अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्वीट पाकिस्तान में हड़कंप मचाने के लिए काफी है. ट्रंप ने ट्वीट किया कि पिछले पंद्रह साल में 2.14 लाख करोड़ रुपए की मदद के बदले अमेरिका को केवल झूठ और धोखा मिला. पाकिस्तान ने अमेरिका के नेताओं को बेवकूफ ही समझा. यानी अब अमेरिकी प्रशासन नींद से जाग गया है जो पाकिस्तान को पहले जानता तो था लेकिन अब ‘पहचान’ भी गया है. काश! ये भ्रम पहले टूटा होता. काश! अमेरिका ने शुरुआत में ही भारत के आरोपों पर गंभीरता भी दिखाई होती.
अमेरिका के देर से जागने की वजह से ही भारत कई दशकों से आतंक का दंश झेलने को मजबूर है. अमेरिका अपने फायदे के लिए पाकिस्तान को पालता और संरक्षण देता रहा तो पाकिस्तान उसके पैसों से भारत के खिलाफ खुद की ताकत बढ़ाता रहा और आतंकी हमले कराता रहा.
आतंकी हमलों के जख्म नासूर बनते चले गए हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष अगर पाकिस्तान की नीयत को पहले समझ गए होते तो शायद देश की संसद और मुंबई में आतंकी हमले नहीं हुए होते. अगर अमेरिका वाकई भारत पर सीमापार आतंकी हमलों के लिए पाकिस्तान को गंभीरता से जिम्मेदार मानता तो लश्करे तैयबा का सरगना और संस्थापक हाफिज सईद सलाखों के पीछे होता और कश्मीर में सीमा पार से आतंकी घुसपैठ में कमी आई होती. अगर अमेरिकी फंडिंग पर पहले रोक लगा दी गई होती तो शायद आज कश्मीर की समस्या खड़ी ही नहीं होती. लेकिन अमेरिकी फंडिंग के अरबों डॉलर के बूते पाकिस्तान मालामाल बनकर आतंकी बनाने और भारत में आतंकी हमले करवाने में जुटा रहा.
सही मायनों में पाकिस्तान ने अमेरिका से अरबों डॉलर से ज्यादा की कीमत वसूली है. अमेरिका के साथ उसके रिश्तों की दादागीरी के चलते ही अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के कई हितों की अनदेखी हुई है. पोखरण परीक्षण के बाद भारत के प्रति अमेरिका ने प्रतिबंधों के जरिए कड़ा रुख अपनाया था तो भारत पर आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के खिलाफ उसकी चुप्पी बरकरार रहती थी.
भारत ने किया पाकिस्तान को बेनकाब
लेकिन आज अगर पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी रुख में बदलाव के आसार दिख रहे हैं तो उसकी वजह भारत को भी माना जा सकता है. भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का काम किया है. भारत ने ही आतंकवाद के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का काम किया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय सैन्य और विकास के नाम पर मिली अरबों डॉलर की रकम का इस्तेमाल अपनी जमीन पर आतंक का खतरनाक ढांचा बनाने में खर्च किया है. भारत ने ही सबसे पहले कहा था कि पाकिस्तान का मकसद न सिर्फ ग्लोबल टेररिस्ट को अपने देश में पनाह देना है बल्कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण देना भी है.
आज पूरी दुनिया आतंकवाद के साए में जीने को मजबूर हैं. अमेरिका में 9-11 के हमले के बाद आजतक लगातार आतंकी हमलों का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में जब पूरी दुनिया आतंक के खिलाफ एकजुट होने का काम कर रही है तो वहीं पाकिस्तान के खिलाफ ग्लोबल टेररिस्ट बनाने और उन्हें पनाह देने के सबूत मिल रहे हैं.
जिस लश्करे तैयबा को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है उसका सरगना हाफिज़ सईद पाकिस्तान में चुनाव लड़ने जा रहा है. उसने राजनीतिक दल तैयार कर लिया है. अमेरिका भी ये जानता है कि हाफिज सईद ही मुंबई हमले का असली मास्टरमाइंड है. हाफिज़ सईद के ऊपर एक करोड़ डॉलर का ईनाम रखा गया है. इसके बावजूद पाकिस्तानी जेल से हाफिज सईद की रिहाई किसी जलसे से कम नहीं थी. हाफिज़ की रिहाई पर अमेरिकी नाराजगी को भी पाकिस्तान ने दरकिनार कर दिया. आज हाफिज़ सईद पाकिस्तानी सरकार से मिले सियासी संरक्षण की वजह से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने में कामयाब हुआ है.
आतंकी हाफिज सईद सिर्फ बानगी भर है. पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए टेरर कैंप की फंडिंग आईएसआई करती है तो पाक सेना के अधिकारी आतंकियों को ट्रेनिंग देते हैं. अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग के पैसे का ही पाकिस्तान टेरर कैंप बनाने में इस्तेमाल करता है.
आतंकी संगठनों और कट्टरपंथियों के साथ पाकिस्तान की जुगलबंदी का ही नतीजा है कि पाकिस्तान में हक्कानी नेटवर्क के ठिकानों को लेकर पाकिस्तान कोई कार्रवाई नहीं करता है. यहां तक की अमेरिकी चेतावनी के बावजूद हक्कानी नेटवर्क की मौजूदगी के आरोपों पर उल्टा अमेरिका से ही सबूत मांगता है. उसने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कुछ एक्शन नहीं दिखाया. जबकि इसी हक्कानी नेटवर्क की वजह से अमेरिकी फौज को अफगानिस्तान में भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
आतंकी संगठनों के हाथों में परमाणु बम जाने का खतरा
दरअसल पाकिस्तान अपने ही बुने जाल में खुद फंस गया. ‘टेररिस्तान’ बने पाकिस्तान ने ‘ग्लोबल टेररिज्म’ को ही उद्योग के तौर पर विकसित किया है. जिस वजह से अमेरिकी थिंक टैंक का मानना है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के आतंकी संगठनों के हाथ में पड़ने का खतरा बढ़ गया है.
इसके बावजूद पाकिस्तान खुद को आतंकवाद पीड़ित देश के रुप में पेश करता आया है. पाकिस्तान की हमेशा ये ही दलील रही है कि आतंक के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में पाकिस्तान ही उसके साथ मजबूती से खड़ा रहा है. पाकिस्तान ये भी दुहाई देता रहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में उसे 150 अरब डॉलर का नुकसान हुआ जिसका एक टुकड़ा भी नहीं मिला.
लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी रुख में आई सख्ती की इकलौती वजह सिर्फ आतंकवाद नहीं हो सकती है?
आज अगर अमेरिका को पाकिस्तान को दी गई अरबों डॉलर की फंडिंग याद आ रही है तो उसकी एक वजह चीन और पाकिस्तान के करीबी रिश्ते भी हैं. अमेरिका को ये समझ आ गया है कि पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के पाले में जा चुका है. ऐसे में अमेरिका एशिया में सत्ता के संतुलन के लिए भारत में नए दौर के दोस्त की संभावना देख रहा है. वैसे भी आज अमेरिका के सामने इराक और अफगानिस्तान की चुनौतियां पहले जैसी नहीं रही हैं. अमेरिका के लिए अब पाकिस्तान फायदेमंद कम और नुकसानदायक ज्यादा दिखाई दे रहा है. पाकिस्तान के लिए भी फिलहाल चीन की दोस्ती सबसे ऊपर है. चीन की बदौलत पाकिस्तान अपनी ताकत बढ़ा रहा है. चीन की वजह से ही पाकिस्तान के रूस के साथ भी संबंध मजबूत हुए हैं तो दूसरी तरफ भारत से जंग की सूरत में उसे चीन से खुली मदद की उम्मीद है. तभी पाकिस्तान विकास के नाम पर चीन का कर्जदार बनता चला गया है जहां से उसकी वापसी मुमकिन नहीं. ऐसे में अमेरिका के लिए ये जरूरी हो जाता है कि वो पाकिस्तान पर नकेल कसकर भारत के समर्थन में खुलकर सामने आए ताकि चीन को भी साफ संदेश मिल सके.
पाकिस्तान ने अमेरिका पर 9-11 हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर अबतक बहुत ‘ब्लैंक-चैक’ भुनाए हैं. लेकिन शुक्र है कि पाकिस्तान के झूठ और धोखे को आखिरकार अमेरिका समझ ही गया. बड़ा सवाल और लंबा इंतजार ये है कि अमेरिका आखिर कब पाकिस्तान को 'टेररिस्ट स्टेट' घोषित करेगा?