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सावधान इंडिया! कश्मीर पर चीन की 'साजिश' कर सकती है बड़ा नुकसान

भारत को बदनाम करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर की तरफ खींचने की कोशिश हो रही है

David Devadas

कश्मीर को लेकर एक बेहद खतरनाक साजिश रची जा रही है. ये साजिश है भारत को बुरी तरह बदनाम करके दुनिया का ध्यान कश्मीर की तरफ खींचने की. आरोप लगाया जा रहा है कि कश्मीर में सुरक्षा बल रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके जरिए वो अपनी ज्यादतियों के सबूत छुपा रहे हैं. मारे गए लोगों की लाशों को केमिकल से इस कदर बिगाड़ा जा रहा है कि उनकी शिनाख्त न हो सके.

इसके पीछे चीन का बड़ा हाथ मालूम होता है. कश्मीर में चीन की दखलंदाजी का सबसे बड़ा सबूत उस वक्त मिला जब आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने चीन को इलाके की सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य ताकत बताया. लश्कर-ए-तैयबा ने ये भी कहा कि चीन को इस इलाके के हर विवाद में दखल देने का अधिकार है. उसने अपील की कि चीन अपनी ताकत का इस्तेमाल करके कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव लागू करने के लिए भारत पर दबाव बनाए.


इसके ठीक बाद ही लश्करे-ए-तैयबा ने भारतीय सुरक्षा बलों पर रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का आरोप लगाया. इस आतंकवादी संगठन ने कहा कि कश्मीर में सुरक्षाबल घरों की पड़ताल के नाम पर लोगों को परेशान कर रहे हैं. उन्हें मारकर रासायनिक हथियारों से लाशों को बिगाड़ रहे हैं.

लश्कर-ए-तैयबा के प्रवक्ता अब्दुल्लाह गजनवी ने इसके चीफ महमूद शाह की तरफ से ये बयान 14 जुलाई को जारी किया था. ये बयान उस सोची-समझी साजिश का संकेत है, जो कश्मीर को लेकर चीन और पाकिस्तान मिलकर रच रहे हैं.

लश्कर के बयान से साफ है कि चीन ने हाफिज सईद को आतंकवादी घोषित करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को सिर्फ पाकिस्तान खुश करने के लिए वीटो नहीं किया था. इसके पीछे बड़ी मंशा थी.

चीन पर नजर जरूरी

जानकारों को इस बात की पड़ताल करनी चाहिए कि 26/11 के मुंबई हमले में कहीं चीन का रोल तो नहीं था. कहीं चीन ने तो इस हमले के लिए ट्रेनिंग और जरूरी सामान नहीं मुहैया कराया था. इससे ये भी सवाल उठता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को इस बात की कितनी खबर थी कि इस हमले में अमेरिका का नागरिक डेविड हेडली का अहम रोल था.

अब अगर भारत पर रासायनिक हथियार इस्तेमाल करने के आरोप जोर पकड़ते हैं तो चीन इन आरोपों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं. अमेरिका ने इराक में ऐसा ही तो किया था. इराक पर केमिकल हथियार इस्तेमाल करने के आरोप लगाकर 2003 में उस पर हमला किया था. इसी तरह अमेरिका ने सीरिया की सेनाओं पर केमिकल हथियार इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर सीरिया के सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे.

चीन ने दुनिया के तमाम देशों में भारी निवेश कर रखा है. अपनी आर्थिक ताकत की मदद से चीन इन देशों से अपने मन मुताबिक बयान दिलवा सकता है. कई अफ्रीकी देश ऐसे हैं जो चीन की 'दया' पर निर्भर हैं. ऐसे में वो चीन के कहने पर भारत के खिलाफ बयान दे सकते हैं. अगर कई देश मिलकर भारत के खिलाफ चीन के झूठे प्रचार के शोर में आवाज मिलाएंगे, तो जाहिर है दुनिया इस पर गौर करेगी. भारत में अफ्रीकी लोगों पर हुए हमलों का इस्तेमाल भी चीन इन देशों को अपने पाले में लाने के लिए कर सकता है.

कहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न हो जाए नुकसान

सरकार और थिंक टैंक फिलहाल कश्मीर में चीन की दखलंदाजी को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं जितना कि लिया जाना चाहिए. कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ माहौल बन रहा है.

इसकी मिसाल उस वक्त देखने को मिली जब पिछले हफ्ते ईरान के अयातुल्ला खोमैनी ने कश्मीर में भारत के खिलाफ संघर्ष की अपील की. इससे पहले जब तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन भारत आए थे तो उन्होंने कश्मीर मसले में भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत कराने का प्रस्ताव दिया था.

हमें पहले से ही पता है कि रूस अब चीन और पाकिस्तान के साथ है. अमेरिका को लेकर कोई भी बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती, खास तौर से डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति होते हुए. दुनिया के दूसरे बड़े ताकतवर देशों की राय भी कश्मीर को लेकर अच्छी नहीं है.

कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का भारत ने कड़ाई से जवाब नहीं दिया है. अपने ही देश में तमाम संगठन इसे जोर-शोर से उठाते रहे हैं. बार-बार सामूहिक कब्रिस्तान, सामूहिक बलात्कार, असंख्य लोगों के लापता होने के दावे किए जाते रहे हैं. ये सिलसिला 2008 से ही चला आ रहा है. लेकिन सरकार की तरफ से इस दुष्प्रचार को रोकने की ठोस कोशिश नहीं की जा रही है. बल्कि कई बड़े अधिकारियों ने तो इन आरोपों को हवा ही दी है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर में कई लोग लापता हुए हैं. कई लोग मारे गए हैं. और कई महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं हुई हैं. नब्बे के दशक में तो खास तौर से ऐसी कई घटनाएं सामने आई थीं. हां, उस वक्त इन पर किसी ने ध्यान नहीं दियाा था. इस पर जोर उस वक्त से दिया जाने लगा जब वाजपेयी और मुशर्रफ, कश्मीर में शांति बहाली की कोशिशें कर रहे थे.

बहुत से कश्मीरियों को इस बात का अंदाजा था कि आतंकवादी और सुरक्षा बल क्या कर रहे हैं. खास तौर से ग्रामीण इलाकों में क्या हो रहा था, इसकी लोगों को खबर थी. इसके संकेत चुनावों में कम लोगों की भागीदारी से भी मिलते थे.

लेकिन, हाल के दिनों में बढ़ती हिंसा के बीच चीन और पाकिस्तान की साजिश है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जाए.