भारत की रक्षा और विदेश नीति में दिलचस्पी रखने वालों के बीच इन दिनों दो बातों की चर्चा सबसे अधिक हो रही हैं, पहला है रूस के साथ खरीदे जाने वाले S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम और दूसरा है इस सिस्टम को खरीदने पर भारत को सजा देने वाला अमेरिका का कानून CAATSA. यही वो कानून है जो रूस से हथियार खरीदने वाले हर देश को अमेरिकी बंदिशों के दायरे में ले आता है.
ऐसा नहीं है कि इस CAATSA से बचना भारत के लिए नामुमकिन हो लेकिन इससे पार पाना भी आसान काम नहीं है. इस नियम के तहत मित्र देशों को छूट देने का अधिकार अमेरिकी राष्ट्रपति के पास है लेकिन भारत को इस छूट का लाभ पाने के लिए कड़े पापड़ बेलने होंगे.
भारतीय जनमानस में अचानक से CAATSA एक बेहद जरूरी और जाना-पहचाना नाम हो गया. लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि भारतीय डिप्लोमेसी को अग्निपरीक्षा जैसे हालात में डालने वाले इस नियम को बनाने में सबसे बड़ी भूमिका एक ऐसे शख्स ने निभाई है जो अमेरिकी कांग्रेस में भारत का ‘दोस्त’ माना जाता है. इस शख्स का नाम एडवर्ड रॉयस. पिछले 24 साल से अमेरिकी कांग्रेस में कैलिफोर्निया की नुमाइंदगी कर रहे एडवर्ड रॉयस की पहचान अमेरिकी कांग्रेस में भारत के प्रबल समर्थन की रही है. 66 साल के रॉयस अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय-अमेरिकन कॉकस को अस्तित्व में लाने के सूत्रधार रहे हैं.
रिपब्लिकन सांसद रॉयस को अमेरिका का बेहद प्रभावशाली राजनेता माना जाता है और यह कांग्रेस के विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष भी हैं. भारतीय प्रतिरक्षा के मामलों पर विपरीत असर डालने वाले इस कानून CAATSA को 24 जुलाई, 2017 को अमेरिकी कांग्रेस में इन्हीं एडवर्ड रॉयस ने पेश किया था. 25 जुलाई को कांग्रेस ने इसे पास किया, 27 जुलाई को सीनेट ने इस पर अपनी मुहर लगाई और 2 अगस्त, 2018 को प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप के दस्तखत करने के साथ यह कानून अमल में आ गया.
आखिर क्यों यह दोस्त बना दुश्मन!
यूं तो कहने को यह कानून अमेरिका को विराधी देशों रूस, ईरान और नॉर्थ कोरिया को टारगेट करने के इरादे से लाया गया है लेकिन सबको अंदाजा है इसका सबसे बड़ा शिकार भारत ही होगा.
जब भारत को ही इस कानून का सबसे बड़ा शिकार बनना था तो सवाल है कि भारत के ही दोस्त कहे जाने वाले एडवर्ड रॉयस ने क्यों इस कानून को अमल में लाने के लिए इतना जोर लगाया? इसके जवाब के तार भारत के ही राज्य तमिलनाडु में जुड़ते हैं. जिन्हें तलाशने से पहले हम यह जान लेते है कि CAATSA भारत के लिए कितना खतरनाक है.
CAATSA का मतलब है काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सिरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट. यानी इंटरनेशनल स्तर पर अमेरिका के दुश्मन देशों की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ने के लिए पाबंदी का कानून. यह कानून उन देशों पर अमेरिकी पाबंदी का रास्ता प्रशस्त करता है जो अमेरिका के दुश्मन यानी ईरान, नॉर्थ कोरिया और रूस के साथ रक्षा सौदे करते हैं. अब ईरान और नॉर्थ कोरिया तो हथियार बेचते नहीं यानी इस कानून का टारगेट बस रूस ही है और उसके साथ हथियार खरीदने के मामले में भारत टॉप देशों में से है.
भारत के लिए कितने जरूरी हैं रूसी हथियार
पूरी दुनिया में भारत इकलौता ऐसा देश है जो दोनों ओर से परमाणु शक्ति संपन्न देशों के साथ घिरा है जिनके साथ आधुनिक युग में उसके युद्ध भी हो चुके हैं. साथ ही भारत आतंकवाद के भी निशाने पर लगातार बना रहता है. जाहिर है भारत के लिए बाह्या सुरक्षा एक बेहद संवेदनशील मसला है और उसके लिए उसे तमाम तरह से आधुनिक हथियारों का जखीरा भी तैयार रखना होता है.
भारत के लिए लंबे वक्त से रूस ही आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है. यानी रूस से हथियार खरीदने पर अगर पाबंदी लगी तो उसका सबसे बड़ा शिकार भारत ही है. तो फिर आखिर क्यों भारत के दोस्त एडवर्ड रॉयस ने इस कानून की आधारशिला रखी जो भारत को सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है. यह जानने के लिए साल 2014 से 2017 तक के घटनाक्रम पर नजर डालते हैं.
भारत में साल 2014 के आम चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की सरकार ने सत्ता संभाली. उसके बाद भी एडवर्ड रॉयस का भारत प्रेम बरकरार था.
कई मौकों पर उन्होंने भारत की आर्थिक नीति की तारीफ की. साल 2015 में भारत ने रूस के साथ S-400 को खरीदने का सैद्धांतिक समझौता कर लिया था. इस दौरान मोदी सरकार ने विदेशों से फंडिंग पाने वाले एनजीओ पर लगाम कसना शुरू कर दिया.
मोदी सरकार के कड़े रुख ने बदला एडवर्ड रॉयस का मन
करीब 11 हजार एनजीओ पर कड़ाई की गई और इन्हीं में से एक था Compassion International. तमिलनाडु में 48 साल से काम कर रहे अमेरिका के इस क्रिश्चियन चैरिटी एनजीओ का काम गरीब बच्चों को खाना और बाकी सुविधाएं मुहैया कराने का था. लेकिन भारत सरकार का आरोप था कि इस एनजीओ की आड़ में मिलने वाले विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल धर्म परिवर्तन के लिए किया जा रहा है.
भारत में इस एनजीओ को बचाने के लिए एडवर्ड रॉयस ने कई कोशिशें कीं. भारत के गृह मंत्रालय में बैठकों के दौर चले लेकिन भारत सरकार अपने फैसले पर अडिग रही. इस एनजीओ के पक्ष में अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में एक आर्टिकल भी छपा. इसे बचाने के लिए एडवर्ड रॉयस ने आखिरी कोशिश मार्च 2017 में की. उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के 108 सदस्यों के दस्तखत के साथ भारत सरकार से, इस Compassion International को काम करते रहने देने की गुजारिश की लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का फैसला नहीं बदला और इस एनजीओ को भारत से अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा.
संभवत: यही वो वक्त था जब एडवर्ड रॉयस ने ‘भारत-प्रेम’ को तिलांजलि देते हुए CAATSA की भूमिका तैयार करनी शुरू कर दी जिसका असर भारत की बड़ी रक्षा खरीद यानी S-400 सौदे पर पड़ना तय था.
बहरहाल, भारत ने CAATSA के दबाव के आगे ना झुकते हुए S-400 खरीदने का फैसला लिया. अब देखना होगा कि भारत का भरोसेमंद साथी होने का दावा करने वाले प्रेसीडेंट ट्रंप भारत को इसमें छूट देने में कितना वक्त लगाते हैं.
भारत को छूट मिलना तो लगभग तय है लेकिन ट्रंप जिस तरह से कठोर मोल-भाव वाले राजनेता हैं उसके देखते हुए लगाता है कि भारत को इस छूट की कहीं ना कहीं कीमत भी चुकानी पड़ेगी.