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ट्रंप की ताइवान के प्रेसिडेंट से बात पर चिढ़ा चीन

ताइवान के प्रेसीडेंट से डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत पर चीन नाराज

FP Staff

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग वेन के बीच शुक्रवार को हुई टेलीफोन वार्ता से चीन नाराज हो गया है. चीन के अधिकारियों का कहना है, ‘हम अमेरिका और ताइवान के बीच किसी तरह की आधिकारिक बातचीत और सैन्य संपर्क का पुरजोर विरोध करते हैं.’

चीन के फॉरेन मिनिस्टर वांग यी ने कहा- ‘ये ताइवान की छोटी-सी चाल है. उम्मीद है, इससे अमेरिका की चाइना पॉलिसी पर असर नहीं होगा. हम वन-चाइना पॉलिसी पर चलते हैं और इससे यूएस-चाइना के रिश्ते बेहतर होंगे. उम्मीद है, इसमें सियासत रुकावट नहीं बनेगी."


चीन ने इस बातचीत पर अमेरिका से जवाब मांगा है. जबकि व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि ‘अमेरिका अपनी एक चीन नीति को लेकर प्रतिबद्धता दर्शाता है.’

दरअसल ताइवान प्रेसिडेंट ने ट्रम्प को चुनाव जीतने पर बधाई देने के लिए फोन किया था. इसके बाद दोनों नेताओं ने कई मुद्दों पर लंबी बातचीत की. ताइवानी प्रेसिडेंट के आधिकारिक बयान के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा के मुद्दे पर बातचीत हुई .

ट्रंप ने इस बातचीत पर एक ट्वीट भी किया था, जिसके मुताबिक, ‘ताइवान के राष्ट्रपति ने मुझे आज फोन कर राष्ट्रपति का चुनाव जीतने की बधाई दी. आपका धन्यवाद.’

उन्होंने कहा, ‘रोचक है कि किस तरह अमेरिका, ताइवान को अरबों डॉलर के सैन्य उपकरण बेचता है लेकिन मुझे बधाई कॉल स्वीकार नहीं करना चाहिए."

यह टिप्पणी राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन द्वारा 2015 में 1.83 अरब डॉलर के सौदे के मामले में की गई, जिसमें ताइवान के लिए सैन्य उपकरण भी शामिल है. इस बिक्री समझौते से चीन नाराज है.

अमेरिका और ताइवान के बीच 37 साल बाद बातचीत हुई है. दरअसल अमेरिका और ताइवान के बीच 1979 में राजनयिक संबंध समाप्त हो गए थे. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 1979 में बीजिंग को चीन की एकमात्र सरकार घोषित किया था और इसके बाद अमेरिका और ताइवान के राजनयिक संबंध औपचारिक रूप से समाप्त हो गए थे. 1980 में अमेरिका ने ताइवान में अपना दूतावास बंद कर दिया था.

1949 के गृहयुद्ध के बाद ताइवान चीन से अलग हो गया था. लेकिन चीन ताइवान पर लगातार अपना दावा करता रहा और उसे ताकत के दम पर हासिल करने की कोशिश करता है.

वहीं अमरिका ताइवान को एक स्वतंत्र देश मानता है. हालांकि ताइवान और अमेरिका के बीच औपचारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं लेकिन अमेरिका में  ताइवान के डिप्लोमैटिक ऑफिस मौजूद हैं और अमेरिका ताइवान को सैन्य उपकरण मुहैया कराता आया है.

अमेरिकी प्रेसीडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस संभालने को लेकर चीन की बढ़ती चिंताएं कई तरफ इशारा कर रही है. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में चीन को लेकर बेहद आक्रामक रुख अपनाया था.डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद यह कयास लगाया जा रहा था कि चीन और अमेरिका के आपसी संबंधों में खटास बढ़ेगी.

लेकिन शिन्हुआ एजेंसी के मुताबिक http://news.xinhuanet.com/english/2016-12/03/c_135878227.htm

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात की और अमेरिका-चीन संबंधों को आगे बढ़ाने का वादा किया.

चीन-अमेरिका के संबंध की बुनियाद ठोस विश्वास और परस्पर सम्मान पर टिकी है. दोनों वैश्विक ताकतें एक साथ मिलकर दुनिया में शांति और स्थिरता कायम कर सकती हैं.

चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने शुक्रवार को अमेरिका के पूर्व स्टेट सेक्रेटरी हेनरी किसींगर से बातचीत की थी.

ट्रंप की दिलचस्पी इस बात में थी कि क्या चीन एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में सहयोग करेगा या नहीं. साथ ही वाशिंगटन इस क्षेत्र के साथ-साथ ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन के शांतिपूर्ण विकास की गतिविधियों में बाधा नहीं डालेगा.

शिन्हुआ के मुताबिक चीन-अमेरिका के संबंध कई उतार-चढ़ाव के बावजूद अब स्थिर हो गया है. दोनों देश एक दूसरे के पारंपरिक दुश्मन नहीं हैं. चीन अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है और अमेरिका चीन का दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी.