अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनके देश का मानना है कि पाकिस्तान में सरकार ‘कमजोर’ है. अमेरिका का मानना है कि कट्टरपंथी धार्मिक पार्टियों के प्रदर्शनों को खत्म करने में सेना की भूमिका ने देश में चरमपंथियों का हौसला बढ़ाया है.
पाकिस्तान में चुनावी शपथ के नए रूप में में पैगंबर मुहम्मद का जिक्र हटाने के बाद कट्टरपंथी धार्मिक समूहों ने पिछले महीने देशभर में प्रदर्शन किए थे.
कानून मंत्री जाहिद हामिद के इस्तीफा देने के बाद प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन बंद किए. उन्होंने कानूनी मंत्री के इस्तीफे की मांग की थी. पाकिस्तान की एक अदालत ने प्रदर्शनों को खत्म करने के समझौते में मध्यस्थता की भूमिका निभाने के लिए सेना की आलोचना की. इन प्रदर्शनों में छह लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए.
अमेरिकी अधिकारी ने कहा, ‘हमने सेना और कुछ कट्टर इस्लामिक समूहों के बीच निराशाजनक संबंध देखे है. हम इस पर नजर रख रहे हैं कि क्या हुआ और सेना की इसमें क्या भूमिका थीं? चिंता इस बात की है कि जिस तरीके से ये प्रदर्शन समाप्त हुए उससे पाकिस्तान में चरमपंथ और चरमपंथियों को बढ़ावा मिला है.’
अधिकारी ने कहा, ‘अभी सरकार बहुत कमजोर है. हाल के प्रदर्शन से भी यह दिखाई दिया.’ उन्होंने कहा कि जिस तरीके से प्रदर्शनों से निपटा गया उससे पाकिस्तान में लोगों के लिए ईशनिंदा के आरोप लगाना आसान हो गया है. पाकिस्तान में दर्जनों लोगों को सार्वजनिक तौर पर कथित ईशनिंदा के लिए मौत की सजा दी जा चुकी है.
अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की स्थिति खराब होती जा रही है.
तख्तापलट हुआ तो अमेरिका करेगा प्रतिक्रिया
वाइट हाउस अधिकारी ने चेतावनी दी कि पाकिस्तान में किसी भी सैन्य तख्तापलट की ‘प्रतिक्रिया’ होगी. पाकिस्तान में इस तरह की तानाशाही का इतिहास रहा है. सैन्य तख्तापलट की स्थिति में ना केवल अमेरिका-पाकिस्तान संबंध अवरुद्ध होंगे बल्कि उस पर सभी तरह के प्रतिबंध भी लगाए जाएंगे.
उन्होंने कहा कि मैं इस बात से आश्वस्त नहीं हूं कि सेना सरकार का तख्तापलट करना चाहती है, लेकिन सेना निश्चित तौर पर सत्ता पर पकड़ जमाना चाहती है.
अधिकारी ने कहा, ‘सेना को फिर से सरकार बनाने की कोशिश करते हुए देखना बेहद निराशाजनक होगा.’ उन्होंने उम्मीद जताई कि पाकिस्तान में आगामी आम चुनाव अगले वर्ष निर्धारित समय पर होंगे.
पाकिस्तान की नागरिक सरकार और ताकतवर सेना के बीच संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं. सेना ने देश के 70 साल के इतिहास में करीब आधे समय तक शासन किया है.