इस समय भारत बेहद फायदेमंद स्थिति में है. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में दुनिया का वास्ता एक अप्रत्याशित अमेरिका से पड़ा है. ऐसे में भारत के लिए खुद-ब-खुद कई विकल्प खुल गए हैं. अगर भारत अपने पत्ते सही ढंग से खेलता है तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा कर सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप के साथ 26 जून को होने वाली बैठक के लिए अमेरिका जा रहे हैं. वे अपनी सफल यूरोपीय यात्रा के बाद आत्मविश्वास से भरे हुए हैं. मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि यूरोप के दो सबसे महत्वपूर्ण देश जर्मनी और फ्रांस जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत के समर्थन की इच्छा रखते हैं.
भारत इस बात से आश्वस्त है कि उसके लिए सिर्फ अमेरिका ही एकमात्र सहयोगी नहीं है. अगर ट्रंप मुश्किल साबित होते हैं तो नई दिल्ली धीरे-धीरे बहुध्रुवीय हो रही दुनिया में दूसरे देशों के साथ खड़ा हो सकता है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध बेहद महत्वपूर्ण हैं.
साल 2008 में यूपीए सरकार के दौरान अमेरिका के साथ हुए असैनिक परमाणु समझौते के बाद से भारत-अमेरिका संबंधों में गति आई. भारत और अमेरिका के हर एक नेता ने दोनों देशों के संबंध को आगे बढ़ाने में महत्वूर्ण भूमिका निभाई है. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी ने भी यही काम किया. मोदी के लिए अब ट्रंप के साथ चलने का वक्त आया है.
हालांकि, सार्वजनिक जीवन का कोई अनुभव न रखने वाले नए अमेरिकी राष्ट्रपति राजनीति और कूटनीति दोनों से अनजान हैं. वह दुनिया के नेताओं के साथ वार्ता के बाद गंदे ट्वीट भी कर सकते हैं. ट्रंप के यूरोपीय दौरे के बाद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है.
ट्रंप के साथ व्यक्तिगत समीकरण बेहद अहम होंगे
ऐसे में मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली पहली बैठक बेहद खास हो जाती है. माना जा रहा है कि लीक से हटकर चलने वाले दोनों राजनेताओं के मन के तार अच्छी तरह जुड़ेंगे. मोदी बैठक में पूरी तैयारी से जाएंगे. विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के साथ निजी समीकरण बेहद अहम होंगे. चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप चीन पर खूब बरसे थे. बाद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा के बाद दोनों की दुश्मनी काफी हद तक कम हो गई.
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत नरेश चंद्रा कहते हैं, 'भारत को पहली बैठक से कम अपेक्षाएं रखनी चाहिए.' नरेश चंद्रा अमेरिका की अच्छी समझ रखते हैं. उन्होंने कहा, 'ट्रंप तेजी से सीखने की प्रक्रिया में हैं. मोदी के लिए बेहद महत्वपूर्ण यह होगा कि वे ट्रंप को तथ्यों को सुनने-समझने के लिए राजी करें. अपने अनभिज्ञ समर्थकों की वजह से ट्रंप के जेहन में पूर्वकल्पित धारणाएं भरी पड़ी हैं. यह प्रासंगिक नहीं है कि ट्रंप इन धारणाओं पर चलते हैं या नहीं. लेकिन वे बेहद चतुराई से अपने समर्थकों की भावनाओं का इजहार करते हैं.'
चंद्रा कहते हैं कि 'मोदी को ट्रंप के मन से भारतीय आईटी सेक्टर की वजह से नौकरियां छीने जाने के भय को दूर करना चाहिए. उन्हें यह समझाना चाहिए कि भारतीय कंपनियां भी अमेरिका में रोजगार पैदा कर रही हैं. पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत को अरबों डॉलर मिलते हैं, ट्रंप की इस धारणा को हमेशा के लिए खत्म करना होगा.'
नरेश चंद्रा ने कहा, 'मोदी के पास अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ बातचीत शुरू करने के लिए जिहादी आतंक एक अच्छा बिंदु है. ट्रंप इससे मुतमईन भी हैं. मोदी एशिया में चीन की बढ़ती सामरिक पहुंच को भी बेहद सहज तरीके उठा सकते हैं.'
मोदी को सहजता से ट्रंप के सामने बातें रखनी होंगी
पूर्व राजदूत ने कहा कि 'भारत की प्रमुख चिंता चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ती निकटता है. चीन-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) और ग्वादर बंदरगाह के भविष्य में चीन के नौसैनिक आधार बनने के अंदेशे से भारत अपनी रणनीतिक परिधि को लेकर चिंतित है. मोदी को ये बातें बेहद सहजता से ट्रंप के सामने रखनी होंगी.'
अमेरिकी राष्ट्रपति बेहद तेज गति से पक्ष लेते हैं. शिया-सुन्नी टकराव में ट्रंप ने कतर के खिलाफ सऊदी अरब का समर्थन किया. पाकिस्तान भी अब मजबूती के साथ सऊदी कैंप की ओर बढ़ रहा है. पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ यमन में सऊदी अरब के युद्ध में इस्लामिक सैनिकों की कमान संभाल रहे हैं.
पाकिस्तान पूरी तरह सऊदी अरब समर्थित होगा और शायद ट्रंप भी पाकिस्तान के खिलाफ सावधानी से कदम उठाएं. मोदी ट्रंप के साथ अपनी बैठक में निश्चित तौर पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर बात करेंगे. उड़ी हमले के बाद से मोदी ने दुनिया के नेताओं के साथ अपनी सभी बैठकों में इस बारे में चर्चा की है.
भारत के लिए दोनों नेताओं के बीच होने वाली पहली बैठक से बहुत उम्मीद न पालना अच्छा है. भारतीय अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों भारत-अमेरिका के बीच पहले से जारी सहयोग को और भी बेहतर बनाने और आगे बढ़ाने के इच्छुक हैं. बहुत से अधिकारी प्रधानमंत्री की वाशिंगटन यात्रा को मोदी और ट्रंप के लिए एक दूसरे को जानने-समझने का मौका करार देते हैं.
भारत-अमेरिका ने एक साथ इस दौरे की घोषणा की
वाशिंगटन और नई दिल्ली ने एक साथ इस यात्रा की घोषणा की थी. उस वक्त सीन स्पाइसर की प्रेस कांफ्रेंस से संकेत मिले थे कि ट्रंप भारत के साथ सहयोग जारी रखने के उत्सुक हैं. हो सकता है यह स्पाइसर का रूसी मामले की जांच और अटॉर्नी-जनरल के गवाही के फैसले से रिपोर्टरों का ध्यान हटाने का तरीका रहा हो.
लेकिन स्पाइसर ने कहा कि राष्ट्रपति भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूत करने और साझा प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने की इच्छा रखते हैं. स्पाइसर के मुताबिक दोनों देशों की प्राथमिकताएं और सहयोग के क्षेत्र हैं : आतंकवाद से लड़ना, आर्थिक विकास और सुधारों को बढ़ावा देना साथ ही भारत-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग बढ़ाना.'
खैर, बहुत कुछ इस दौरे में मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच निजी संबंधों पर निर्भर करेगा.