पंजाब नेशनल बैंक में हुए महाघोटाले ने देश को हिला कर रख दिया है. इसे भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सबसे बड़ी वित्तीय गड़बड़ी माना जा रहा है. जैसे-जैसे मामले की जांच आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे घोटाले की रकम में इजाफा होता जा रहा है. पीएनबी में कितनी रकम का गोलमाल हुआ और उसकी ठगी में कुल कितने लोग शामिल थे, इस रहस्य पर अबतक पर्दा पड़ा हुआ है. वहीं पीएनबी घोटाला उजागर होने के बाद एक बार फिर से बैंकों के कामकाज के तरीके और उनके रवैए पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं.
हम में से ज्यादातर लोगों के लिए बैंक एक डरावनी हकीकत बनकर रह गए हैं. बैंकों के रूखे रवैए और शत्रुतापूर्ण व्यवहार के चलते आम लोग उनसे भयभीत नज़र आते हैं. लोगों को लगने लगा है कि बैंक ऐसे पाखंडी और खुद परस्त संस्थान हैं जो उनके सुख-चैन को छीनने के लिए बनाए गए हैं.
ठगी नहीं बैंक से समस्या
हमारे लिए 114 अरब रुपये और 11,000 करोड़ रुपये जैसी ठगी के आंकड़ों का खास महत्व नहीं है. ये वही बैंक हैं जो क्रेडिट कार्ड के पेमेंट में एक दिन की देरी होने पर सुबह छह बजे कॉल करके हमें हड़काते हैं. ये वही बैंक हैं जो मामूली सी रकम वक्त पर न चुका पाने पर हमें और हमारे परिवार को बर्बाद करने की धमकी देते हैं. देश में फिलहाल करीब 3 करोड़ लोगों के पास क्रेडिट कार्ड हैं. इनमें से चार में से एक क्रेडिट कार्ड धारक को उसकी बैंक ने डिफाल्टर मान रखा है. यानी बैंकों की नज़र में 25 फीसदी क्रेडिट कार्ड धारक उनकी रकम का भुगतान या तो देरी से करते हैं या करना ही नहीं चाहते हैं. लिहाज़ा क्रेडिट कार्ड धारकों को सुबह-सुबह बैंकों की तरफ से चेतावनी मिलना शुरू हो जाती है. वहीं अगर डेबिट कार्ड की बात करें तो देश में फिलहाल करीब 9 करोड़ लोग डेबिट कार्ड धारक हैं. बैंकों का व्यवहार डेबिट कार्ड धारकों के साथ भी अच्छा नहीं है.
क्रेडिट और डेबिट कार्ड प्लास्टिक की हथकड़ी की मानिंद हो गए हैं. जिनमें आम आदमी दिन-ब-दिन जकड़ता जा रहा है. लोगों को क्रेडिट और डेबिट कार्ड का ग्राहक बनाने के लिए बैंक झूठा और छल-कपट से भरा प्रचार करते हैं. लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि क्रेडिट और डेबिट कार्ड के इस्तेमाल से उनकी ज़िंदगी आसान हो जाएगी, उन्हें पैसों के लिए किसी और का मोहताज नहीं बनना पड़ेगा. लेकिन बैंक जो प्रचार करते हैं होता उसके उलट है. सच्चाई तो यह है कि क्रेडिट और डेबिट कार्ड वित्तीय दासता की बेड़ियां बन चुके हैं.
ये सभी बैंक आपको बताते हैं कि वे आपसे कितना प्यार करते हैं. वे हमेशा यह जताते रहते हैं कि उन्हें आपकी कितनी परवाह है. ज़्यादातर बैंक यह दिखावा करते हैं कि वे आपकी सहूलियत, आपके हितों और आपके मन की शांति के बारे में सोच रहे हैं. बैंकों के इस हमदर्द और दोस्ताना बर्ताव पर आपको रोना आ जाता होगा. आपको लगता होगा कि बैंकों को आपकी कितनी फिक्र है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में बैंकों का यही हाल है. ग्राहकों को लुभाने के लिए बैंकर तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. सभी बैंकर सुबह नहा-धोकर वैश्विक शांति और सद्भाव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने बैठ जाते हैं. इसके बाद वे गरीब ग्राहकों के हितों की जंग लड़ने के इरादे से अपने ऑफिस की ओर निकल पड़ते हैं. लेकिन ऑफिस पहुंचने पर इन बैंकर्स का सुर, रवैया और इरादा बिल्कुल बदल जाता है.
लोन चुकाने में विलंब या क्रेडिट कार्ड के भुगतान में देरी होने पर बैंक के अधिकारियों का बर्ताव बहुत तीखा और सख्त होता है. उस वक्त बैंक अधिकारियों की ज़हरीली ज़ुबान बेहद नाटकीय और सदमा पहुंचाने वाली बन जाती है. बैंकों के कामकाज का स्तर कहां जा पहुंचा है इसका अंदाज़ा आप अमेरिका से लगा सकते हैं, जहां बैंकिंग सेक्टर के कॉल सेंटरों में कैदियों की भर्ती की जा रही है. संगीन अपराधों में सज़ायाफ्ता कैदी किस ज़ुबान में ग्राहकों से बात करते होंगे इसे बखूबी समझा जा सकता है. यानी बैंक हमें अपना ग्राहक कम दुश्मन ज़्यादा समझते हैं. कर्ज़ वापसी और भुगतान में ज़रा सी देरी होने पर कॉल सेंटरों के लोग और बैंकों के वसूली एजेंट बेअदबी और बदसलूकी पर उतर आते हैं. कर्ज़दार को बर्बाद करने की धमकियां दी जाने लगती हैं. लेकिन दूसरी तरफ मोदी और चौकसी जैसे लोग इन बैंकों की अथाह मोटी रकम हड़पने के बाद दिनदहाड़े बचकर निकल जाते हैं. आम आदमी की चवन्नी पर निगाहें गड़ाए रखने वाले ये बैंक बड़े घोटालेबाजों के लिए आंखें मूंदे रहते हैं.
जवाबदेही नहीं
बैंक घोटालों से जुड़ा एक और पहलू हर बार उभर कर सामने आता है. आम आदमी को कभी यह स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है कि, वित्तीय गड़बड़ी की भनक मिलने पर बैंक तत्परता क्यों नहीं दिखाते हैं. बैंक हमेशा ठगी के शिकार बन जाने के बाद ही हाय तौबा क्यों मचाते हैं. वे वक्त रहते सचेत क्यों नहीं होते हैं. लिहाज़ा यह मुद्दा अस्पष्ट, उलझा हुआ और भ्रमित करने वाला है. लेकिन इस मुद्दे ने यह ज़रूर स्पष्ट कर दिया है कि शोषण की सार्वजनिक क्षमता अब खत्म हो चुकी है.
अगर हमारे जैसा कोई आम आदमी किसी बैंक से एक या दो लाख रुपये का लोन लेना चाहे, तो उसे एक मुश्किल और दुःखदाई प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. बैंक के तमाम चक्कर लगाना पड़ते हैं. तमाम कागज़ी खानापूर्ति करना पड़ती है. बैंक गारंटर्स भी जुगाड़ना पड़ते हैं. तब कहीं जाकर छोटा सा लोन पास हो पाता है. हैरत नहीं होना चाहिए अगर जल्द ही लोन के लिए पॉलीग्राफ और ब्लड टेस्ट भी अनिवार्य कर दिया जाए.
लोन पाने के लिए आम आदमी को क्या-क्या पापड़ नहीं बेलना पड़ते हैं. अनगिनत दस्तावेज, कई चेक और प्रमाण पत्र, कॉलैटरल (प्रमाणित करने वाला) का इंतज़ाम करने के बाद बैंक से दर्जनों बार 'कल आना' जैसे शब्द भी सुनना पड़ते हैं. कल-कल करते-करते लंबा वक्त गुज़र जाता है. और फिर जब लोन पास होने की नौबत आती है तो बैंक अधिकारी ज़रूरतमंद शख्स को और भी शक की निगाह से देखने लगते हैं. उधर एक ज्वेलर कई देशों की जीडीपी से भी बड़ी रकम हड़पकर फरार हो गया लेकिन किसी ने ध्यान तक नहीं दिया. पाई-पाई का हिसाब रखने वाली बैंक ने ज्वेलर के खाते का हिसाब क्यों नहीं रखा. एक करोड़ फिर दो करोड़ फिर दस करोड़ फिर सौ करोड़ और फिर धीरे-धीरे ग्यारह हजार करोड़ रुपये तक की रकम ज्वेलर के खाते में पहुंच गई, लेकिन फिर भी बैंक क्यों नहीं चेता.
हम लोग बैंकर नहीं हैं. लेकिन अगर हमसे 1000 रुपये खो जाते हैं या हम उन्हें कहीं रखकर भूल जाते हैं, तो हमें बखूबी पता होता है कि हमारा पैसा गायब है.
ओह, ज़रा एक मिनट रुकिए. मुझे अब ख्याल आया. पीएनबी के अधिकारी शायद इसलिए ज्वेलर के खाते पर नज़र नहीं रख पाए क्योंकि वे उस वक्त मिस्टर कुमार का पीछा करने में व्यस्त थे. उन्हें मिस्टर कुमार से होम लोन की मासिक किश्त के 30,000 रुपये जो वसूल करने थे. मिस्टर कुमार ईएमआई चुकाने में पूरा एक दिन लेट थे.
नज़र रखे रहिए कि इस कहानी की तहें किस तरह से खुलती हैं. यह भी पुरानी घिसी-पिटी लीक पर ही चलेगी. बैंक बिरादरी बहुत ढीठ और सख्त जान होती है. इनका ताना-बाना बहुत मज़बूत होता है. घोटाले को लेकर फिलहाल कुछ बैंक अधिकारियों पर गाज गिरेगी. धीरे-धीरे जब घोटाले में शामिल बैंक अधिकारियों और घोटाले की रकम से मीडिया का ध्यान हटेगा, तब बैंक फिर से अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे.
फिलहाल घोटाले के आरोपी नीरव मोदी के ठिकानों पर छापेमारी और उसकी जायदाद की जब्तगी के बहाने हमें बहलाया जा रहा है. मोदी इस वक्त कहां छुपा बैठा है इस बारे में इंटपोल की सूचनाओं से भी लोगों को खुश किया जा रहा है. हालांकि इनमें से कई देश ऐसे हैं जहां से उसे प्रत्यर्पित नहीं कराया जा सकता है. इसी तरह चौकसी के बारे में भी दिल फरेब कहानियां फैलाई जा रही हैं. जबकि यह सभी खोजें अर्थहीन हैं.
जो तत्व अभी ठगी की ओर इशारा कर रहे हैं, उन्हें धीरे-धीरे अलग सूची में डाल दिया जाएगा. तब घोटाले को वित्तीय विश्वासघात का नाम भी दिया जा सकता है. इसके बाद नीरव मोदी भारत से भागे दूसरे घोटालेबाजों के साथ विदेश में बैठकर दावत उड़ाएगा. उस वक्त इन घोटालेबाजों के बीच यह शर्त लगेगी कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम को सबसे बड़ा चूना किसने लगाया.
विदेश में बैठकर नीरव मोदी यह बयान देगा कि उसका इरादा घोटाला करना या रकम हड़पना नहीं था. वह हड़पी गई रकम को जल्द से जल्द लौटाने का वादा भी करेगा. मोदी के यह बयान पूरे कर्तव्य के साथ देश के हर अखबार के पहले पन्ने पर छापे जाएंगे.
हम तो बस इतना जानना चाहते हैं कि बैंक आखिर खुद को चूना क्यों लगने देते हैं. वह इतनी आसानी से महा ठगी और महा घोटाले के शिकार कैसे हो जाते हैं. और सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि सभी घोटालेबाज इतनी आसानी के साथ देश से बचकर कैसे निकल जाते हैं.
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