के प्रति क्विन्टल 300 रुपए जोड़ दें तो समर्थन मूल्य प्रति क्विन्टल बढ़कर 2050 रुपए हो जायेगा यानि एक एकड़ की धान की खेती पर किसान को कुल 20,500 रुपए मिलेंगे. ऐसे में किसान को प्रति एकड़ 18500 रुपए का घाटा होगा.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल का कहना है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के मुताबिक धान के लिए समर्थन मूल्य 2226 रुपए प्रति क्विन्टल होना चाहिए.
प्रधानमंत्री मोदी ने किया था किसानों की आय दोगुनी करने का वादा
साल 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार के वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने वादा किया था कि एमएसपी को तय करने में स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले का पालन किया जाएगा ताकि किसानी फायदेमंद बन सके. आयोग की सिफारिश थी कि उपज का सरकारी खरीद मूल्य तय करने में इसके लागत-खर्च की गिनती बड़े फलक पर की जाए, लागत खर्च में जमीन का किराया और जमीन के मालिकाने के नाते मिलने वाले सूद और लगाई गई पूंजी सबको जोड़ा जाए. ऐसा करने पर जो राशि लागत-खर्च के रुप में आती है उसका 50 प्रतिशत और जोड़कर उपज का खरीद मूल्य तय किया जाए और उपज की खरीद की गारंटी दी जाए.
इसमें आखिर का नुक्ता बहुत अहम है. न्यूनतम समर्थम मूल्य तय कर देने भर से इस बात की गारंटी नहीं हो जाती कि सरकार सारी उपज तयशुदा मूल्य पर खरीद ही लेगी. किसान नेता आनंद मिश्र का कहना है कि ‘बीते चार सालों में किसानों ने जितना उपजाया है उसका केवल 6 फीसद हिस्सा ही सरकारी खरीद में गया है. अगर हालत ऐसी है तो फिर प्रधानमंत्री मोदी का यह वादा भूल जाइए कि किसानों की आमदनी वो दोगुनी कर दिखाएंगे. उपज का बाकी बचा 94 फीसद हिस्सा एजेंट और बिचौलिए लूट ले जाते हैं, वे एमएसपी का दो तिहाई भर देकर उपज खरीद लेते हैं’.
आनंद मिश्र का कहना है कि डीजल की कीमत 2014 के बाद से अबतक 11 रुपए प्रतिलीटर बढ़ चुकी है, अब से पहले 2014 में एमएसपी बढ़ाई गई थी. बीते छह महीने में खाद की कीमत में 24 फीसदी का इजाफा हुआ है. खाद बेचने वाली कंपनियां डायमोनियम फॉस्फेट(डीएपी) के 50 किलो का बस्ता जनवरी महीने में 1091 रुपए में बेंच रही थी. लेकिन अब वह 1290 रुपए में बिक रहा है. हर साल हिन्दुस्तान के किसान 8.98 मिलियन टन डीएपी खरीदते हैं. इसका मतलब हुआ किसानों को सिर्फ खाद की खरीद पर 5561 करोड़ रुपए ज्यादा देने होंगे.
खेतिहर उत्पाद पर टैक्स लगाने वाली एकलौती है मोदी सरकार
छत्तीसगढ़ विधानसभा के विपक्ष के नेता टीएस सिंहदेव का कहना है कि ‘बीते 70 सालों के इतिहास में अकेली मोदी सरकार है जिसने खेतिहर उत्पाद और औजार पर टैक्स लगाए हैं. खाद पर आपको 5 फीसद का जीएसटी देना होता है, खेती के औजारों की खरीद पर 12 प्रतिशत की जीएसटी देनी पड़ रही है, टायर, ट्यूब/ ट्रांसमिशन के कलपुर्जों पर 18 प्रतिशत की जीएसटी है, कीटनाशकों और भंडारण के सामानों पर भी 18 प्रतिशत की जीएसटी है. इसकी तुलना में धान के समर्थन मूल्य में नाममात्र का इजाफा हुआ है. ऐसा जान पड़ता है कि सरकार की प्राथमिकता की सूची में किसान हैं ही नहीं’.
अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी बीजेपी की पहली सरकार ने 1998 से 2004 के बीच छह सालों में धान की एमएसपी 60 रुपए बढ़ाई और एमएसपी 490 रुपए से बढ़कर प्रति क्विन्टल 550 रुपए हुई. मोदी सरकार ने अपने बीते चार सालों में एमएसपी दो दफे 200 रुपए बढ़ाई है. तो कुल मिलाकर बीजेपी के शासन के 10 सालों में एमएसपी में 460 रुपए का इजाफा हुआ है. इसकी तुलना में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए गठबंधन की सरकार को देखें तो साल 2004 से 2009 के बीच धान की एमएसपी में 450 रुपए का इजाफा हुआ और धान का समर्थन मूल्य 550 रुपए से बढ़कर 900 रुपए प्रति क्विन्टल पर पहुंचा, फिर 2009 से 2014 के बीच धान के समर्थन मूल्य में 440 रुपए प्रति क्विन्टल की बढ़ोत्तरी हुई. इस तरह यूपीए के दस सालों में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कुल 890 रुपए की बढ़त हुई.
लेकिन छत्तीसगढ़ के कृषिमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा है कि इससे किसानों की खुशहाली बढ़ेगी. उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर दिखाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि सूबे के किसानों को बोनस दिया जा रहा है, फसल बीमा के एवज में मुआवजे की राशि मिल रही है, बिजली, बीज और खाद पर सब्सिडी दी जा रही है और इस तरह किसानों को हर साल 7000 रुपए अलग से मिल रहे हैं.
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