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नीदरलैंड-तुर्की विवाद: अप्रवासियों के राजनीतिक इस्तेमाल के खतरे?

अमेरिका और यूरोप में बाहर से आकर बसने वालों के खिलाफ नफरत की बयार बह रही है

shubha singh

ज्यादातर देश अपने अप्रवासी नागरिकों को लुभाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं. दूसरे देशों में बसे इन लोगों की अपने देश में काफी पूछ होती है. लेकिन, पिछले दिनों नीदरलैंड और तुर्की के बीच हुई तनातनी से अप्रवासियों को लुभाने की कोशिशों पर सवाल खड़े हो गए हैं.

अमेरिका और यूरोप में बाहर से आकर बसने वालों के खिलाफ नफरत की बयार बह रही है. ऐसे में अब अप्रवासियों को लुभाने के तरीकों पर नए सिरे से विचार किया जा रहा है. ताकि दूसरे देशों में रहने वाले नागरिकों के अपनी मातृभूमि से जुड़ाव की भावना को भड़काया न जाए.


आखिर क्या है नीदरलैंड और तुर्की के बीच तनाव की मुख्य वजह?

नीदरलैंड और तुर्की के बीच तनातनी अब दूसरे यूरोपीय देशों को भी अपनी चपेट में ले सकती है. इसकी शुरुआत उस वक्त हुई जब नीदरलैंड ने तुर्की के मंत्रियों को अपने यहां रैलियां और सभाएं करने से रोक दिया. तुर्की के ये मंत्री, नए संविधान के लिए नीदरलैंड में बसे तुर्की के लोगों का समर्थन जुटाना चाहते थे.

नीदरलैंड में इस वक्त चुनाव चल रहे हैं. इसी दौरान तुर्की की परिवार मंत्री फातिमा बेतुल सयान काया नीदरलैंड पहुंची थीं. वो रॉटर्डम शहर में तुर्की के अप्रवासियों की रैली करना चाहती थीं. लेकिन नीदरलैंड की सरकार ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी और अपने देश से बाहर निकाल दिया.

तुर्की के दूतावास के सामने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए नीदरलैंड की पुलिस ने पानी की बौछारों और घुड़सवार पुलिस की मदद ली. तुर्की के विदेश मंत्री मेवलू कावूसोग्लू को भी रॉटर्डम आने से रोक दिया गया.

इससे नाराज तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन ने नीदरलैंड की सरकार को नाजी सरकार करार दिया और उस पर पाबंदी लगाने की धमकी भी दी. तुर्की ने नीदरलैंड के राजदूत को अपनी राजधानी अंकरा आने से भी रोक दिया.

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन

तुर्की की अंदरूनी कलह से भयभीत नीदरलैंड? 

नीदरलैंड में 15 मार्च को संसदीय चुनाव हुए हैं. इसमें प्रधानमंत्री मार्क रूट की कट्टरपंथी पीपुल्स पार्टी फॉर फ्रीडम ऐंड डेमोक्रेसी का मुकाबला धुर दक्षिणपंथी पार्टी ऑफ फ्रीडम के बीच कड़ा मुकाबला था.

पार्टी ऑफ फ्रीडम की अगुवाई गीर्त वाइल्डर्स कर रहे हैं. नीदरलैंड के चुनाव में अप्रवासियों और अल्पसंख्यक मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल करने के मुद्दे सबसे अहम थे.

वहीं तुर्की में नए संविधान के लिए जनमत संग्रह हो रहा है. इस संविधान में तुर्की में संसदीय प्रणाली की जगह राष्ट्रपति व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव है. जिससे मौजूदा राष्ट्रपति को ढेर सारे अधिकार मिल जाएंगे.

तुर्की के तमाम मंत्री दूसरे यूरोपीय देशों में बसे तुर्की मूल के लोगों को लुभाने में लगे हैं. नीदरलैंड को डर है कि राष्ट्रपति अर्दोआन के समर्थक और उनके विरोधियों की तनातनी का असर उसके यहां की राजनीति पर भी पड़ सकता है. इसीलिए उसने तुर्की के मंत्रियों को अपने यहां आने से रोक दिया.

अर्दोआन की तानाशाही विवाद की जड़ 

तुर्की में जुलाई 2016 में तख्ता पलट की नाकाम कोशिश के बाद अर्दोआन अपने विरोधियों से काफी सख्ती से निपट रहे हैं. इससे देश दो हिस्सों में बंटा मालूम होता है. एक तरफ राष्ट्रपति अर्दोआन की तानाशाही के कट्टर समर्थक हैं तो दूसरी तरफ लोकतंत्र समर्थक.

नीदरलैंड के अलावा ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विटजरलैंड ने भी तुर्की के मंत्रियों को अपने यहां प्रचार की इजाजत देने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि इससे उनके देश में अराजकता फैल सकती है. तुर्की की सरकार इन पाबंदियों से बुरी तरह भड़की हुई है.

असल में तुर्की के नए संविधान पर मुहर लगने के लिए तुर्की के अप्रवासियों का समर्थन काफी अहम है. तमाम यूरोपीय देशों में करीब 45 लाख अप्रवासी तुर्क रहते हैं. इनमें से कई के पास नए संविधान के लिए हो रही रायशुमारी में वोट डालने का अधिकार है.

यूरोपीय यूनियन कई बार तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन से अपील कर चुका है कि वो हालात और न बिगाड़ें. मगर तुर्की ने धमकी दी है कि वो मार्च 2016 में यूरोपीय देशों के साथ हुए समझौते से पीछे हट सकता है. इस समझौते के तहत तुर्की, यूरोपीय देशों को जाने वाले अप्रवासियों को अपने देश से होकर गुजरने की इजाजत देता है.

कनाडा ने अमरिंदर सिंह को नहीं करने दिया प्रचार  

बहुत से देशों में विदेशी नेताओं के प्रचार का विरोध होता है. पिछले साल कांग्रेस के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को कनाडा में बसे भारतीयों के बीच प्रचार करने से रोक दिया गया था.

कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में बड़ी तादाद में पंजाबी रहते हैं. इनका पंजाब में अपने परिवार और रिश्तेदारों से गहरा ताल्लुक रहता है. इसीलिए पंजाब के नेता इन अप्रवासी पंजाबियों को लुभाने की कोशिश करते हैं.

आम आदमी पार्टी ने भी अप्रवासी पंजाबियों को लुभाने की पुरजोर कोशिश की थी. उसने 'चलो पंजाब 2017' के नाम से अभियान भी चलाया था. इसका मकसद पंजाब के चुनाव में एनआरआई पंजाबियों को अपने पक्ष में करना था.

कनाडा की सरकार ने 'ग्लोबल अफेयर्स कनाडा' के नाम के एक कानून के हवाले से कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने यहां के पंजाबियों के साथ राजनीतिक मेलजोल बढ़ाने से रोक दिया था.

इस कानून के तहत कनाडा में विदेशी नेताओं और सरकारों पर कनाडा में राजनीतिक अभियान चलाने पर रोक लगाई जाती है. हालांकि आम आदमी पार्टी ने गैर राजनैतिक मंच के जरिए कई सभाएं कर ली थीं.

ट्रंप के दौर में भारतीयों के अमेरिकन ड्रीम पर खतरा 

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका में रह रहे करीब तीन लाख भारतीयों के 'अमेरिकन ड्रीम' पर खतरा मंडरा रहा है. विदेशी लोगों के प्रति नफरत और जलन का छुपा भाव अमेरिकी अब खुलकर जाहिर कर रहे हैं.

हाल के दिनों में भारतीय मूल के लोगों के अलावा मध्य पूर्व के लोग और यहूदी इस नफरत के शिकार हुए हैं. अमेरिका में अप्रवासियों को पूरी तरह समाज की मुख्यधारा से जो़ड़ने की कोशिश नहीं होती. हालांकि उन्हें अपना जरूर लिया जाता है.

पर हाल के दिनों में जो माहौल बना है, उसके बाद अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को सलाह दी गई है कि वो सार्वजनिक ठिकानों पर अपनी जबान में बात न करें. भारतीय मूल के लोगों की तरक्की से कई अमेरिकी जलते हैं. उन्हें लगता है कि भारतीयों ने उनकी नौकरियां चुरा ली हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 2014 और 2015 के अमेरिकी दौरे में कई सभाएं की थीं. मेडिसन स्क्वॉयर गार्डेन से लेकर सिलिकॉन वैली तक मोदी की सभाएं हुई थीं. मोदी ने कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसे ही कार्यक्रम किए थे.

हालांकि ये सभी कार्यक्रम गैर राजनीतिक थे. लेकिन जिस तरह से यूरोप और अमेरिका में अप्रवासियों के खिलाफ माहौल बन रहा है, उस माहौल में ऐसी रैलियां भी कड़वाहट की वजह बन सकती हैं.