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फिदेल कास्त्रो की याद: एक खुले दिमाग का असाधारण इंसान

अर्तराष्ट्रीय सत्ता के गलियारों में फिदेल ने पक्के हुनर के साथ राज किया.

David Devadas

उनके आगे कोई चाटुकार भागकर नहीं आया. बूटों की गड़गड़ाहट ने भी उनके आने पर सलाम नहीं बजाया. लगभग दर्जन भर इत्मिनान से भरे युवा नेता कमरे में उनके दाखिल होने से पहले पहुंचे. एक लंबी मेज के एक तरफ वे बैठ गए और दूसरी तरफ राष्ट्रपति और उनके दुभाषिये को बैठना था- जो उनके साथ आए थे और उन्हीं के साथ गए.

वह एक सम्मेलन कक्ष था. साफ-सुथरा, बड़ा-सा, लेकिन तितर-बितर. बड़ी खिड़कियों के बाहर खूबसूरत घनी झाड़ियों का दृश्य था. लेकिन राष्ट्रपति का महल खास सजा-धजा नहीं दिखा.


जब फिदेल कास्त्रो आए, वह एक डिक्टेटर से ज्यादा सीईओ लग रहे थे. उनका एक प्रभामंडल था. उनकी साफ आंखें और खुला रवैया काफी पेशेवर, पर गर्माहट से भरा था.

वे सप्ताहांत के दिन थे. लेकिन कास्त्रो की हमसे संवाद लगभग सम्मेलन जैसी थी. वह चाहते तो शराब की चुस्कियों के साथ हमसे अनौपचारिक बातचीत कर सकते थे. बावजूद इसके उन्होंने हमें दावत के पांच घंटे पहले 2 बजे दोपहर को बुलाया था.

सीध कहूं तो इस आमंत्रण से मैं गच्चा खा गया. क्योंकि हमें 2 बजे शाम की दावत के लिए आमंत्रित किया गया था. मुझे लगा कि सुप्रीम कमांडर ने दावत के मतलब को बदलकर थोड़ा देर से किए जाने वाले दोपहर के भोजन में तब्दील कर दिया है.

यह एक गलत आकलन था. मैं भूख से मर रहा था जब खाने की शुरुआत हुई. मैंने जरूर ही उस आधी मौसमी को बड़े गौर से देखा होगा जब मैं पहले राष्ट्रपति के ले लेने का इंतजार कर रहा था. हां, मौसमी. राष्ट्रपति की दावत के लिहाज से खाना बहुत सादा था. लेकिन खाना कई पारियों में आया- शायद पांच- और इसने मेरी भूखी आत्मा को संतुष्ट कर दिया.

मुलाकात के कक्ष में सबसे आगे एक नोटबुक और कलम रख दी गई. उनके युवा नेता उनकी मेज की तरफ थे- जो साफ-सुथरी, सफेद चादरों से ढकी थी. दूसरी तरफ बैठे हुए हम सारे लोग हवाना में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पूरे सप्ताह थे. सम्मलेन का पूरा कार्यक्रम भरा हुआ था, और मैं शनिवार को समंदर किनारे जाना चाहता था.

हममें से कुछ लोग सुबह गए थे. क्योंकि शाम से पहले ही दो बजे की दावत का आमंत्रण आ गया था.

उदार जीवन और काम

फिदेल कास्त्रो

यह 2001 का बसंत था, और लगाम फिदेल के ही हाथ में थी. इस पर बात चल रही थी कि उनके भाई राउल को शायद सत्ता की बागडोर मिल सकती है, लेकिन उस वक्त यह एक दूर की कौड़ी लग रही थी. क्योंकि दुकानों और गलियों में लोगों से बात करने पर ऐसा लगा कि वे फिदेल को सर्वोच्च नेता मानते हैं, राउल उनके लिए फिदेल के भाई के अलावा कुछ और नहीं थे. राउल की छवि अगर कुछ थी तो उनके बीच वाले नाम की तरह थी- विनम्र.

निश्चित तौर पर उनके शासन को विरोध पसंद नहीं था, लेकिन किसी को कभी ऐसा नहीं लगा कि लोग फिदेल को भला-बुरा कहते थे. लोग हर रविवार को रैलियों में उनके लंबे भाषण सुनने से उब चुके थे, लेकिन इसे लेकर उनके भीतर कोई खास असंतोष नहीं था. ज्यादातर नागरिकों के लिए यह राजनीतिक गतिविधि से ज्यादा एक पिकनिक की तरह था.

कोई खास दौलत दिखाई नहीं देती थी, लेकिन भूखमरी और बेघर लोग भी नहीं थे. वह गरीबी भी वहां नदारद थी जो 15 साल पहले निकारागुआ में देखी गई थी, जब डेनियल ओरटेगा और क्रांतिकारियों का उनका रोमांटिक बैंड वहां शासन करता था. रीगन के सफल आर्थिक प्रतिबंध के दौर में वे आजादी का जिंदादिल गीत गाते थे.

असल में. ओरटेगा को तीन दशकों तक जिन समझौतों के लिए मजबूर किया गया, वे ही आधी सदी तक कास्त्रो के नेतृत्व में क्यूबा की राजनीतिक, कुटनीतिक और आर्थिक प्रफुल्लता में बड़ी बाधा थे.

नई सदी के पहले बसंत में कारें पुरानी, बड़ी और अक्सर चिड़चिड़ी थीं, लेकिन हवाना का प्रशासन दुरूस्त था. थोड़ा जर्जर था, लेकिन साफ. थोड़ा थका हुआ, लेकिन ठीक-ठाक खुशहाल.

उस सिगार फैक्टरी में काम करने के हालात स्वाभाविक रूप से अच्छे थे. लेकिन पर्यटकों को आकर्षित करने वाला देश फुर्तीले कैबरे डांस और फैले हुए प्रेसिडेंट होटल के भरोसे ही जिंदा था. समंदर के किनारे एक छोटे कमरे में चे की सबसे लोकप्रिय टी-शर्ट 20 डॉलर में मिल रही थी.

77 की उम्र और जिंदादिल फिदेल

राष्ट्रपति ने पांच घंटों की हमारी बातचीत में कई सवाल पूछे, और दावत के वक्त भी. उन्हें यह जानने में दिलचस्पी थी कि दुनिया में क्या चल रहा है. मसलन, उन्होंने पूछा कि एड्स भारत में उस वक्त कितनी बड़ी चुनौती थी, और उससे निपटने के लिए देश क्या कर रहा था.

वह हमारे सवालों को लेकर भी खुले हुए थे, और अपने युवा नेताओं को क्यूबा से संबंधित सवालों का जवाब देने के लिए उत्साहित करते रहे.

42 साल की सत्ता के बाद भी वे थके या चिड़चिड़े नहीं दिखे. बल्कि, वे नए तरीकों को सीखने के लिए लालायित थे. वह तनकर चलते थे जिससे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ता था. उन्हें देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था कि वे 75 के हैं. वे अनौपचारिक भी थे. कई मुलाकातियों ने हल्के तौर पर यह कहा कि उन्हें सिगार के एक से ज्यादा डब्बे ले जाने की उम्मीद थी. क्यूबा का कस्टम विभाग उतने की इजाजत ही देता था. इस पाबंदी का बहुत कड़ाई से पालन किया जाता था.

अगली सुबह हम एयरपोर्ट पर थे, लेकिन यह साफ था कि निर्देश दे दिए गए हैं; जो लोग कुछ घंटों पहले दावत में मौजूद थे उनके लिए एक से ज्यादा सिगार के डब्बे ले जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी.

एक दौर बीत गया

इस शनिवार फिदेल की मौत के साथ एक दौर बीत गया. उनके कॉमरेड चे दुनिया को बदल देने वाले बराबरी के सपने के वाहक थे. लेकिन अर्तराष्ट्रीय सत्ता के गलियारों में फिदेल ने पक्के हुनर के साथ राज किया. शारीरिक रूप से वे एक लंबे और रोबदार शख्सियत थे. फिर भी, दुनिया के रंगमंच पर वह एक छोटी हैसियत के आदमी थे जो दबंगों के आगे डटे रहे- करिश्माई, शांत और ढृढ़.

जिस संतुलन के साथ उन्होंने ऐसा किया, उस दोपहर और शाम हमारे लिए यह काफी स्पष्ट हुआ. उनके पास उन ताकतवर राजाओं और रानियों से ज्यादा गरिमा थी जिन्हें हमने देखा है.

फिदेल सिर्फ लचीले नहीं थे. वे मेधावी थे.

हर तरह के शासकों के मटमैले और कपटी पहलू होते हैं. और फिर भी, उस रात जब हम उनके महल से निकले, हमें लगा कि हम एक अच्छे आदमी से मिलकर आए हैं.