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दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में उलटफेर का जिम्मेदार, सहारनपुर का गुप्ता परिवार

सहारनपुर के गुप्ता परिवार पर राष्ट्रपति जैकब जुमा की मदद से दक्षिण अफ्रीका की समूची सरकार को अपने इशारों पर नचाने का आरोप है

Anant Mittal

महात्मा गांधी के अहिंसक सत्याग्रह की लगभग एक सदी बाद दक्षिण अफ्रीका में एक अन्य भारतीय परिवार भ्रष्टाचार का रिकार्ड तोड़ने के लिए सुर्खियां बटोर रहा है. करीब 25 साल पहले उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से वहां गया गुप्ता परिवार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप झेल रहा है. पदच्युत राष्ट्रपति जैकब जुमा की समूची सरकार को ही अपनी जेब के हवाले कर लेने के आरोप में गुप्ता बंधु जोहांसबर्ग पुलिस के निशाने पर हैं.

दक्षिण अफ्रीका में अहिंसक संघर्ष का वैश्विक प्रतीक बनकर भारत लौटे मोहनदास करमचंद गांधी ने यहां आकर न सिर्फ देश को अंग्रेजों से आजाद कराया बल्कि महात्मा, बापू और राष्ट्रपिता भी कहलाए. दूसरी तरफ गुप्ता से जुप्ता बने तीन गुप्ता बंधुओं पर दक्षिण अफ्रीका के पदच्युत राष्ट्रपति जैकब जुमा के सहयोग से सत्ता की सरेआम दलाली करके अकूत दौलत बटोरने का आरोप है.


जुमा सरकार में गहरे तक था गुप्ता बदर्स का दखल

गुप्ता बंधु उत्तर प्रदेश में पिछले साल सामुदायिक हिंसा के लिए कुख्यात हुए सहारनपुर के ही रानी बाजार के मूल निवासी हैं. इनके नाम हैं- अतुल,अजय और राजेश. इन पर राष्ट्रपति जैकब जुमा की मदद से दक्षिण अफ्रीका की समूची सरकार को अपने इशारों पर नचाने का आरोप है. इसके बदले ऐसा माना जाता है कि गुप्ता बंधुओं ने जुमा सहित सरकार के अन्य नेताओं और पदाधिकारियों को अपनी काली कमाई में से लगातार हिस्सा बांटा है, जिसमें जुमा परिवार को मिला मकान भी शामिल है. जुमा के राजनीतिक पतन के लिए गुप्ता बंधुओं से उनकी सांठगांठ को ही जिम्मेदार माना जा रहा है.

गौरतलब है कि जुमा को सत्तारूढ़ अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के आदेश पर ही 14 फरवरी की रात में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था.पार्टी ने साफ कर दिया था कि यदि उन्होंने इसमें आनाकानी की तो गुरूवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन से उन्हें पदच्युत कर दिया जाएगा. उनके हटते ही पार्टी सांसदों ने 15 फरवरी को उपराष्ट्रपति सायरिल रमाफोसा को अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया. रमाफोसा तजुर्बेकार मजदूर नेता, श्वेतों से आजादी लेने की बातचीत में अगुआ और फिर संविधान सभा के भी महत्वपूर्ण सदस्य रहे हैं. साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका के आजाद होने के बाद से वे अमीर उद्योगपति भी बन चुके हैं. वे पिछले साल दिसंबर में ही अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के नेता चुने गए थे. दक्षिण अफ्रीका के गांधी कहलाए नेल्सन मंडेला ने 1990 में जेल से आजाद होकर जो पहला भाषण किया था उसमें उनका माइक रमाफोसा ही पकड़ कर खड़े थे.

ऊंचे पदों की नियुक्तियां तक तय करते थे

अंतत: 1991 में रोक हटाए जाने पर अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के रमाफोसा महासचिव चुने गए थे. उसके ठीक दो साल बाद ही अतुल गुप्ता दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे. उन्हीं के सामने मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे. आज एक-चौथाई दशक बीतते-बीतते गुप्ता परिवार वहां के सबसे बड़े कारोबारी घरानों में शुमार है. साथ ही गुप्ता खानदान के अनेक सदस्य अब दक्षिण अफ्रीका के नागरिक बन चुके हैं. स्थानीय अखबारों के अनुसार गुप्ता बंधुओं ने जुमा और उनके समर्थकों से अपने गहरे संबंधों की बदौलत न सिर्फ अपना कारोबार जमाया बल्कि सरकार में ऊंचे पदों से लेकर सरकारी कंपनियों तक में ऊंचे पदों पर नियुक्तियां अपनी मुट्ठी में कर लीं. वे खुलेआम रिश्वत लेते और सरकारी अमले में उसे बांटने से लेकर मंत्रियों ही नहीं राष्ट्रपति को भी महंगे तोहफे देते थे.

अरबपति बनने के बावजूद गुप्ता बंधुओं ने सहारनपुर से अपना नाता तोड़ा नहीं था. ताज्जुब यह है कि यह लोग 13 फरवरी को शिवरात्रि के दिन भी वहीं पर पूजा में शामिल थे. रानी बाजार में इनका पुश्तैनी मकान आज भी जर्जर हालत में खड़ा है. इन्होंने हालांकि अपने रहने और धंधे का ठिकाना उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बनाया हुआ है.

गुप्ताओं का कारोबार मुख्यत: कंप्यूटरों, खनिजों के दोहन, मीडिया, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरी के क्षेत्र में है. यह लोग 2010 से ही वहां से 'द न्यू एज' अखबार निकालते हैं जो जुमा का घोर समर्थक है. इसी तरह इन्होंने 2013 से 'एएनएन7' खबरिया टीवी चैनल भी चला रखा है. इन्होंने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में और खासकर जुमा धड़े में उनके राष्ट्रपति बनने से पहले ही गहरी पैठ बना ली थी. आरोप है कि गुप्ता बंधुओं के धतकरमों पर जब उंगलियां उठने लगीं तो इन्होंने पैसे देकर पीआर फर्म से समाज को बांटने वाले अभियान चलवाने शुरू कर दिए.

ऐसे शुरू किया था बिजनेस

गुप्ता बंधुओं के पिता शिवकुमार गुप्ता सहारनपुर में ही राशन सरकारी दुकान चलाते और सेलखड़ी का चूरा बेचने का धंधा भी करते थे. उस दौरान इन तीनों भाइयों की पढ़ाई जेवी जैन डिग्री कॉलेज में हुई. बहरहाल उन्होंने धीरे-धीरे जंजीबार और मेडागास्कर से मसालों का आयात भी शुरू कर दिया. उसी दौरान उन्हें अफ्रीका में धंधे की गुंजाइश का अंदाजा लगा और अपने मंझले बेटे अतुल को उन्होंने 1993 में दक्षिण अफ्रीका भेज दिया. अपने साथ लाई पूंजी से अतुल ने वहां 'करेक्ट मार्केटिंग' फर्म बनाकर धंधा शुरू कर लिया. साल 1997 आते-आते जब धंधा जम गया तो इन्होंने फर्म का नाम सहारा कंप्यूटर्स कर दिया. धंधा फैला तो बाकी भाई और अन्य रिश्तेदार भी एक-एक करके दक्षिण अफ्रीका में बसते चले गए.

सहारा कंप्यूटर्स का कारोबार 1994 में सालाना दस लाख रैंड से बढ़कर 1997 में 10 करोड़ रैंड तक जा पहुंचा. उसके बीस साल बाद 2016 में तो अतुल गुप्ता की गिनती दक्षिण अफ्रीका के सातवें सबसे अधिक दौलतमंद शख्स के रूप में होने लगी. तब इनकी दौलत 10 अरब रैंड थी. अश्वेतों में सबसे अमीर अतुल गुप्ता ही हैं. उनसे ज्यादा अमीर गोरे ही हैं. इनकी सहारा कंपनी के पास अब यूरेनियम जैसी बहुमूल्य धातु की खान भी हैं. इसके अलावा हीरे, सोने और कोयले का खनन तो यह कर ही रहे हैं. यह लोग बख्तरबंद गाड़ियों के कलपुर्जे बनाने से लेकर इंजीनियरी ढांचे खड़े करने के धंधे में भी हैं.

गुप्ता खानदान अब जोहांसबर्ग के सेक्सनवोल्ड इलाके में लंबे-चौड़े महलनुमा चार घरों में रहते हैं. इन्हीं ठिकानों पर स्थानीय पुलिस ने 14 फरवरी को छापामारी की है. इनकी केपटाउन, दुबई और भारत में भी बड़ी तादाद में जमीन-जायदाद है. ऐसा माना जाता है कि सरकारी दलाली की रकम इन्होंने स्विट्जरलैंड में जमा कर रखी है.

रिश्वत के बदले मांगा था वित्तमंत्री का पद

जुमा से गुप्ताओं का संपर्क 2003 में हुआ. तब वे उपराष्ट्रपति थे. जुमा तब राष्ट्रपति थाबो म्बेकी से सत्ता हथियाने की जुगत में लगे हुए थे. अतुल गुप्ता ने उसमें जुमा की भरपूर मदद की. इसके बाद तो जुमा का बेटा दुदुजाने भी कारोबार में गुप्ता का पार्टनर बन गया. फिर क्या था 'सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का' की कहावत चरितार्थ होने लगी. साल 2016 में अतुल गुप्ता के सबसे अमीर अश्वेत आंके जाते ही उन पर पीछे से जुमा की सरकार का रथ हांकने का आरोप लगने लगा. पूर्व वित्त उपमंत्री म्सेबिसी जोनास ने तो यहां तक बताया कि अतुल गुप्ता ने उन्हें अपने कारोबारी हितों की बहबूदी की शर्त पर वित्तमंत्री बनवा देने की पेशकश की थी. साथ ही सालाना 60 करोड़ रैंड बतौर रिश्वत देने का वायदा भी किया था.

आरोप है कि गुप्ता खानदान ही सरकारी ठेकों के फैसले से लेकर मलाईदार पदों पर नियुक्तियां करने लगा. हद तो तब हुई जब अप्रैल 2013 में गुप्ता खानदान के मेहमानों सहित जेट एयरवेज का एयरबस विमान प्रिटोरिया के वायुसेना अड्डे पर जा उतरा. जाहिर है उस अनाधिकार चेष्टा की आलोचना तो हुई मगर राष्ट्रपति जुमा के खुद उस समारोह में शामिल हो जाने से इनका बाल भी बांका नहीं हो पाया.

अब देखना यही है कि सैंया यानी जुमा का ठसका खत्म होने के बाद गुप्ता खानदान का क्या हश्र होगा? हालांकि अनुमान यह भी है कि पिछले दो वर्ष से गुप्ता बंधु अपना धंधा दुबई में फैला रहे हैं. इसके अलावा भारत में भी इन्होंने बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है. सहारनपुर में गुप्ता खानदान के समर्थकों की कमी नहीं है और वे तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताते नहीं अघा रहे.

तथ्य यह भी है कि स्वतंत्रता सेनानी से अब राष्ट्रपति बने रमाफोसा के अरबपति बनने की कहानी भी गुप्ता बंधुओं से मूल रूप में अलग नहीं है. उन्होंने भी अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में अपने रसूख के बूते ही अपना कारोबार खड़ा किया है. पार्टी के भीतर जुमा गुट का दबदबा बरकरार है ऐसे में रमाफोसा द्वारा जुमा और उनके कृपापात्र गुप्ता बंधुओं की मुश्कें कितनी कसी जा सकेंगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

अलबत्ता पार्टी के दबाव में रमाफोसा ने यदि जांच आयोग की सिफारिश के अनुसार गुप्ता बंधुओं की करतूतों की न्यायिक जांच शरू करवा दी तो मामला उलझ सकता है. इनकी सहारा कंपनी पर सरकारी बिजली कंपनी को बाजार दर से अधिक दर पर कोयला बेचने और गरीब अश्वेत किसानों की कल्याण योजना के पैसे में हेराफेरी का भी आरोप है.