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क्या नवाज शरीफ नौकर और ड्राइवर से भी गए गुजरे हैं?

नवाज शरीफ पर आरोपों को लेकर पाकिस्तान मीडिया में मची है हलचल

Seema Tanwar

( 17 जुलाई की इस रिपोर्ट में पनामागेट मामले में फंसे नवाज शरीफ पर लिखे गए पाकिस्तानी अखबारों की संपादकीय है )

पाकिस्तान की सियासत में आजकल हंगामा मचा है और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने सियासी करियर का एक बड़ा संकट झेल रहे हैं. विरोधी जहां प्रधानमंत्री पद से उन्हें रुखसत होते हुए देखना चाहते हैं, वहीं भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नवाज शरीफ अपना दामन बेदाग होने की बात कर रहे हैं.


पनामा लीक्स में शरीफ खानदान का नाम आने के बाद से ही विरोधियों ने उन्हें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नए सिरे से घेरना शुरू कर दिया था, लेकिन अब वह मुकाम आ पहुंचा जब नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री पद बने रहने पर अटकलें लगने लगी हैं. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित साझा जांच टीम (जेआईटी) अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है और अब फैसला अदालत को करना है.

अगर नवाज शरीफ दोषी साबित हुए उन्हें पीएम की कुर्सी खाली करनी होगी. इन दिनों पाकिस्तानी मीडिया में इससे बड़ी कोई खबर नहीं है. कहीं अखबारों में सभी सियासी दलों से जिम्मेदारी के साथ काम लेने को कहा गया है, तो कुछ अखबार पद से चिपके रहने के लिए नवाज शरीफ की आलोचना भी कर रहे हैं.

जनता का मिजाज

'दुनिया' ने अपने संपादकीय में प्रधानमंत्री नवाज के इस बयान को तवज्जो दी है कि उनका जमीर साफ है और वह इस्तीफा नहीं देंगे. अपनी पार्टी के संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए नवाज शरीफ ने कहा कि पिछले चार साल में उन पर यह तीसरी बार हमला हो रहा है लेकिन खुदा और आवाम उनके साथ है.

अखबार कहता है कि खुदा की तो खुदा जाने लेकिन जनता का मिजाज बदलता रहता है, वरना देश की दो बड़ी पार्टियों को बारी बारी से सत्ता में आने का मौका नहीं मिलता.

अखबार ने पाकिस्तान में नाजुक हालात का हवाला देते हुए लिखा है कि सरकार और राजनीतिक पार्टियों का क्या इरादा है, यह तो वही जानें लेकिन उन्हें किसी भी तरह की असंवैधानिक हरकत से गुरेज करना होगा.

'उम्मत' अखबार लिखता है कि बात अगर इज्जत की आती है तो घरेलू नौकर या ड्राइवर भी नौकरी छोड़कर चला जाता है लेकिन पाकिस्तान की सियासत निराली है जहां किसी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगें तो वह सत्ता को छोड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकता है.

अखबार के मुताबिक आरोपों में कितनी सच्चाई है, इससे परे नैतिकता का तकाजा है कि ऐसे व्यक्ति को तुरंत पद छोड़कर अपने आपको खुले दिल से संविधान, कानून और अदालत के सुपुर्द कर देना चाहिए.

अखबार नवाज शरीफ का नाम लिए बगैर उन पर कई और सख्त टिप्पणियां करता है. उसका कहना है कि वह सत्ता से तब भी चिपके हुए हैं जब किसी और व्यक्ति को पद पर बिठा कर अपनी सत्ता बरकरार रख सकते हैं जैसे उनसे पहले पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के शासन में होता था.

हमाम में सब नंगे

जसारत’ लिखता है कि सत्ताधारी मुस्लिम लीग (एन) और उसके शासकों की संदिग्ध गतिविधियों की वजह से पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेताओं को बड़े बड़े दावे करने का मौका मिल गया है और वे खुद को लोकतंत्र का रक्षक और जनता का खैर ख्वाह साबित करने पर तुले हैं.

अखबार कहता है कि शरीफ परिवार ने जो कुछ किया, उसका फैसला तो अदालत करेगी, लेकिन क्या कभी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेताओं ने कभी यह सवाल किया है कि मामूली हैसियत और औसत आमदनी वाले व्यक्ति का बेटा आसिफ अली जरदारी अरबपति और खरबपति कैसे बन गया.

अखबार की राय में किसी का भ्रष्टाचार और लूटमार साबित नहीं हो सका है और किसी का होना बाकी है, लेकिन चोरियां साबित हो या ना हो लेकिन जनता को पता है कि किसने क्या किया है. अखबार कहता है कि नवाज शरीफ भी यही कह रहे हैं कि उन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया और आखिर दम तक लड़ते रहेंगे, लेकिन किससे लड़ेंगे?

उधर 'एक्सप्रेस' लिखता है कि देश की राजनीति पनामा पेपर केस के कारण इन दिनों एक तूफान का सामना कर रही है

अखबार की राय है कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर अड़ने की बजाय विपक्षी पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसला का इंतजार करना चाहिए और अदालत जो भी फैसला सुनाए, प्रधानमंत्री समेत सभी पक्षों को वह मंजूर होगा.

संयम की अपील

औसाफ’ ने सत्ताधारी पार्टी को हिदायत दी है कि उसकी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए जिससे राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचे, देश के अंदरूनी हालात खराब हो और 'देश के दुश्मनों को अपनी साजिशों में कामयाबी' मिल सके.

अखबार की अपील है कि सियासी लड़ाइयों में कार्यकर्ताओं और आम लोगों को पक्ष न बनाया जाए और जो पक्ष हैं वे अदालत के फैसलों और आदेशों का सम्मान करें क्योंकि इंसाफ के सामने सिर झुका कर ही लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है.